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4.10.09

हरीश भादानी की अंति‍मयात्रा : स्‍वतंत्रचेता मुक्‍तपुरूष का महाप्रयाण

  • जनकवि‍ हरीश भादानी जी को 3 अक्‍टूबर 2009 को बीकानेर में हजारों लोगों ने अश्रुपूरि‍त नयनों से अंति‍म वि‍दाई दी। उनकी अंति‍म वि‍दाई के मौके पर राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलौत श्रद्धांजलि‍ देने जयपुर से सीधे बीकानेर पहुँचे। हरीश जी की अंति‍म इच्‍छा थी कि‍ उनका अंति‍म संस्‍कार न करके मेडीकल कॉलेज को देह दान कर दि‍या जाए। उनकी इसी इच्‍छा के अनुरूप उनका देहदान बीकानेर मेडीकल कॉलेज को कि‍या गया। यहां पर दो बडे हि‍न्‍दी दैनि‍कों की अंति‍म यात्रा की रि‍पोर्ट पेश करना चाहता हँ। यह रि‍पोर्ट एक महत्‍वपूर्ण पक्ष की ओर ध्‍यान खींचती हैं कि‍ हिंदी में हरीशजी वि‍रल वि‍भूति‍ थे, उन्‍होंने सभी वर्गों और जाति‍यों के लोगों में अपनी साख कायम की थी और पूरा राजस्‍थान उन्‍हें प्‍यार करता था। उनकी शवयात्रा में जि‍स तरह हजारों लोगों का सैलाव उमड़ा वह स्‍वयं में इस बात का प्रतीक है कि‍ वे सचमुच में जनगायक और स्‍वतंत्रचेता, मुक्‍त पुरूष थे। स्‍वतंत्रचेता ,मुक्‍तपुरूष होने के नाते ही उन्‍हें आरएसएस से लेकर सीपीएम,कांग्रेस से लेकर समाजवादी वि‍चारधारा के लोग समान रूप से प्‍यार करते थै। इसके अलावा बड़े पैमाने पर जनसाधारण की उनकी शवयात्रा में उपस्‍थि‍ति‍ को देखकर रवीन्‍द्रनाथ टैगोर की अंति‍म यात्रा का दृश्‍य याद आ रहा था ,रवीन्‍द्रनाथ की मौत पर जि‍स तरह का जनसैलाव कलकत्‍ते में उमड़ा था ठीक वैसा ही जनसैलाव बीकानेर की सड़कों पर 3 अक्‍टूबर 2009 को दि‍खाई दि‍या।
    राजस्‍थान पत्रि‍का ने लि‍खा- ”बीकानेर। रोटी नाम सत है, खाये सो मुकत है, मैंने नही कल ने बुलाया है जैसे सैंकडों गीतों के जरिए जागृति की अलख जगाने वाले जन कवि हरीश भादाणी की देह उनकी इच्छा के मुताबिक आज सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज प्रशासन को सौंप दी गई। उनका शुक्रवार तडके निधन हो गया था।भादाणी के पार्थिव शरीर को शहर के छबीली घाटी स्थित उनकी पुत्री कविता व्यास के निवास पर दर्शनार्थ रखा गया था, जहां सैंकडों लोगों ने पहुंच कर पुष्पांजलि अर्पित की। उनकी पुत्री एवं पूर्व सांसद सरला माहेश्वरी के कोलकाता से आज सुबह यहां पहुंचने के बाद उनके पार्थिव शरीर को फूलों से सजी खुली जीप में रख कर देहदान के लिए मेडिकल कॉलेज ले जाया गया। जन कवि भादाणी की अंतिम यात्रा में भाजपा विधायक गोपाल कृष्ण जोशी, भाजपा के शहर अध्यक्ष नन्दकिशोर सोलंकी सहित साहित्यकार, पत्रकार तथा सभी वर्ग के लोग शामिल थे। शहर के प्रमुख मार्गो से होते हुए देहदान यात्रा जैसे ही सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज पहुंची डॉक्टरों ने पंक्तिवद्ध होकर पुष्पांजलि अर्पित की। भादाणी 76 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। अपनी वसीयत में भादाणी ने देहदान की इच्छा जताई थी। उनके एक पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। बिहारी सम्मान, मीरा पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित भादाणी आमजन की भाषा में जनता की समस्याओं और विदु्रपताओं पर कविता लेखन लिए प्रख्यात रहे।”

