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16.1.11

प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र

प्रधानमंत्री पर घपले-घोटालों के खिलाफ यथोचित कार्रवाई करने में असफल रहने का आरोप लगा रहे हैं बीआर लाल

(आदरणीय)? प्रधानमंत्री, आपसे अपेक्षा है कि देश को प्रभावी और दृढ़ सुशासन मिले। शुरू में हम समझ रहे थे कि आप देश को इसी रास्ते पर ले जा रहे हैं, लेकिन लक्ष्य मिलने से बहुत पहले ही उम्मीद धुंधली पड़ने लगी है। हैरत की बात है कि स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेल समेत तमाम घोटालों की जानकारी जनता को है, लेकिन सरकार ने अभी तक उचित कार्रवाई नहीं की। समूचा देश सरकारी खजाने से हो रही लूट को असहाय होकर देख रहा है। यदि गली-कूचे तक में लोगों को इसकी जानकारी और चर्चा है तो कोई कारण नहीं कि आप इससे अवगत न हों। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में लोगों को मालूम है कि आपने घपलेबाजी को रोकने के लिए संचार मंत्री को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि बिना आपकी अनुमति के आवंटन न किया जाए, परंतु निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए कुछ ही दिनों में आवंटन के अंतिम आदेश जारी कर दिए गए और आपको सूचित भर किया गया। स्पेक्ट्रम जैसी राष्ट्रीय संपदा को आवंटित करने का दायित्व संबंधित मंत्री पर भरोसा करके दिया गया, लेकिन उन्होंने निर्धारित प्रक्रिया और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया। यह उस भरोसे के साथ विश्वासघात है जो सार्वजनिक हित के पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षित होता है। अपने पद के दुरुपयोग के कारण यह एक आपराधिक मामला बनता है। प्रधानमंत्री के रूप में आपकी जिम्मेदारी बनती थी कि आप राजा के विरुद्ध तुरंत कोई निर्णय लेते। आप उन्हें तत्काल प्रभाव से मंत्रालय से मुक्त कर सकते थे ताकि वह विभाग को प्रभावित करने की स्थिति में न रहते। इससे वह साक्ष्यों को मिटाने अथवा फाइलों को इधर-उधर न कर पाते। आप पूरे मामले की जांच का आदेश देकर मंत्री और दूसरे जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज कर सकते थे। उनकी संपत्तियों, बैंक लॉकरों आदि की समय रहते जांच की जानी चाहिए थी। ऐसा न करने से उन्हें साक्ष्यों को नष्ट करने और तमाम कागजातों व बेनामी संपत्तियों को इधर-उधर करने का मौका मिल गया। इन तथ्यों की जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह एक प्रधानमंत्री को प्राप्त उस कानूनी कर्तव्य निर्वहन की अवहेलना मानी जाएगी जो ऐसे अपराधों को रोकने के लिए उन्हें प्राप्त होता है। इस तरह राजा और दूसरे दोषियों को हतोत्साहित न करने के लिए आइपीसी की धारा 107(3) के तहत आपराधिक मामला बनता है। इस संदर्भ में गठबंधन के तर्क भी युक्तियुक्त नहीं माने जा सकते। यह दुखद है कि सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री इतने मजबूर हैं। मुख्य सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस की नियुक्ति का मामला भी निंदनीय है। देश में सत्यनिष्ठा और नैतिकता की निगरानी के इस सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले का आरोपी नहीं होना चाहिए। उच्च पद पर बैठे अथवा शक्तिशाली लोगों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के मामलों में भारत में शायद ही लोगों को दंड मिलता है। इस बारे में बहुत दुख के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों में सभी सरकारें दोषियों के खिलाफ रक्षात्मक ही रही हैं। भ्रष्टाचार, शोषण, टैक्स चोरी, सरकारी कोष के दुरुपयोग के मामलों में रसूखदार लोगों को बचाने का ही काम किया जाता है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं कि नौकरशाहों व मंत्रियों के खिलाफ अभियोजन या मुकदमा चलाने की अनुमति मिलने में वर्षो इंतजार करना पड़ा है। यह राष्ट्र के खिलाफ अपराध है। मुख्य सतर्कता आयुक्त मामले को ही लें। आपकी अध्यक्षता में गठित नियुक्ति समिति में गृहमंत्री और नेता प्रतिपक्ष शामिल थीं। नेता प्रतिपक्ष द्वारा पीजे थॉमस के खिलाफ चल रहे मामलों को संज्ञान में लाए जाने के बावजूद उन्हें अनसुना कर दिया गया। इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि संवैधानिक रूप से गठित यह समिति दोषपूर्ण है, क्योंकि तीन में से दो सदस्य सरकार की तरफ से होने के कारण बहुमत के आधार पर नेता प्रतिपक्ष की आपत्तियों को अनसुना कर दिया गया। यदि हम संसद में 2जी स्पेक्ट्रम को लेकर चल रहे गतिरोध को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि इसमें घोटाला हुआ है। मेरी चिंता यही है कि राजनीतिक विवादों के बीच साक्ष्यों और सुबूतों को गायब और नष्ट किया जा रहा है। एक तरफ सीबीआइ को इस मामले में मुकदमा दर्ज करने और जांच करने को कहा जाता है तो दूसरी तरफ समानांतर रूप से शुंगलू समिति भी गठित कर दी जाती है। ये सभी तथ्य खोजने वाली संस्थाएं हैं, जबकि मीडिया के माध्यम से इस बारे में पहले ही जनता को सब कुछ मालूम है और सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं। सरकार इस मामले पर जेपीसी जांच को एक राजनीतिक हथियार बताकर इनकार कर रही है, जबकि विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा है ताकि उत्तरदायित्वों के निर्वहन में हुई चूक की जांच की जा सके और ऐसी प्रक्रिया निर्धारित की जा सके जिससे भविष्य में ऐसे मामलों को दोहराया न जा सके, परंतु मेरे विचार से जेपीसी समेत कोई भी जांच साक्ष्य इकट्ठे करने के बाद ही ज्यादा प्रभावी होगी। साक्ष्यों को इकट्ठा किया जाना सबसे महत्वपूर्ण है। इतिहास इस बात का गवाह है कि निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए अतीत में सरकारों ने सीबीआइ का दुरुपयोग किया है, जिस कारण आज इस संस्था से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। सीबीआइ सरकार का एक अंग होती है, इस कारण यह स्वाभाविक है कि वह सरकार के विरुद्ध नहीं जा सकती। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए सरकार के नियंत्रण से मुक्त संस्था का गठन जरूरी है। यही कारण है अधिकांश देशों ने स्वतंत्र जांच एजेंसियों का गठन किया है।
(लेखक सीबीआइ के पूर्व संयुक्त निदेशक हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

1 comment:

Anonymous said...

sir aap to p.m sahab se puch rahe h me aap se puchta hu aapne apni service life me corraption ke virudh kiya koi kam kiya h
if yes plz. sir reply me am waiting yor ans.
my blog newsinindia4.blogspot.com
email-420manpreet@gmail.com