कोलकाता रेलवे स्टेशन महानगर कलकत्ता का कलंक बन गया है। जैसे ही दूरगामी ट्रेनों से यात्री उतरते हैं टैक्सी वाले उन्हें घेर लेते हैं। यात्री जब अपने गंतव्य स्थान का नाम बताता है तो उससे कहा जाता है कि किराए के इतने रुपए लगेंगे। यह किराया सामान्य टैक्सी किराए से तीन गुना होता है। यहां सभी टैक्सी वाले एकजुट होते हैं। कोई मीटर से चलने को तैयार नहीं होता। सब कहते हैं- कोलकाता स्टेशन से मीटर से टैक्सियां नहीं चलतीं। हैं न हैरानी की बात? लेकिन यात्री के पास अगर भारी सामान है तो टैक्सी करना उसकी मजबूरी है। जहां का किराया ६० रुपए है, वहां के लिए २०० या २५० रुपए मांगा जाता है। इसे रोकने के लिए न पुलिस वाले हैं और न प्रशासन का कोई आदमी। कहां है पश्चिम बंगाल सरकार की मशीनरी? है कोई इसे रोकने वाला? यात्री लुट रहे हैं। बचाएगा कौन? क्या यही लोकतंत्र है?कब रुकेगी टैक्सी वालों की दादागिरी? कोई बचाओ यार इन बेचारे यात्रियों को।--- विनय बिहारी singh
11.11.08
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