असफलता दु:ख का विषय होता है यह सामान्य मनोवैज्ञानिक तथ्य है. किंतु राष्ट्रकुल खेलों की तैयारी में असफ़ल कलमाड़ी साहब को नवयुवकों ने जिस तरह अपमानित किया वो सबसे शर्मनाक घटना थी.यह एक प्रमाण था कि हमारे युवा अपने साथ कितनी नकारात्मक उर्ज़ा को ढो रहे हैं. गलतियां भूल और अपराध सामान्य तया परिस्थिति वश होते हैं. किसी भी दशा में किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति के सुखाचारों का हनन नहीं करना चाहिये. हो सकता है कि श्री कलमाड़ी का दोष न भी हो और यदी है भी तो उनको रेस्त्रां में उनका अपमान शोक मनाने का विषय है. ये अलग बात है कि सुरेश कलमाड़ी असफल रहे उनकी असफलता को उनके व्यक्तिगत जीवन में मिले मानवाधिकारों से जोड़ा जाना सर्वथा अन्याय है. यह कुंठा है ही थी इससे देश प्रेम किधर साबित होता है बताएं ? देशप्रेम की सही परिभाषा में सबकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के प्रति भावों का हमारे दिलो-दिमाग में होना ज़रूरी है. हम आम भारतीय की हैसियत से सुखाचारों के हनन करने वालों को सतर्क कराना हम सबका दायित्व है. कलमाड़ी दोषी हैं या नहीं इसका निर्धारण रेस्त्रां में हो यह दर्द का विषय है.
2.10.10
अगर सच्चे भारतीय हो तो कुंटित क्यों..?
Posted by Girish Kumar Billore
Labels: कुण्ठा, युवकों, राष्ट्रकुल-खेल, सुरेश कलमाड़ी
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