निशंक पर निशाने का अजीब तरीका
पिछले कई दिनों से उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के विरोधियों ने उनकों बदनाम करने का नया तरीका ढूंढ लिया है। उनके जनहित के कार्यो से बौखलाएं विपक्षियों ने अब मीडिया के कंधे पर बंदूक रख कर उन पर निषाना साधना षुरू कर दिया है। लेकिन मुख्यमंत्री ऐसे हमलों को दरकिनार कर अपने राज्य में आई प्राकृतिक आपदा से जूझते लोगों के आंसू पोछने में व्यस्त है। उनके इस संयम ने उनके विरोधियों की योजनाओं पर पानी फेर दिया है।
मुख्यमंत्री डा. रमेष पोखरियाल निषंक निष्चित ही देष के ऐसे एकमात्र मुख्यमंत्री है जिनके पास एक चतुर राजनेता होने के साथ ही मंझा हुआ पत्रकार और संवेदनषील साहित्यकार व भावुक कवि होने का अनुभव भी है और ष्षायद यही कारण है मात्र एक साल के अल्प कार्यकाल में उन्होंने जो लोकप्रियता और प्रसिद्धि अर्जित की है वह चमत्कार सी दिखलाई पड़ती है। मैं ये सारी बाते हवा में नहीं कह रहा हूं बल्कि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है।
आज पूरे भारत में उन्हें सबसे युवा,सर्वोत्तम मृदुभाषी और निरन्तर जनहित का चिन्तन करने वाला राजनेता माना जाता है। ऐसा सिर्फ उनकी पार्टी भाजपा नहंी बल्कि विपक्षी कांग्रेस भी मानती है। पूरा देष उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की छवि देखता है। 27 जून 2009 को उत्तराखंड के पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर जब उन्होंने कार्यभार संभाला तो उनके सामने एक नहीं कई चुनौतियां थी।
एक तरफ जहां लोकसभा चुनाव में प्रदेष से पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था वहीं विकास नगर का उपचुनाव उनके सामने मुंह बाएं खड़ा था। चूंकी लोकसभा में हार का ठीकरा बीसी खंडूरी के सिर फोड़ा गया था तो उनसे इस चुनाव में निष्पक्ष मदद की गुंजाइष कम थी। जबकि दूसरी तरफ खुद को मुख्यमंत्री बनने की आस लगाए भगत सिंह कोष्यारी भी रमेष के मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर बहुत खुष नहीं थे। लेकिन निषंक ने अपने सद् व्यहार और राजनैतिक चातुर्य से न सिर्फ विकास नगर विधानसभा उप चुनाव को जीता बल्कि राज्य में कई लॉबियों में बंटी पूरी पार्टी को एकजुट करने में भी कामयाबी हासिल की।
इस सफलता के बाद ष्षुरू हुआ उनका सफर तेजी से आगे बढ़ा फिर उनके सामने आया सदी का सबसे बड़ा आयोजन कुंभ 2010। इसमें भी मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक कौषल से जहां केन्द्र से अच्छी खासी मदद हासिल की वहीं उस पैसे का दुरूपयोग न हो सके इसका पूरा प्रबंध किया। फिर उनके इस कार्य ने ऐसा करिष्मा दिखाया कि महाकुंभ-2010 अब तक का सबसे अच्छा और सफल आयोजन साबित हुआ। इस कुंभ में जहां पहली बार हरिद्वार में सबसे ज्यादा पक्का काम हुआ वहीं छोटे से स्थान में करोड़ों लोगों के नहाने के प्रबंध और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था ने उत्तराखंड को पूरी दुनिया में एक मॉडल स्टेट के रूप में प्रस्तुत किया। अमेरिका के एक प्रबंधन विषेषज्ञ ने इसे प्रबंधन का सबसे बेहतरीन उदाहरण बताते हुए अपने संस्थान के कोर्स में इसे ष्षामिल करने का आदेष दिया।
इस बीच मुख्यमंत्री अपने विपक्षियों की साजिषों से भी लगातार दो चार होते रहे। प्रदेष में लगने वाली जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में जहां उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे वहीं पूरी मीडिया ने भी उनको कटघरे में खड़ा किया लेकिन वे इससे घबराने की बजाय अपने तर्को और तथ्यों के साथ अपनी बेगुनाही का सुबूत पेष किया। इतना ही नहीं इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जब उन्हें क्लीन चिट दे दी और बाद में इस मामले में उन्हें लगा कि कुछ गलत हो सकता है। उन्होंने तुरंत उन परियोजनाओं के आवंटन को रद्द कर दिया और उसके दोबारा और पारदर्षी आवंटन का आदेष जारी कर दिया। इस मामले में देखा जाए तो इससे पहले प्रदेष में उर्जा की कोई नीति ही नहीं बनी थी । उन्होंने तुरंत इसको गंभीरता से लिया और उत्तराखंड उर्जा नीति का निर्माण किया।