    दैनि‍क भास्‍कर ने लि‍खा-

    ” बीकानेर. जनकवि हरीश भादानी के निधन से संपूर्ण साहित्य जगत को गहरा आघात पहुंचा है। साहित्य से जुड़े व्यक्तियों, राजनीतिज्ञों, समाजसेवियों ने भादानी के निधन पर दुख प्रकट करते उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं।
    जनवादी लेखक संघ के पदाधिकारियों ने भादानी के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है। जिला सचिव नरेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि एक कवि, गीतकार, लेखक, संपादक, जन साक्षरता, आंदोलनकर्ता के रूप में भादानी के जीवन संघर्ष का विवरण देना सूरज को दीपक दिखाने के समान है।
    अजित फाउंडेशन में आयोजित शोकसभा में लक्ष्मीदेवी व्यास ने कहा कि भादाणी के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में साहित्य का अमूल्य रत्न खो दिया है। संस्था अध्यक्ष विजयशंकर व्यास ने जयपुर कार्यालय से दूरभाष पर भादानी के निधन पर शोक जताया। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) ने भादानी के निधन को साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।
    देहात भाजपा के अध्यक्ष जालमसिंह भाटी, खींवसिंह भाटी, मीडिया प्रभारी सुनिल बांठिया ने कहा कि भादानी ने अपनी कविताओं को राष्ट्रीयस्तर पर लोकप्रियता दिलाकर बीकानेर का नाम रोशन किया था। भारतीय राष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट कर्मचारी फैडरेशन (इंटक) के सचिव हेमन्त किराड़ू, राजस्थान ऑटोचालक यूनियन के अहमद कोहरी, संपतसिह राजपुरोहित, अब्दुल गफूर छोटू व बीकानेर कार जीप टैक्सी यूनियन (इंटक) के मदन पंवार ने भादानी के निधन पर शोक जताया है।
    पूर्व पार्षद सरताज हुसैन ने कहा कि भादानी बीकानेर के साहित्यिक जगत के एक अध्याय थे। ब्राrाण अंतरराष्ट्रीय संगठन (युवा) राजस्थान प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष योगेन्द्र कुमार दाधीच ने भादानी के निवास स्थान पर जाकर उनकी पार्थिव देह पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्री पुष्टिकर पुरोहित भादानी पंचायत ट्रस्ट के अध्यक्ष रमेश कुमार भादानी, शिवशंकर भादानी, गोपालदास भादानी, लालचंद भादानी, गोपाल भादानी, शांतिलाल भादानी, रमेश गहलोत, कमल रंगा ने जनकवि हरीश भदानी को पुष्पांजलि अर्पित की।

    पूर्व न्यास अध्यक्ष सोमचंद सिंघवी ने शोक प्रकट करते हुए कहा कि भादानी के निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। राजस्थानी साहित्यकार शिवराज छंगाणी ने शोक व्यक्त करते कहा कि वे समर्पित सृजक एवं अत्यंत भावुक-संवेदनशील इंसान थे। राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के उन्नयन में उनका अनुपम योगदान रहा।”

