(उपदेश सक्सेना)
आज विश्व पर्यावरण दिवस है, एक बार फिर “पृथ्वी के आवरण” पर देश-विदेशों में चिंताएं जताई जा रही हैं. मगर आज जिस हद तक पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है उस पर चिंता जताने के लिए महज़ एक दिन चिंतन-मनन करना बेमानी है.हालांकि अत्यंत प्रदूषित पर्यावरण के बीच हमारे लिए यह सुखद हवा के झोंके जैसा है कि दुनियाभर में पर्यावरण को संरक्षित और सुरक्षित करने वाली जीवनशैली जीने में भारतीय अव्वल नम्बर पर हैं। नेशनल जियोग्राफिक-ग्लोबस्कैन की तीसरी वार्षिक रिपोर्ट में भारतीयों ने “सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी” का नारा बुलंद किया है.
जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यह कहते हैं कि भारतीय लोग ज़्यादा कारें खरीदते हैं, तो एकबारगी हम बुरा माँ गए थे, मगर इस बयान के पीछे की सच्चाई को भी समझना होगा.सेंटर फॉर साइंस एंड इनवॉयरमेंट के अनुसार, भारत में अन्य देशों की तुलना में कारों का घनत्व कम है.
सर्वे के अनुसार, 81 प्रतिशत भारतीय सार्वजनिक यातायात प्रणाली या मोटरसाइकिल या स्कूटर को प्राथमिकता देते हैं। इस वजह से भारत में प्रदूषण उत्सर्जन की मात्र अन्य देशों की तुलना में कम हैं। दरअसल चीनी बाशिंदों के बाद भारतीय ही हैं जो अपने कार्यस्थल के करीब रहना पसंद करते हैं।
ऐसे में जब ग्लोबल वार्मिंग ने पूरी दुनिया को पसीना छुड़वा दिया है और बीते सौ सालों में पृथ्वी की सतह का तापमान भी एक डिग्री तक बढ़ गया है अब इस सदी में तापमान में और भी तेजी से वृद्धि होने की आशंका है। तापमान में इस वृद्धि से विश्व की खाद्य सुरक्षा पर घातक प्रभाव पड़ेगा। यदि वैश्विक वार्मिंग पर अंकुश नहीं लगाया गया तो खाद्य पदार्थों का उत्पादन 30 प्रतिशत तक घट सकता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक तापमान में प्रति डिग्री सेल्सियस की बढ़त के साथ भारत में गेहूं की उपज दर में प्रति वर्ष 60 लाख टन की कमी आएगी। रिपोर्ट यह भी कहती है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा प्रभाव दक्षिण एशियाई देशों पर पड़ेगा, जिससे इस क्षेत्र में रह रहे 1.6 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और संयुक्त राष्ट्र के दुनिया से भूख और कुपोषण मिटाने के प्रयास अप्रभावी हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ने वाली है। इससे बचने के लिए कृषि में भारी निवेश और पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना होगा। जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मसला है जिसके लिए निर्विवाद रूप से सबसे ज्यादा विकसित देश जिम्मेदार हैं। इसलिए पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने की पहली जिम्मेदारी विकसित देशों की ही बनती है।
5.6.10
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2 comments:
paryawarn diwas par matra 1 din ki chinta se kuchh nahi hoga
तात्कालिक लाभ ने पर्यावरण दूषित किया है । लेख प्रशंसनीय ।
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