अक्सर तेरे ख्याल से बाहर नहीं हुआ
शायद यही सबब था मैं पत्थर नहीं हुआ।
महका चमन था, पेड़ थे, कलियाँ थे, फूल थे,
तुम थे नहीं तो पूरा भी मंज़र नहीं हुआ।
माना मेरा वजूद नदी के समान है,
लेकिन नदी बगैर समंदर नहीं हुआ।
जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली,
उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ।
साए मैं किसी और के इतना भी न रहो,
अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।
चेतन आनंद
17.2.09
ग़ज़ल
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1 comment:
जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली,
उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ।
bahut khoobsurat line hai sir ji
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