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7.2.09

कोई सोचता नहीं .....

फलस्तीनियों का दर्द सबको दीखता यहाँ ,

कश्मीरी पंडितों की कोई सोचता नहीं ,

अपने ही देश में हैं क्यों शरणार्थी बने ,

है कौन इसके पीछे कोई सोचता नहीं ,

उनके भी सर छत थी कभी अपनी कमाई की ,

तम्बू भी अब खैरात का ,कोई सोचता नहीं ,

होने चले शरीक़ सब मातम में गैर के,

घर में हैं कितनी लाशें ,कोई सोचता नहीं ,

इंसान क्या बसते हैं फलस्तीन में केवल ,

मुम्बई में भी थे आदमी कोई सोचता नहीं ,

इजराईल ने किया जो वो सबकी नज़र में है ,

झंडा हरा करता है क्या ,कोई सोचता नहीं ,

पुरोहित और साध्वी को सज़ा की है सिफारिश ,

है क़सब क्यों ज़िंदा अभी , कोई सोचता नहीं ,

'संजीव' फलस्तीन से मुझको न कोई बैर ,

पर घर में भी गम नहीं हैं कम , कोई सोचता नहीं .

3 comments:

मनोज द्विवेदी said...

sanjiv ji man ko kachotane wali bat likhi hai apne.. har hindustani ko sochane par mazboor kar diya apne...
bahut bahut badhai ho....

मनोज द्विवेदी said...

dil ko chhu lene wali panktiyan likhi hain apne. har hindustani ko is mudde par sochane ke liye vivash karti hain apki panktiyan..
DHANYABAD..

Sanjeev Mishra said...

Manoj ji,dhanywad pratikriya vyakt karne ke liye.
Bahut abhari hoon aapka ki kam se kam ek vykti ne to is rachna ko padhne ke yogya samjha.
punah dhanywad.
http://trashna.blogspot.com