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13.9.09

ग़लतफ़हमी में

आरती आस्था
हम मिलते हैं....
बात करते हैं.....
लेकिन नहीं होता
जब कभी
हमारे पास
बोलने के लिए कुछ
(हालांकि कमी नहीं है हमारे पास शब्द भावनाओं की)
और पसरने लगती है खामोशी
हमारे दरम्यान
तो भागने लगते हैं हम
एक-दूसरे से
भागना जो नहीं चाहते
एहसास में भी
और खामोशी
एहसास कराती है
एक दूरी का
हमारे बीच......
वास्तव में बैठ गया है
एक डर हममें
कुंडली मारकर
जो न बोलने देता है
और न ही
रहने देता है चुप....
कि कहीं खो न दें हम
किसी गलतफहमी में
एक-दूसरे को।

2 comments:

Amod Kumar Srivastava said...

bahut hi accha hai

RAJNISH PARIHAR said...

very good article....