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5.1.11

आकाश में उड़ता परिंदा


आकाश में उड़ता परिंदा
दिनांक – 04 -01-2011
जब देखता हूँ मैं उड़ते हुए उन रंग-बिरंगी पतंगों को आकाश में,
न जोने क्यों विचारों की पतंगें भी उड़ने लगती हैं नीले-नीले अम्बर में।
उंगलियों के इशारे पर नाचने की फितरत होती है इन सभी पतंगों में,
उंगलि‍यों पर नचाने की खूब फितरत होती है उन पतंग बाजों में।
तभी देखा एक छोटी सी चिड़िया जो उड़ रही थी इन पतंगो के बीच में,
ढ़ूंढ रही थी बह अपना रास्ता जल्दी से पहुंचने को अपनी रात्रि आशीयाने में।
क्या खूब पहचानने कि संवेदनशीलता होती है इन सभी परिंदों में,
फिर भी भटक जाती है कभी-कभी उलझ के इन रंग-बिरंगी पतंगों में।
सूरज अस्त होने वाला है आओ लौट चलें अपने आशि‍याने में,
सुबह का भूला शाम को वापस लौट आये अपने आशि‍याने में,
फिर उसे भूला-भटका नहीं कहते हैं अपने इस मानव समाज में।

1 comment:

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

परिंदों के माध्यम से एक सशक्त सन्देश...बधाई हो