Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

10.9.09

रंग


रंग बदल जाते है धुप में, सुना था
फीके पड़ जाते है, सुना था
पर उड़ जायेंगे ये पता न था!
हाँ ये रंग उड़ गए है शायद...
जिंदगी के रंग इंसानियत के संग,
उड़ गए है शायद...


अब रंगीन कहे जाने वाली जिंदगी, हमे बेरंग सी लगती है,
शक्कर भी हमे अब फीकी सी लगती है...

कहा है वो रंग???
जो रहेते थे रिश्तो के संग
बाप की डाट और माँ के दुलार के रंग,
खेलने के घाव और बचपन की नाव के रंग,
पडोसी की चाय के, बुजुर्गो के साये के रंग,
हाथों में वो हाथ, दोस्तों के साथ के वो रंग,
उड़ गए है शायद...

तितलियों को पकड़ते नन्हे हाथो के रंग,
बच्चो के खेल और बडो के मेल के वो रंग
चटपटी सी चाट, घर की पुरानी खाट के रंग,
मानिंद चलती हवाओ में खुशबु के रंग,
उड़ गए है शायद...

कोशिश करो की ये रंग उड़ने न पाये
क्योकि ये रंग उड़ गए तों...
फिर न रहेगी रंगीन मुस्कान, रंगीन यौवन, रंगीन जिंदगी॥
छोटी-छोटी खुशियों की वो ताल,
छीन न जाये उड़ न जाए, उड़ न जाये...
रंग भरो जिंदगी में जिंदगी के,

संग उडो जिंदगी के रंगों में॥

सों और मुस्कुराओ और गाओ

रंगी समां, रंगी जहा बनाओ...

-हिमांशु डबराल

.bebakbol.blogspot.com


No comments: