काफी समय से मैं सजातिय गौत्र में विवाह की खबरें पढ़ रहा हूं। देश के उत्तर भारत में इस सम्बंध में काफी खून खराबा हो रहा है। भाई अपनी बहनों की मार रहे है। माता-पिता अपने बच्चों की बलि चढ़ा रहे है। सगौत्र विवाह और खाप पंचायतों के फैसलों को भी मैंने पूरे ध्यान से पढ़ने की कोशिश की है। एक तरफ से सारा मीडिया सगौत्र विवाह के खिलाफ है और वो समाज में नईं सोच पैदा करने में जुटा है। क्योंकि मीडिया ही है जिसमें वो ताकत है जो समाज, क्षेत्र, राज्य और देश की सोच में बदलाव ला सकती है।
लेकिन अब सवाल ये उठता है क्या वाकई हमें इस मुद्दे पर बदलाव की आवश्यकता है...
"सगौत्र विवाह के खिलाफ खाप पंचायतों ने जो भी फैसले दिये है मैं उनका समर्थन करता हूं क्योंकि इन पंचायतों पर समाज के प्रति दायित्व होता है कि वो कैसे भी अपराध, कुरीतियों से समाज को बचाये। यदि ऐसे में उसे कहीं पर सजा भी देनी पड़े तो वो इसके लिए हकदार होती है।"
बहरहाल, प्रत्येक परिवार, समाज, क्षेत्र, राज्य और देश की अपनी अलग संस्कृति, विचार, रीति-रिवाज, सोच और कार्य करने का तरिका भिन्न होता है। ऐसे में यदि वो इसके विपरीत कोई काम करे तो वो निश्चित रूप से अपनी पहचान खो देगा। बगैर पहचान के आप स्वंय को कैसा महसूस करेंगे, शायद मुझे कहने जरूरत नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड़ यानि लगभग देश के काफी हिस्सों पर सगौत्र विवाह की संस्कृति नहीं है। इन जगहों पर ऐसा करना ना सिर्फ अपराध होता है, बल्कि ये पाप भी माना जाता है। ऐसे ही अपराध और पाप को रोकने के लिए खाप पंचायत और परिवार वाले ना चाहते हुऐ भी ऐसे फैसले लेने को मजबूर है। यहां पर झूठी शान की नहीं अपितु आन की बात है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ये हवाला दिया कि हिन्दुओं के किसी भी वेद, पुराण, साहित्य में इस बात की मनाही नहीं है कि एक गौत्र में विवाह नहीं होना चाहिए। माना कि हिन्दु वैदिक साहित्य में ऐसी बात का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है, शायद इन साहित्य लेखकों से जरा सी चूक हो गई, जो ये नहीं सोच सके कि भविष्य में बुद्धि इतनी भी भ्रष्ट हो सकती कि सगौत्रिय लोगों में शादियां होने लगे। इस बीच ऐसे उदाहरण आने लगे कि देश के दक्षिण हिस्सों में हिन्दुओं के कुछ वर्णों में एक ही गौत्र अथवा करीबी रिश्तों में शादी को पवित्र और अच्छा माना जाता है। विश्व में ही नहीं, मुस्लिमों और कईं धर्मों सम्प्रदायों में भी करीबी रिश्तों में विवाह हो सकता है। लेकिन ये वहां कि अपनी अलग संस्कृति है वो उसी के साथ जीना चाहेंगे।
अगर भगवान नें मुझे वहां पैदा किया होता तब भी मैं यही लेख लिखता।
मेरे मन मे काफी विचार है लेकिन समय के अभाव के कारण आगे नहीं लिख पा रहा हूं। अगर इस लेख में कोई गलती हो तो आपसे अपेक्षा करता हूं कि मार्गदर्शन करेंगे।
धन्यवाद।
सूरज सिंह।
25.6.10
नहीं होना चाहिए एक गौत्र में विवाह
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7 comments:
Suraj ji, aapne sagotra vivah ke virodh ke lie khap panchayaton ke faisale ka samarthan kiya hai, par shayad aap bhool rahe hain ki kisi ko bhi kisi ki jaan lene ka haq kisi bhi samaj ne in tathakathit thekedaron ko nahin diya hai.
