मुंबई में एक प्रॉपर्टीव्यवसायी सारा जीवन बंधे-बंधाए ढर्रे पर जीता रहा। एक दिन व्यवसायी अपने एक संभावित अमीर ग्राहक को कोई जायदाद दिखाते हुए बोल रहा था- इस स्थान का मौसम इतना अच्छा है कि यहां कोई मरता ही नहीं है! और उसी समय कुछ लोग एक शव को अंतिम यात्रा पर ले जाते हुए दिख गए। जब सारे लोग निकल गए, प्रॉपर्र्टीदलाल थोडा हिचका और अपने को व्यवस्थित करते हुए बोला कि कब्रिस्तान की देखभाल करने वाला गरीब आदमी अंतत:भूख से मर गया।
यह माना जाता है कि भारतीय तर्क देने में बडे कुशल होते हैं। यदि कोई व्यक्ति तर्क प्रस्तुत करता है, तो वे हजारों तर्क ढूंढ लाते हैं। लेकिन मैं यहां तर्क नहीं दे रहा हूं, मैं बस चंद्रमा को दिखा रहा हूं। मेरी अंगुलियां तर्क नहीं हैं, बल्कि इशारे मात्र हैं। मेरी अंगुली को मत पकडो, चंद्रमा को देखो। और यही समय है, जब चंद्रमा को देखा जाना चाहिए।
एथेंसमें सुकरातको न्यायालय द्वारा कहा गया कि यदि तुम सत्य के बारे में बोलना शुरू कर दो, हम तुम्हें मुक्त कर सकते हैं। तुम्हें मौत की सजा नहीं दी जाएगी। सुकरातने इनकार कर दिया। और जो शब्द सुकरातने बोले, वे बहुत सुंदर हैं। सुकरातने कहा, यह मेरा धंधा है। मैं सत्य के बारे में बोलना बंद नहीं कर सकता। ऐसे ही जैसे कि श्वास लेता हूं, मैं सत्य के बारे में बोलता हूं। यह मेरा धंधा है। मैं जारी रखूंगा। मेरी चोट तेज होती चली जाएगी, क्योंकि मुझे बहुत सारा कचरा सतह पर लाना है। यह एक प्रकार की शल्य चिकित्सा है।
वैसे, यह देश मरणोपरांत जीवन जी रहा है। यह बहुत समय पहले मर चुका है। उस दिन से जब यह विचार आया कि हमारा स्वर्ण-युग जा चुका है। हमारा पतन हो रहा है। हम गहरे से गहरे अंधेरे कुएं में लगातार गिरते जा रहे हैं। इसने जीवन की सारी गुणवत्ता खो दी है। तभी से यह देश मरणोपरांत जीवन जी रहा है।
मेरा प्रयास है कि इस देश को असली मौत दी जाए, ताकि इसका असली जन्म संभव हो सके। सूली देने के बाद ही पुनर्जन्म संभव होता है। इसके अलावा, कोई चारा नहीं है। जीवन के वापस आने के लिए मौत ही एकमात्र रास्ता है, इसलिए मृत्यु से डरो मत! सच तो यह है कि जन्म और मृत्यु विपरीत नहीं होती है। वे एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं। वे तो दो पंखों की तरह हैं। वे एक-दूसरे को मदद करते हैं, वे परिपूरक हैं।
मैं तुम्हें संपूर्णता से जीना सिखाता हूं और मैं पूर्णता से मरना भी सिखाता हूं। पूर्णता असली धार्मिक व्यक्ति का स्वाद होना चाहिए। जब मैं कहता हूं कि असली धार्मिक व्यक्ति से मेरा मतलब कोई अलौकिक, कुछ उच्चतर पवित्र से नहीं है, मेरा सीधा-सा अर्थ निर्दोष जीवन से है, यानी साधारण जीवन से है। मैं साधारण प्रशंसा करता हूं, मैं साधारण की तारीफ करता हूं, मैं साधारण की पूजा करता हूं।
[ओशो]
13.11.08
पूरक है जीवन और मृत्यु
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