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8.6.09

तबियत के राजा थे श्याम

श्याम राजा नही रहे !राजा के अवसान की ख़बर अप्रत्याशित थी !राजा की उम्र ही क्या थी ,अभी पूरे ६० के भी नही हुए थे ,लेकिन वे साठा का इंतजार किए बिना ही चले गये !
मेरा श्याम राजा से ज्यादा मिलना -जुलना नही था !पिछले कई वर्षो से न उनसे रूबरू हुआ और न फोन पर बात हुई !बावजूद इसके वे आसपास ही खड़े महसूश होते थे !एक जेसी सोच और एक जेसा फक्कड़पन मेरे और राजा जी के बीच के रिश्ते का आधार था !राजाजी कलाकार भी थे और चिन्तक भी !वामपंथ राजी जी की राजनीतिक सोच का हिस्सा था !राजाजी ने अपना जीवन अपने ढंग से अपनी शर्तो पर जिया !किसी की परवाह नही की !श्याम से राजा बनने तक वे अपने ढंग के व्यक्ति थे !मूलिकता उनमे अनंत थी ,लेकिन समाज को इसका पूरा लाभ नही मिला !कला धर्म से विमुख होकर राजा व्यवसाय की और उन्मुख हुए ,तो फ़िर व्यवसाय के ही होकर रह गये !वर्षो पहले रसोई गेस बेचते -बेचते राजाजी ने हिन्दू सम्रध्वी नाम से एक सांध्य दैनिक निकालना शुरू किया !इस अखबार के प्रातःकालीन संस्करण की योजना बनी तो राजाजी ने मुझे याद किया !मै उनके प्रकाशन से कोई तीन -चार महीने ही जुदा रह सका !मेने पाया की श्याम के राजा होने के बाद बहुत कुछ बदल गया था किंतु उनका राजा मन नही बदला था !असहमती उन्हें स्वीकार नही थी और किसी मुद्दे पर वे स्यमंआसानी से सहमत नही होते थे !अखबार के घालमेल के मुद्दे पर हम दोनों में सहमती नही बनी !उन्होंने प्रत्यछ रूप से मेरा विरोध किए बिना मुझे मेरी जिम्मेदारियों से मुझे स्वतंत्र कर दिया !इसके बावजूद रिश्तो के निर्वाह में राजाजी कभी पीछे नही हटे !बाद के वर्षो में राजाजी का वामपंथ कट्टर हिन्दू वाद की भेट चढ़ गया !इस परिवर्तन के समर्थन में भी राजाजी के पास अकाट्य तर्क होते थे !मुझे लगता हे की राजा जी की रचनाधर्मिता और मोलिकता पर अगर व्यवसाय अतिक्रमण नही करता तो वे समाज को और भी कुछ ज्यादा दे सकते थे !राजा जी असमय चले गये !उनके जाने पर विस्वास करने में किंचित परेशानी तो होती है किंतु सत्य तो स्वीकार करना ही होता है !राजाजी का जाना स्राजन्शीलता ,साहित्य ,पत्रकारिता और समाज सभी की छति है क्योंकि राजाजी जेसा दूसरा हो नही सकता जो जोत से जोत जलाने की अभूतपूर्व छमता रखता हो !इति !
(ग्वालियर :वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से )

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