nilofar said...
ज्यादातर लोगों को लगता है एकांत होगा, रोज दफ्तर जाने का झाम नहीं होगा, रूटीन का खटराग नहीं होगा और मुफ्त भोजन के साथ कई रचनात्मक मषि्तष्कों के साथ प्रणय होगा तो सारी बेचैनी और अंदर घुटती चीखें कागज पर अपने आप उतर जाएंगी। बस आपको एक उस्ताद फोटोग्राफर की तरह घुटती चीखों से पहले रेडी और स्माइल प्लीज कहना है। फिर देखिए-अपना उपन्यास, उसे पढ़ने में डूबे लोग, स्फुरण के लम्हे और आटोग्राफ के लगी कतारें, पता नहीं कि आप बगल में बैठे हैं और आपही ऐसे किस्से जिनके बारे आप खुद नहीं जानते (दोस्तोवस्की के साथ ऐसा अक्सर होता था और मारखेज तो इसी की रोटी खाते हैं।)
यह चूतिया बनाने की चाल है। आप जब मुफ्त की रोटी तोड़ेंगे तो आपको बेइंतहा नींद आएगी। आठ-दस दिन बाद आपसे गोबर फेंकवाया जाएगा और भूसा ढोवाया जाएगा। जुवा लेखक जी, आप जानते हैं बिहार में मजूर का कितना प्राब्लम है।
मेरे ब्लॉग हमारा देश तुम्हारा देश http://hamaradesht.blogspot.com/ पर अनाम -अपरिचित निलोफर ने एक पोस्ट के जवाब में यह गाली दी है । पर मुझे लगा की बात मी दम है , तो सोचा क्यों न इसे भड़ास से साझा करूं ?
2 comments:
मान गए महाराज,निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छंवाय.....
आप और नीलोफ़र जी दोनो साधुवाद के पात्र हैं खुले दिल से लिखने के लिये...
हरे दादा,
कड़क और कडुआ, बेहतरीन है. सच से ओत प्रोत.
धन्यवाद इस विचार को सामने लाने के लिए.
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