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9.2.09

ये दोस्त तुम बहुत याद आती हो

मैंने इस ब्लॉग कुछ कवितायेँ देखी तो मैंने भी सोचा जो मैंने लिखा है वो आपसे share करू उम्मीद है पसंद आयेगा।

जब से तुम गई हो, जाने कितना कुछ बदल गया है जीवन में,
अब कोई खुशी और सपने नही रह गए इस मन में।

मैं जब उदास होता था, तुम मुझे समझाती थी,
मेरी आँखों के आंसू अपने हाथो से पोछती थी।
पर अब जब तनहा होता हूँ तो कोई समझाता भी नही,
तुम्हारी तरह अपनी गोद में सर रख के सुलाता भी नही,
और जब कोई अपने हाथो से मेरे आंसू भी नही पोछता, तब...
ये दोस्त तुम बहुत याद आती हो!!

एक थाली में खाते थे आधा-आधा,
तुम मुझे अपने हाँथों से खिलाती थी,
और तुम बात-बात पे मुझे अपनी आँखों से छिडाती थी।
पर अब जब भूखा होता हूँ तो कोई अपने पास बुलाता भी नही,
तुम्हारी तरह मुझे अपने पास बिठाता भी नही,
और जब कोई मेरी आँखों में देख कर मुझे खिलाता भी नही, तब...
ये दोस्त तुम बहुत याद आती हो!!

जब भीड़ में खड़ा-खड़ा रास्ता भूल जाता था,
पर इतनी भीड़ में भी तुम्हे नजर आता था।
और अक्सर तुम मुझे पीछे से बुलाती थी,
मैं पीछे देखता तो तुम नजर आती थी।
पर अब जब भीड़ में खड़ा-खड़ा ख़ुद को भी भूल जाता हूँ,
और इस भीड़ में तुम्हे कही धुंध नहीं पाता हूँ,
और पीछे से तुम्हारी तरह कोई बुलाता भी नही,
पीछे देखने पर जब कोई नजर आता भी नही, तब...
ये दोस्त तुम बहुत याद आती हो!!
DEEP MADHAV
deep_sa15@yaahoo.co.in
http://www.sapnemere.blogspot.com/

2 comments:

अमिताभ श्रीवास्तव said...

rachna achchi he.
nai kavita ke dour me esi rachna ko rakha jaa sakta he..
aap apni bhavnaye vyakt kar de shabdo ko katarbadhdha kar le bs ek rachna nirmit ho jaati he. magar ye bhi kathin hota he..
isliye aapki rachna ko me sarahta hu.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

प्रयास बुरा नही है.
नई कविता के दौर में इस तरह की रचनाये आ सकती है.