डूब मरो रमण और डूब मरो चिदंबरम
कहते हुए दुख तो हुआ और शर्म भी बहुत आई, दुःख इसलिए की एक राज्य का मुखिया और एक सभी राज्यों को सँभालने वाला मुखिया दोनों ही नक्सलियों के आतंक को रोकने में समर्थ है और शर्म की बात ये है की इसके बावजूद भी इनको शर्म नहीं आई. बात ये नहीं की नक्सली ऐसा कब तक करेंगे सोचने वाली बात ये है की नक्सली ऐसा क्यूँ कर रहे है शायद इस बात पर आज तक किसी भी नेता या सुरक्षा अधिकारी की नजर नहीं गई. हाल ही में पता चला की छत्तीसगढ़ के राजनेता नक्सिलयों के निशाने पर है . मैं पूछता हूँ की जब जवान नक्सलियों के निशाने पर होते है तब ख़ुफ़िया विभाग क्या सोते रहते है ???????? नक्सली समस्या ख़तम करने के लिए पहले ये समझना जरुरी है की नक्सली चाहते क्या है ???????? सबसे बड़ी बात ये है की नक्सली समस्या हल करने में जितना हाथ राज्य नेताओ का हो सकता है उतना ही हाथ आज के दौर की मीडिया का भी हो सकता है . आज से चंद महीनो पहले किसी ने दंतेवाडा का नाम तक नहीं सुना था पर नक्सलियों ने जैसे ही ८३ जवानों की जान ली वैसे ही सभी चैनल दंतेवाडा पहुँच गए मतलब जहाँ लोगो की जान जाएगी वहां मीडिया होगी सब ने दिखाया की कितने लोग मरे, कितने विदवा हुए, कितने बच्चों क सर से उनके बाप का साया हट गया मगर ये किसी ने नहीं दिखाया की नक्सलियों ने ऐसा किया क्यूँ ???????? शायद इस बात का पता लगाना ही मीडिया नहीं चाहती है और ना ही कोई नेता क्यूंकि नक्सली हादसों से दोनों को ही फायदे है. नक्सली समस्या हल हो सकती है सिर्फ एक ही तरीके से वो है पहले ये समझना की नक्सली चाहते क्या है ???????? इसलिए किसी ना किसी को ये पता लगाना ही होगा और इसलिए मैं कहता हूँ "जागो भारत जागो".
9.5.10
डूब मरो रमण और डूब मरो चिदंबरम
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1 comment:
किस किस को डुबाकर मारोगे जी
यहाँ तो अगर शर्म से मरने लगे तो पूरी राजनीती खतम हो जायेगी
इतने गिरे हुए ह लोग
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