एक पत्रकार , दूसरा बेकार
दोनों में कोई अंतर नहीं
फर्क है तो बस सोच का
सोच चिंता की,
चाहत की,
एक को खोने की चिंता,
दूसरे को पाने की,
लेकिन दूसरे को पता नहीं
अगर उसे मिल भी गया
तो एक दिन खोएगा
और अगर फ़िर भी मिल गया तो
फ़िर दूसरा
बन जाएगा पत्रकार
और पहला बेकार।
शशि शेखर
(एक पत्रकार पहली बार कवियाया है)
20.6.09
बेकार पत्रकार
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3 comments:
bhut achchhi lagi aap ki ye rachna
लेकिन शशि जी,
किन्ही भी हालातो में पत्रकार तो जिन्दा ही है, कभी पहले के रूप में तो कभी दूसरे के रूप में...
मतलब हम और आप तो आते जाते रहेंगे मगर पत्रकार और पत्रकारिता जिन्दा रहेगी, अभी भी जिन्दा है,
हालाकि आपको ये कहना कि किन हालातो में जिन्दा है, छोटा मुह और बड़ी बात होगी...
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