खैर ये तो उनके राजनैतिक कौषल की बात हो गई। प्रदेष के अनुभवी लोगों से इस बारे में बात करने पर लोग कहते है कि डा. निषंक एक अत्यन्त ही गरीब किसान परिवार से आते है और उन्होंने प्रदेष की समस्याओं को बहुत ही नजदीक से न सिर्फ देखा है बल्कि उसे झेला भी है। यही कारण है कि उन्होंने 1991 में कर्ण प्रयाग विधानसभा सीट से दिग्गज कांग्रेसी षिवानन्द नौटियाल को पछाड़ दिया था। क्यों कि इन्होंने पूरे चुनाव में व्यवहारिकता को महत्व देते हुए चुनाव प्रचार किया था।
इस लेख मैं उनका महिमा मंडन नहीं करना चाहता हूं लेकिन उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं से अवगत कराने के लिए इन सबका उल्लेख आवष्यक था इसलिए कर दिया।
अब आते है पत्रकारों के साथ उनके व्यवहार की बातों पर। उन्होंने अपना अखबार सीमान्तवार्ता तब ष्षुरू किया जब अखबार निकालना घाटे का सौदा माना जाता था। उनके पत्रकारीय अनुभव और मानवीय गुणों के चलते सीमान्तवार्ता अखबार देहरादून का लोकप्रिय अखबार बना। इस अखबार के प्रकाषन के दौरान ही उन्होंने पत्रकारिता का व्यहारिक प्रषिक्षण प्राप्त किया।
आज षायद वे देष के एक मात्र अकेले ऐसे मुख्यमंत्री है जो किसी भी प्रेसकांफ्र्र्रेेस में सभी पत्रकारों को उनके नाम से बुलाते है और न केवल उनका हालचाल लेते है बल्कि जितना संभव होता है सार्वजनिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर उनकी मदद भी करते है।
इस बात की पुष्टि देहरादून के किसी भी पत्रकार से की जा सकती है। हां चूकी ये प्रदेष बने अभी मात्र 10 साल ही हुए है और कई ऐसी परंपराएं है जिनमें अभी सुधार होना बाकी है तो कई गलत परंपराएं भी यहां विकसित हुई है। उन्ही गलत परंपराओं का विरोध करने पर अगर कोई पत्रकार मुख्यमंत्री को अपना दुष्मन मान ले और उन पर पत्रकारिता के दमन करने का आरोप लगाने लगे तो उसको किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता। दूसरा इस प्रदेष में षासन के साथ ही प्रषासन नाम की चीज भी है।
प्रषासन जो भी काम करता है वह कानून की हद में करता है और अगर ऐसा नहीं करता है तो उसकी मुखालफत भी की जा सकती है जिसके लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है। तो प्रदेष का कोई अधिकारी वह चाहे पुलिस प्रषासन का हो या सूचना एवं लोक संपर्क विभाग का उसके किसी कार्य को मुख्यमंत्री द्वारा रचित साजिष घोषित करना बिल्कुल गलत है। जिसका पिछले दिनों खूब हल्ला किया गया और बेबुनियाद आरोप लगाए गए। जहां तक बात रही मुख्यमंत्री और पत्रकारों के बीच संबंधों की तो इसका प्रमुाण है प्रदेष के सम्मानित पत्रकार आलोक अवस्थी,षाक्त ध्यानी,मनमोहन षर्मा,उमेष जोषी आदि आदि। इन सभी लोगों के यहां बिगत दिनों किसी न किसी की मृत्यू हुई और मुख्यमंत्री किसी के घर जा कर तो किसी को फोन पर बात कर अपनी पूरी सहानुभूति जताई और सभी प्रकार की मदद करने का आष्वासन दिया।
इसके बाद भी जब एक पत्रकार संगठन ने सरकार पर आरोप लगाए तो उन्होंने तुंरत उसका संज्ञान लिया और उनकी षिकायतों का तत्काल निवारण किया। दूसरा पत्रकारों के प्रति उनके मन में कितनी संवदेना है इसका एक और उदाहरण देहरादून के ख्यातिलब्ध पत्रकार संजय श्रीवास्तव जो उत्तर प्रदेष के जौनपुर जनपद के निवासी है लेकिन राज्य गठन से पहले से ही यहां की पत्रकारिता की एक पत्रकार के रूप में सेवा कर रहे है। उन्हें मुख्यमंत्री बिगत दिनों अपनी जौनपुर यात्रा के दौरान अपनी पहल पर अपने विषेष विमान में अपने साथ सिर्फ इसलिए लेकर गए जिससे उनके जनपद में संजय का सम्मान होने के साथ ही ये बात भी साबित हो सके िकइस प्रदेष की सेवा करने वाले हर व्यक्ति के लिए मुख्यमंत्री के हृदय में कितना सम्मान है।
मैं यहां एक छोटा पत्रकार हूं मेरा यहां के ष्षासन प्रषासन से कुछ लेना देना नहीं लेकिन एक अच्छे व्यक्ति के चरित्र हनन को लेकर हो रहे कुत्सित प्रयासों को सहन न करने की स्थिति में ये विचार और उद्गार व्यक्त करने का विचार बना।
धीरेन्द्र प्रताप सिंह
4.10.10
निशंक पर निशाने का अजीब तरीका
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
you are absolutely true. i salute to nishank ji and his governance.
Post a Comment