प्रेम शुक्ला विस्फ़ोट पर लिखते हैं कि सारे बुद्दिजीवी और राजनेता मिलकर मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खेल रहे हैं. ....... बात गंभीर है, लेकिन आलेखमें यह भ्रम तो पुष्ट होता ही है कि दो समुदायों में बटा है मानव! और दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हैं. जबकि सच्चाई यह है, कि दोनों मानव हैं; और मानव मानव का बन्धु है, दुश्मन नहीं. भ्रम इतना गहरा है कि इस बात पर भी दोनों तरफ़से झण्डाबरदार खङे हो जायेंगे......... इस साधक ने यह बेवकूफ़ी खूब की है. खैर, इस आलेख पर बनी कुण्डली का आनन्द तो दोनों को मिलेगा ही...
बाँट दिया इंसान को,कितने टुकङे देख.
पूजास्थल ही हिंसा के निम्मित्त बनते देख.
निमित्त बनते देख, राम-अल्ला और लल्ला.
परमेश्वर है एक, झगङते नित्य पुच्छल्ला.
कह साधक कवि समझ बने तो भ्रम टूटेगा.
सम्प्रदाय की कैद से मानव तब छूटेगा.
8.12.09
बाबरी को बरी करो
Posted by Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak "
Labels: बाबरी
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2 comments:
संवेदनशील रचना। बधाई।
धन्यवाद मनोजजी.
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