Aisi khap panchayaten jiname samaj ke paise waale, padelikhe-anpadon ka prabhutva hai jahan kisi mahila ka pratinidhitva nahin hai, kisi dalit ko bolane ki aazadi nahin hai, kisi yuva ko apne vichsr prakat karane ki aazadi nahin hai, aap jaise prabuddh log kaise samarthan kar sakte hain.
Aisi Khap panchayate jo mahilaon par hone wale sabase bade atyachar 'balatkar' par bhi sirf 100 jute marne ki saja sunati hai, use nyay karne ka adhikar kaise diya ja sakta hai. Zyadatar khap panchayaten purvagrahon se grasit hain, aur inhen aise faisale karne ka koi haq nahin diya ja sakta hai.
Aur mahilaon par hone wale gharelu atyachar ke mamle me ye khap panchayate chup kyon rah jati hain? jahan bhai ya baap hi bahin ya betiyon se balatkar karte hai?
agar gharelu atyachar ke aise mamlon ke aankade aap dekenge to payenge ki aise maamle bhi unhin kshetron me zyada hote hain jahan ye khap panchayaten payi jaati hain. Vahan kyon mritudand nahin diya jata hai, vo gharelu mamle kaise ho sakte hain? Ye saari khap panchayate katipay swarthi tatvon ki kridasthali hain atah inke faisale ka samrthan na karen aur kam se kam kisi ki jaan izzat ke naam par lene ko to kisi bhi roop me zayaz na thahrayen.
Sagotra vivah ka samrthak main bhi nahin hun par main aisi khap panchayaton aur aise sarthakon ki bhartsanaa kartaa hun, ummeed hai aap bhi inki asliyat ko samjhenge. kripya in logon ke hath ka khilona na bane, apni soch ko gahrai den aur aise ghinaune krityon ki tareef ke bajay virodh karen.
एक गौत्र में विवाह न हो ये तो ठीक है, पर कही हो भी जाय तो बात हत्या तक पहुचे और उसे सामाज का एक वर्ग समर्थन करे ये तालिबानीकरण ही हैं, दरअसल बात इज्जत से जोड कर देखी जाना ही समस्या हैं बाकी सब तो नमूनागिरी हैं न तो कोई वैज्ञानिक तथ्य हैं और न ही कोई बाध्यता ....
इसी समाज में कई बेटीया घर में ही चचेरे ममेरे की हवस का शिकार हो जाती हैं तब तो बात दबा देते हैं और मीडिया के सामने भाषण देते हैं
इसलिऐ समझाईस हो तो बेहतर हैं आज के बच्चे नासमझ नही हैं उनके बिबेक पर छोड दिया जाऐ
....सतीश कुमार चौहान भिलाई
अश्वनी जी, मेरे विचारों को पढ़ने के बाद उस पर इतना बड़ा लेख लिखने के लिए धन्यवाद।
मैं भी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं। फैसले की जो बात मैनें कही वो दंड़ के सन्दर्भ में बिल्कुल भी नहीं थी। वो केवल स्थानिय समाज के नियम और तौर तरीकों को ध्यान में लेकर कही थी। मैं भी इस बात को मानता हूं कि देश में कानून के अलावा किसी को भी प्राण दंड़ देने की अनुमति नहीं है। खाप-पंचायतों में ढे़रों कमीं है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां केवल प्रभुत्ववादी लोगों की ही चलती है। लेकिन यहां बात केवल एक ही गौत्र में विवाह को लेकर कही गई थी। आधुनिकता के इस दौर में बदलाव जरूरी है। लेकिन सभी मामलों में यह शायद मेरे विचारों से नहीं होना चाहिए।
मैं आपके मार्गदर्शन का इंतजार करूंगा।
सूरज सिंह।
