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7.2.09

डर लगता है


तनहा थे तो तन्हाई थी जिंदगी

अब तनहा सफर से डर लगता है

तेरी यादों से चलती हैं सांसें मेरी

ये सांसें थम न जायें डर लगता है।

मेरी आंखों में तुम, तुम्हारे सपने, तुम्हारी बातें

वो खिलखिलाते दिन वो मुस्कुराती रातें

तुम्हारा मिलना, साथ साथ चलना

वो हँसना वो रोना, न खाना न सोना

जिंदा हो तुम मैं जिंदा हूँ जब तक

कहीं मर न जाऊँ डर लगता है।

जब तनहा थे तन्हाई थी जिंदगी

अब तनहा सफर से डर लगता है

धड़कता नही अब सिसकता है दिल

हुई राहें जुदा बदल गई मंजिल

ये तो होना ही था, तुझको खोना ही था

तुझे छोड़कर तुझसे मुह मोड़कर

शर्मिंदा हूँ मैं तेरा दिल तोड़कर

जिन आंखों में थे सिर्फ़ सपने मेरे

अब नज़रें मिलाने में डर लगता है।

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-संदीप तिवारी, हिंदुस्तान आगरा

8 comments:

हिन्दी के लिक्खाड़ said...

kis kis se daroge sandeepji
kis kis pe maroge sandeepji
achha likha h, likhte raho,
khoob naam karoge sandeepji

badhai ho ji

dr bhanu pratap singh

Unknown said...

अद्भुत तिवारी जी, यह दिल से निकली हुई पीड़ा की रचना है
कहते हैं जब इंसान दिल से कुछ करता है तो १६ आना खरा होता है
लिखना शुरू किया है तो बंद मत करना, आपकी की कविताओं का इंतजार रहेगा
महाबीर सेठ, जालंधर
http://www.gonard.blogspot.com/

gyanendra kumar said...

I would say only two world of hindi

Wah-Wah


Please! Copy these word 20 time.

Dixant Tiwari (soni) said...

Kya likha hai mitra...
is dard ko mahsoos kar wo kagaj bhi roya hoga jis per ye panktiya aapne utaari

fantabulas...
suparb...

dar door hua ke intzaar mai..

Dixant tiwari

Dixant Tiwari (soni) said...

atisunder..
kitna khoobsoorat
baya kiya hai dard
suparb...

Dixant

Anonymous said...

sale tum likhe ho hame nahi maloom tha kavi var bhi ho yaar. acha likhe ho. lage raho

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

sale tum likhe ho hame nahi maloom tha kavi var bhi ho yaar. acha likhe ho. lage raho

Anonymous said...

क्या बात है तिवारी साहब....बहुत सही...आगे लिखते रहो...एक दिन किताब का शक्ल दो इन कविताओं को..