आत्मघाती का सच
उस औघड़ शाम में
जाने किस खंभार में
तार पर बैठी हल्ला करती लाल चिडिया
और आसमान पर टंगे - नीचे
गिरते रक्तिम बादल और
अरे हाँ !
था तो मैं भी वहीं
बूढ़े बोहड़ के नीचे उस
जन संकुल स्थल पर
जब हुआ था स्फोट
और उड़ गए थे
- सत्ताधीशों लोलुपों के
- कुछ नेताओं के
- मानसिक शोषकों के
- कुछ हरामियों के
- बिलावजह भूंकतें कुत्तों के
- बीच सड़क पर पागुर
करती जइया के
शरीर के चिथड़े और फ़ैल कर काला पड़
गया लाल रक्त
पर वह जिंदा था
जिसने किया था
यह कारनामा
चुपचाप देखता बैखौफ आंखों से से ख़ुद
की एक कटी टांग और एक कटा हाथ
कठहंसी हँसता किंतु उसकी
घोषणा करती आँखे कि मुझ पर मुकदमा चलाओ
मेरा इलाज करवाओ
मुझे मेरी बिटिया को स्कूल से लेकर आना है
5.2.09
आत्मघाती का सच
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1 comment:
बहुत दर्द है पंक्तियों में
regards,
somadri sharma
som-ras.blogspot.com
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