सतीश जी, आपके विचारों के लिए धन्यावाद। मैं आपके विचार से पूरी तरह संतुष्ट हूं। खाप पंचायतों को हत्या या ऐसा दंड देने का बिल्कुल भी अधिकार नहीं होना चाहिये। रही बात चचेरे ममेरे हवस वाली बात ये बेहद शर्म की बात है। इस मामले में जो भी कुछ होता है वो कम से कम छिप तो जाता है। लेकिन एक गौत्र विवाह वाले मामले में हम कम से कम समर्थन तो नहीं दे सकते है।
आपके सुझावों का इंतजार रहेगा।
धन्यवाद
सूरज सिंह।
सूरज जी, मै आपके विचारो से पूरी तरह सहमत हूँ, वर्ण प्रथा जो सदियों से हिन्दू धर्म में चला आ रहा है वह क्या है यही ना कि हम वान से यह ज्ञात करते है कि हमारा वान और लड़की पक्छ का वान एक तो नहीं है, अगर एक है तो कभी ना कभी इनसे हमारा खून का रिश्ता रहा है और फिर वहां शादी नहीं होती है, आज के समय में हम इन पुरानी बातों को भूल गए है जिसके चलते नई पीढ़ी यह गलतियाँ करती जा रहा है लेकिन हमारे बुजुर्ग उन बात्तों को आज भी याद रखे है. खाप पंचायतों को हत्या दंड देने का बिल्कुल भी अधिकार नहीं होना चाहिये, क्यों कि यह गलत है!
इस विषय पर चर्चा होती रहती है । विचार व तर्क संगत हैं ।
प्रिय सूरज जी,
आप के इस लेख के संधर्भ में एक बात कहना चाहूँगा की जो लोग इस मामले को केवल सगोत्र विवाह तक सिमित मान कर चल रहे हैं | मेरे विचार से या तो वो अनजान बन रहे हैं या फिर उनको इस विषय की पूरी जानकारी नहीं हैं| वो मामले की गंभीरता को न पहचान कर सिर्फ जख्मों को हवा दे रहे हैं| जबकि सामान गोत्र सिर्फ इस स्थिति में माना जाना चाहिए जब लड़का अपने गोत्र की लड़की से विवाह कर के लाये| सिर्फ इस लिए की किसी गोत्र विशेष की लड़की उस गाँव में व्याहता आई है जिसमे लड़की के समान गोत्र के भी कुछ परिवार रहते हैं तो क्या यह बात सगोत्र विवाह के अंतर्गत आती है आप कृपया बताये ? और वर्तमान में सिर्फ इसी बात को सगोत्र विवाह का रूप देकर पर्चारित किया जा रहा है| अगर पुराने और नए सभी केसों पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे की 95% से ज्यादा सभी उपरी लिखित केस थे| इन मुद्दों पर इन सर्वखाप पंचायतों के जो फैसले आये वो इन के तालिबानी करण की मिसाल हैं| आप उस चीज को जायज ठह्त्राने की भूल कर रहे हैं जो विवाह के वर्षों बाद भी एक युगल को भाई - बहिन कहलवाते हैं| जो की इन पंचायतों के मानसिक दिवालियेपन और थोथे दंभ का परिचायक है| इस से समाज का कोई भला नहीं होने वाला|
जहाँ तक सगोत्र विवाह की बात है तो अगर लड़का-लड़की एक ही गोत्र से नहीं होने चाहियें इस बात को तो साइंस भी सिद्ध कर चूका है की ऐसा करने से से आने वाली पीढ़ियों में भयंकर जेनेटिक समस्याए आ सकती है| और आज का युवा ऐसा भी नहीं की वो इस बात से अनजान हों| वो ऐसा हरगिज नहीं करेगा, आखिर इस का फल अंत में उसको भी तो भोगना है| तो ज्यादा फैसला तो उस पैर ही छोड़ देना चाहिए| मैं आपके विचारों से रतिमात्र भी सहमत नहीं हूँ| कभी रात को अकेले बैठकर आत्म-विश्लेषण करके देखे और अंतरआत्मा से जो आवाज आये उसका अनुकरण करे| मेरे ये मेसेज देने का अभिप्राय किसी प्राणी विशेष की भावनाओ को ठेस पहुंचना नहीं है अपितु सच्चाई को उजागर करना है| जो भी हो रहा वो ठीक नहीं है|
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