उस दिन मैं अकेला बैठा हुआ था, मन काफी बैचेन था और कहीं भी मन नहीं लग रहा था। न जाने क्यों एक अजीब सी उदासी छाई हुई थी। तभी मोबाइल पर मुन्नी बदनाम हुई की धुन बजी, मैंने मोबाइल को देखा तो एक अननॉन नंबर नजर आ रहा था। मैंने हलो किया तो उधर से संगीता की आवाज आयी।
पहचाना...
आवाज में एक उल्लास और खुशी नजर आ रही थी
हां मैने कहा इस आवाज को मैं कैसे भूल सकता हूं। कैसी हो? और कहां हो?
मैं दिल्ली में ही हूं। और तुमसे मिलना चाहती हूं।
मैंने कहा, कहां पर तुम मिलना चाहती हो
सीपी आ जाओ
ठीक है मैं आधा घंटा में सीपी पहुंच जाऊंगा
मैं अनमने मन से उठा और जेब में हाथ डाला तो देखा सिर्फ दो सौ रूपये पड़े हुए थे
मैं सोचने लगा कैसे दो सौ रूपये में काम चलेगा इतने दिन बात मिल रही है क्या सोचेगी कि मुझसे खर्चा करा रहा है। एक बार सोचा मना कर दूं लेकिन सोचा मिलने में हर्ज ही क्या है और थोड़ी ही देर में तैयार होकर मैं सीपी के लिए निकल पड़ा।
ठीक आधा घंटा में मैं सीपी मंडी हाऊस के पास संगीता के पास था।
7.11.10
जिंदगी
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