दूरसंचार घोटाले की सही सच्चाई
दूरसंचार में हुए घोटाले के कई राज आज भी दफन है . आज भी इस घोटाले का सब दस्तावेज़ पूर्व मंत्री ए.राजा के एक आई . टी .इंजीनियर के पास है .यह दस्तावेज़ अब तक किसी के हाथ नही लगे है . फिर इस घोटाले , इस पर बहस और मुकदमा किस आधार पर चलाया जा रहा है ? दरअसल दलीलों के बलबूतो पर मामला तूल पकढ लिया है . पूर्व मंत्री के सम्पर्क में इन दिनों हु ,इनके दस्तावेजों को देख और पढ़ कर सही मानों में, मै चकरा गया / पूर्व मंत्री के एकलौते मेन्देट होल्डर मिस्टर एस . दिवेदी (चेन्नई) के अनुसार घोटाले की शुरुआत सितम्बर 2007 में इ-टेंडर के समय हुआ है / पहला टेंडर एमटीएनएल,मुम्बई और दिल्ली के लिए हुआ था / जो क्लिक टेलीकम ,मुम्बई और इसके सहयोगी कम्पनियों के हवाले था / जिसमे कम्पनी को भी.ओ.आई.पी. , डाटा सेंटर और नेटवर्किंग का कार्य सोंपा गया था / लेकिन इन कम्पनियों के पास प्रोजेक्ट के लिए पैसे नही थे / क्योकि एमटीएनएल ने बिना वर्किंग कैपिटल वाले कम्पनियों को काम दे डाला था / आखिर बिना कार्यशील पूंजी वाले कम्पनी को टेंडर कियो दिया गया / इसके भीतर क्या राज है ? यह कम्पनी किसकी है ? इसके एम्.ड़ी. किन लोगो से ताल्लुक रखते है ? टेंडर मिलने पर यह कम्पनिया ग्रे मार्केट से धन बटोरने का प्रयास करना शुरू किया / धन बटोरने के कागजात कहाँ है ? इसकी भनक मिलते ही तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन को हटना पढ़ा था / मगर इन्हें हटवाया गया था / मंत्री मारन ने अपने चहेतों को टेंडर दिया था / इसमें करुणानिधि को कुछ भी हाथ नहीं लगा था / फिर करुणानिधि ने अपने बेटो-बेटियों को ध्यान में रखते हुए ए.राजा को दूरसंचार मंत्री की गद्दी पर बैठाया /याद कीजिये, इसके लिए करुणानिधि एक सप्ताह तक दिल्ली में अपना डेरा डंडा डाले रहे और ए. राजा को मंत्री बना डाला / मंत्री बनने के बाद राजा ने बी.एस.एनएल. के इतिहास का सबसे बड़ा टेंडर निकला /यह टेंडर 65 हजार करोढ़ रूपये का था / टेंडर को दो हिस्सों में बाटा गया,एक 25 हजार करोढ़ रूपये का एक्टिव , तो दूसरा 40 हजार करोढ़ का पैसिभ था / अभी मामला केवल एक्टिव का ही चल रहा है ,जाँच टीम ने दूसरा पार्ट क्यों छोढ़ रखा है ? श्री दिवेदी बताते है कि बी.एस.एन.एल.का सबसे में पार्ट पैसिव ही है / इस पार्ट में पूरे देश में 60 हजार टावर लगाने थे /इन टावरों के जरिये ही 2 जी , 3जी और 4 जी की सेवाएं भारत में उपलब्ध हो जातीं ! टावर का काम तीन वर्षों में पूरा करा लेना था /06 ,दिसम्बर ,2010 को यह अवधि भी समाप्त हो गयी /टावर का टेंडर टी.वी.एस.-आईस टेलीकम ,चेन्नई को दिया गया था /टी.वी.एस.का नाम आईस के साथ इसलिए जोड़ा गया था क़ि टेंडर आसानी से मिल सके /यह आईस कम्पनी किसकी है? यह कम्पनी बिलकुल फर्जी है / कम्पनी का पता बंगलोर के एक निजी चैनल के कार्यालय का है, यह निजी चैनल करुणानिधि की सबसे बड़ी बेटी सेल्वी का है/ आईस कम्पनी डेढ़ साल तक पूंजी जुटाने में लगी रही / कामयाबी नही मिलने पर ए.राजा और करुणानिधि दोनों ने मिलकर एक चेन्नई के कन्सल्टेंट की तलाश की / जो मिस्टर दिवेदी है/ दोनों ने अपने कम्पनी की पूंजी जुगारने की जिम्मेवारी और इसका अधिकार पत्र इन्हे दिया / यह पत्र 27,अगस्त,2009को दिया गया / पूंजी के लिए हन्ग्कौंग की सैफ एड्वरतायजर्स (अमरिका),कैलिफोर्निया की बरतनाम कैपिटल और इटली की जिस्टल ट्रेडर्स सहित भारत की कई नामी गरामी कम्पनियों ने गुप्त मीटिंग चेन्नई में सीएम के बंगले पर किया गया / जहाँ संजीव कुमार , सैमसन मैनुअल सहित कई दिग्गज लोगो ने टेंडर पर मोल भाव किया /दस प्रतिशत पर मामला तय हुआ /एक महत्वपूर्ण बात दिवेदी जी ने बताया की इस घोटाले में वही सब लोग दिखाई दिए जो पूर्व संचार मंत्री सुखराम के समय घोटाले में शामिल थे ! और वही दागी कम्पनियां भी !?
जर्नलिस्ट-मोहम्मद तस्लीम ,दैनिक जागरण
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