मुझे सपनो से अब ना जाने क्यों डर सा लगता है .. इस शहर में ,इस रोड पर या इस मुल्क में .... लाशें सी दिखती है हर चलती हुई ज़िन्दगी .... मेरे सपनो में बसती थी कभी वो ज़िन्दगी जहाँ ..हर कोई मुस्कराता था................... लेकिन जब आँखें खोलू तो पता है चलता ......यहाँ बचपन भी चीखता ....जवानी सुबकियां लेती to continue: http://salaamzindagii.blogspot.com/2009/10/blog-post.html
9.10.09
मेरे सपनो में अब माँ नहीं आती .....जरुर पढें
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