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16.2.10

लो क सं घ र्ष !:देश में नफरत की बात करने वालों के लिए सबक

एक बार फिर देश में अमनपसन्द नागरिकों ने फसाद फैलाने वालों को करारी शिकस्त दे दी और घृणा की राजनीति करने वालों को मुहब्बत का पैगाम देने के इरादे से बनाई गई शाहरूख खान की फिल्म ‘‘माई नेम इंज खान’’ के हक में अपार समर्थन देकर जनता ने करारा जवाब दे दिया है।
देश में भाषा, क्षेत्रवाद व धर्म के नाम पर अलगाववाद का विष घोलने वाले लोगों के लिए यह अवश्य सबक ही कहा जायेगा। पहले देश के अमन पसन्द नागरिक ऐसी शक्तियों के विरूद्ध खुलकर आने से परहेज करते थे इसी कारण मुट्ठीभर उपद्रवियों की बुज़दिलाना हरकतों को बल मिलता था और बेकुसूरों पर जुल्म होता था। सामाजिक प्रदूषण फैलता था परन्तु अब यह अच्छा संकेत माना जाना चाहिए कि अमन पसन्द लोग आतंक फैलाने वालों व देश को बांटने का काम करने वालों के विरूद्ध मोर्चा संभालने निकल रहे हैं।
इसमें मीडिया की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार मीडिया ने इस बार साथ मिलकर शिवसेना व महाराष्ट्र निर्माण सेना के विरूद्ध मोर्चाबन्दी की है वैसे ही यदि धार्मिक द्वेष फैलाने वालों के विरूद्ध भी मीडिया करती तो शायद बाबरी मस्जिद विध्वंस काण्ड के दोषियों को कोई महत्व ना मिलता और वह हीरो से जीरो बन जाते और ना ही 1993 में मुम्बई या वर्ष 2002 में गुजरात सम्प्रदायिक्ता की आग में इतने दिन जलता।
आज भी मीडिया और विशेष तौर पर हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओं का मीडिया एक धर्म व उसके अनुयाइयों के विरूद्ध दुष्प्रचार का छोटा सा बहाना कैश करना नहीं भूलता। साध्वी प्रज्ञा सिंह लेफ्टिनेन्ट कर्नल पुरोहित, दयानन्द पाण्डेय, समीर कुलकर्णी एवं पूर्व मेजर रमेश उपाध्याय की गतिविधियों पर मीडिया चुप्पी साधते दिखाई देता है और अफजल गुरू, आफताब अंसारी और अब शहजाद इत्यादि की आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने वाले पुलिसिया आरोपों की चर्चाएं प्रतिदिन इलेक्ट्रानिक चैनलों समाचार पत्रों के पन्नों पर होती हैं। मीडिया का यह दोहरा स्वरूप हिन्दुत्ववादी शक्तियों को अप्र्रत्याशित रूप से उत्साहवर्धन करता है।
इसी प्रकार दिल्ली की जामा मस्जिद के ईमाम अहमद बुखारी के एक बयान जो उन्होंने सरकारों को दहशतगर्द कहते हुए आजमगढ़ में दिया था पर मुकदमा चलाने की बात की जाती है तो वहीं बाल ठाकरे, प्रवीण तोगड़िया व अशोक सिंघल के देश की एकता को विखण्डित करते और संविधान की धज्जियाँ उड़ाते बयानों के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही पर बगले झांकी जाती है।
यदि समाज के चारों स्तम्भ समाज हित, लोकहित व देश हित में काम करें और संकीर्ण विचार धारा के प्रदूषण में लिप्त होकर देश में आम जनमानस को बहकाने का काम न करें तो गिनती के भी समर्थक ऐसी घृणा की राजनीति करने वालों को मिलना मुश्किल हो जायेंगे।

-तारिक खान

1 comment:

kunwarji's said...

तारीख भाई,आपका लेख बहुत अच्छा लगा वैसे तो,है भी!लेकिन ना जाने क्यों मुझे ये लग रहा है कि आप एक बहुत अच्छी शुरुआत करने के बाद मुख्य धारा जो थी(या जो लग रही थी शुरू-शुरू में) आपके लेख की,आप उस से थोडा भटक या "बहक" गए हो!या एक दुर्भावना या जो कुछ भी हमारे प्रति आपके मन में थी वो स्वभावतः बहार निकल आई होगी!



आज भी मीडिया और विशेष तौर पर हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओं का मीडिया एक धर्म व उसके अनुयाइयों के विरूद्ध दुष्प्रचार का छोटा सा बहाना कैश करना नहीं भूलता। साध्वी प्रज्ञा सिंह लेफ्टिनेन्ट कर्नल पुरोहित, दयानन्द पाण्डेय, समीर कुलकर्णी एवं पूर्व मेजर रमेश उपाध्याय की गतिविधियों पर मीडिया चुप्पी साधते दिखाई देता है और अफजल गुरू, आफताब अंसारी और अब शहजाद इत्यादि की आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने वाले पुलिसिया आरोपों की चर्चाएं प्रतिदिन इलेक्ट्रानिक चैनलों समाचार पत्रों के पन्नों पर होती हैं। मीडिया का यह दोहरा स्वरूप हिन्दुत्ववादी शक्तियों को अप्र्रत्याशित रूप से उत्साहवर्धन करता है।



आपकी ये पंक्तिया थोड़ी सी आपत्तिजनक हो सकती है किसी के लिए भी!केवल "थोड़ी सी" कह कर शायद मै गलती कर कर रहा हूँ!जो हिदू है उनके लिए तो है ही,लेकिन जो शर्मनिरपेक्ष,धर्मनिरपेक्ष हमारी सरकार और मीडियाकर्मी है जिन्होंने हिन्दू जगत के संतो तक को बदनाम करने में जी-जान लड़ा कर जो मेहनत की है,खासकर उनको तो आपकी ये पंक्तिया बुरी लगनी ही है!



जिनका जिक्र आपने किया है उनके समेत और भी बहुत से सन्तजन है जिनके बारे में मुक्त-हस्त लिखा गया है आपकी मिडिया में!वो पढने से सम्भवतः आप चूक गए,वरना आप ये बात नहीं लिखते!बहरहाल,मेरा इरादा आपकी भावनाओ को ठेस पहुंचाने का नहीं है,बस आपका लेख पढ़ कर जो सबसे पहले मन से निकला वो आप तक पहुंचा दिया!