दिल ढूंढता है.......दिल ढूंढता है....... वो बचपन का ज़माना.....जब सब बच्चे मिल कर उछल कूद करते हुए स्कूल जाते थे...रस्ते में आने वाली हर चीज़ का भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए...!फ़िर शुरू होता स्कूल का कार्यकर्म ..कब शाम हो जाती पता ही नहीं चलता था...!सब अध्यापक कितने अपनेपन से पढाते थे...कभी उनको हमने या उन्होंने हमे पराया नही समझा....!फ़िर शाम को गाँव के रेतीले धोरों पर देर तक खेलना..आज भी याद है जब माँ हाथ पकड़ कर ले जाती थी तो ही खेलना बंद करते थे..!रात को दादा-दादी के सानिध्य में पढ़ते पढ़ते सो जाते थे...वो रातें कितनी अच्छी थी...!अलसुबह सब बच्चों को उठा दिया जाता था...फ़िर सबके साथ चाय पीना और मस्ती करना....!नहा धोकर गाँव के मन्दिर में जाना कहाँ भूलते थे हम....और मंगलवार को तो शाम का खेल छोड़ कर भी मन्दिर के बहार बैठे रहते थे....प्रसाद जो लेना होता था...कोई किसी प्रकार की टेंशन या भेदभाव नहीं था....रात को देर तक गाँव की गलियों में घुमते हुए कभी हमे डर नहीं लगा...!कभी कभी जब दूर निकल जाते तो कोई भी बुजुर्ग अपने बच्चों की तरह ही हमें दांत देता...कभी किसी को बुरा नहीं लगा...!किसी के घर भी जब कोई शादी होती तो वहीँ सब खाना खाकर सो जाते..कभी काम से परेशान नहीं हुए ...!आज सब कुछ है लेकिन वो चैन वो आराम वो शान्ति नहीं है.........उसकी तलाश में यहाँ वहां भटकते है...पर तनाव है की पीछा ही नहीं छोड़ता.....इसीलिए तो किसी ने क्या खूब कहा है..... शायद फ़िर से वो तकदीर मिल जाए, जीवन का सबसे हसीं वो पल मिल जाए, चल फ़िर से बनाए वो .रेत..का महल,शायद वापस अपना वो बचपन मिल जाए.... [yeduniyahai.blogspot.com]
3.3.09
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1 comment:
rajesh jee wo din nahi aayege kewal yaade shesh hai aur rahegi
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