आपके सवाल में ही आपका जबाव है आप स्वीकार करते है कि हम कर्ता मान लेते है। जब कर्ता मानगें तो स्वाभाभिक तौर पर उसके फल की कामना भी करेगें। गीता में स्पष्ट है कि "कर्मण्ये वाधिकारिस्ते मां फलेष कदाचिन" । संसार एक धोखा है यह सोच रखकर कर्म न करना तो कायली है पर कर्म करके फल के लिय़े न सोचना निरपेक्ष भाव कर्म है।
10.2.10
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
मुझे लगता है ये जीवन और मरण का जो सत्य है ,वो कही न कही प्रत्त्यक्ष या परोक्ष्य रूप से एक ही तत्त्व से जुड़ा है,जो हमेशा एक ही रहता है, जिसे हम ब्रहम या आत्मा नाम से जानते है.हो सकता है एक सुपर कंप्यूटर इन सबका हिसाब रखता हो कुछ सूत्र पहले से फीड किए गए हों जिनके हिसाब से आने वाला जन्म सुनिश्चित होता हो,तभी तो कई बार हम भी कहते है ये ऊपर वाले ने क्या गलती कर दी ये इसलिए होता है ,क्यों की कई बार एक कुछ सवाल एक पूर्व लिखित सूत्र से नहीं हल हो सकते,उस सुपर कंप्यूटर को ही हम चित्त्रगुप्प्त कह सकते है और जो फीडबैक आता हो ये ही हो हमारी नियति ..........
Post a Comment