  • हरीश भादानी की अंति‍म यात्रा के बारे में दैनि‍क भास्‍कर ने लि‍खा

    ''बीकानेर. शहर की जिन गलियों से वे कभी पैदल ही कंधे पर झोला डाले निकलते दिखाई देते थे, उन्हीं गलियों में आज हजारों लोग उनके साथ थे। फर्क सिर्फ यह था कि आज कोई उन्हें ‘रोटी नाम सत् है, खाये वो मुगत है..’ सुनाने के लिए नहीं कह रहा था बल्कि सभी इस गीत को गा रहे थे।
    चिरनिंद्रा में लीन जननायक-जनकवि हरीश भादानी को यह जगाने का यत्न था या भावभीनी विदाई का उपक्रम लेकिन रुंधे कंठों के बाद भी जोशीला स्वर बार-बार यह अहसास करवा रहा था कि हरीश भादानी अमर रहेंगे। अमरता को वरण कर चुके हरीश भादानी की महाप्रयाण यात्रा शनिवार को छबीली घाटी से प्रारंभ हुई तो गलियों के मुहाने भर गए। सड़क पर तिल रखने की जगह नहीं रही और चौक-चौराहे पुष्पों से भर उठे। लोग श्रद्धावनत थे।खड़े रहे तपती धूप में अपने प्रिय कवि के अंतिम दर्शन के लिए जिसने कई बार नंगे पांव चलकर इस शहर को जगाया। आज शहर के साहित्यकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, कर्मचारी नेता, पत्रकार सभी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे, उनकी छोड़ी हुई विरासत को सहेजे रखने की संकल्पना के साथ। महाप्रयाण यात्रा पर चले हरीशजी को विदा करने साथ आईं उनकी पत्नी जमुनादेवी हों या वाहन की आगे वाली सीट पर बैठी उनकी बेटी पूर्व सांसद सरला माहेश्वरी। दोनों बिल्कुल शांत थीं। जैसे उन्हें अहसास था कि बिलखती हुई पुष्पा खड़गावत और कविता व्यास को उन्हें ही संभालना है। इसी तरह खुद को जज्ब किए रहे डॉ.नंदकिशोर आचार्य, नंद भारद्वाज, भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’, यू.सी.कोचर आदि जो जानते थे उनकी एक सिसकी भी यहां आंसुओं का सैलाब खड़ा कर सकती है। डॉ.नंदकिशोर आचार्य को देख पत्रकार अभयप्रकाश भटनागर खुद पर काबू नहीं रख सके लेकिन आचार्य ने उन्हें संभाला।
    सरल विशारद बार-बार अपनी रुलाई को यह कहकर रोकने की कोशिश करते रहे कि मैं बिल्कुल भी नहीं टूटा हूं। उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति सच को जानता था लेकिन उनकी हां में हां मिला रहा था।
    रांगेय राघव की पुत्री और सीमंतनी यहां अनुवादक पूर्वायागिक कुशवाह को लेकर यहां पहुंची लेकिन उनके शब्द भी जवाब दे चुके थे। नाटककार निर्मोही व्यास अस्वस्थ होने के बावजूद पहुंचे लेकिन उनके चेहरे पर अपने दोस्त को खोने की पीड़ा साफ नजर आ रही थी। साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा बिल्कुल संयत दिख रहे थे लेकिन उनके मन में मचा हाहाकार भी चेहरे पर झलक रहा था।
    ऐसा ही हाल महबूब अली, शुभू पटवा, मनोहर चावला, श्रीलाल मोहता, हरदर्शन सहगल, श्रीलाल जोशी, मालचंद तिवाड़ी, दीपचंद सांखला, कमल रंगा कामरेड वाई.के.शर्मा योगी, प्रसन्न कुमार, रामेश्वर शर्मा, राजेंद्र जोशी का था, सब चुप थे लेकिन असहनीय दर्द के साथ। वातावरण में लगातार गूंजता रहा ‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, भादानीजी का नाम रहेगा।’
    यात्रा के दौरान उनके लिए लाल-सलाम का उद्घोष होता रहा तो कविताएं गूंजती रही। छबीली घाटी से गुजरों की मस्जिद, जेल रोड, कोटगेट, महात्मागांधी मार्ग, मॉडर्न मार्केट से आंबेडकर सर्किल होते हुए हरीश भादानी की महाप्रयाण यात्रा सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज पहुंची जहां उनके देहदान का संकल्प पूरा हुआ। कॉलेज के प्राचार्य डॉ.आर.बी.पंवार, पीबीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ.विनोद बिहाणी सहित समूचा स्टाफ, स्टूडेंट्स भादानी को पुष्पांजलि अर्पित करने गेट पर ही मौजूद थे।
    माकपा की राज्यशाखा की ओर से भादानी की पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित करने के साथ ही माकपा का झंडा चढ़ाया गया। इन्होंने भी दी श्रद्धांजलि : नगर निगम के महापौर मकसूद अहमद, बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के विधायक डॉ.गोपाल जोशी, भाजपा शहर अध्यक्ष नंदकिशोर सोलंकी, भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सत्यप्रकाश आचार्य, नगर परिषद के पूर्व सभापति चतुभरुज व्यास, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ.महेंद्र खड़गावत, सचिव पृथ्वीराज रतनू आदि ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
    और म्यूजियम का हिस्सा बन जाएंगे भादानी
    मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी म्यूजियम में हर ओर बड़े-बड़े मर्तबानों में भरे रसायनों के बीच मानव शरीर के अलग-अलग हिस्से प्रदर्शित हैं। शरीर संरचना के प्रायोगिक प्रशिक्षण के बाद इन्हें मर्तबानों में सुरक्षित रखा गया है। देहदानी हरीश भादानी के अंग भी इन मर्तबानों में नजर आएंगे। मेडिकल कॉलेज को स्वैच्छिक देहदान के रूप में यह पांचवां शरीर मिला है।
    धनपालसिंह माथुर ने बीकानेर में इस महादान की शुरुआत की। कुछ दिन पहले ही हनुमानगढ़ में वृद्धाश्रम चलाने वाले जट्टूराम ग्रोवर की देहदान यात्रा भी इस कॉलेज पहुंची है। मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के प्रोफेसर डा.बी.एल.मेहता के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में ही देहदान के प्रति लोग प्रेरित हुए हैं। दो साल पहले बीकानेर के स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए जयपुर से मृत शरीर मंगवाए गए थे।
    फिलहाल कॉलेज के पास 13 पार्थिव मानव शरीर मौजद हैं। एक वर्ष में प्रशिक्षण के लिए चार शरीर चाहिए। ऐसे में भादानी की पार्थिव देह तीन साल तक रसायनों में सुरक्षित रहेगी और इसके बाद ही इस पर प्रशिक्षण शुरू होगा। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए एमबोल्मिंग की गई है। गुरुत्वाकर्षण के आधार पर फिमोरल आर्टरी करने के साथ ही फ्रीजर और रसायनयुक्त जलकुंड में शव को रखा जाएगा। ऐसे में एक देह के दान से सालों तक स्टूडेंट्स अध्ययन और रिसर्च कर सकेंगे।''


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