केंद्र सरकार की योजना मनरेगा अंतर्गत गांव-गांव में लोगों को रोजगार देने हेतु अनेको योजनाओं के साथ-साथ पोखरे बनवाने की योजना भी शासन के द्वारा शुरू की गयी,कार्य को तेजी से अंजाम देते हुए लगभग अधिकतर गांवों में पोखरों की खुदाई का कार्य संपन्न भी हो चुका है और जहाँ बाकि है पर कार्य तेजी से चल रहा है! पोखरे तो बन गए तथा शासन के आदेशानुसार इसके मैप को जमीन पर उतारने की भरपूर कोशिश भी की गयी,जिसकी बदौलत आज हर गांव में कहीं न कहीं पोखरा तो नजर आ ही जायेगा हाँ ये अलग बात है की उसमे पानी देखने के लिए काफी मसक्कत करना पड़ सकता है,ऐसे में लगभग हर गांव में पोखरों की जगह सिर्फ और सिर्फ गढ्ढे ही नजर आते है.पानी का तो कोशों दूर तक नामो निशान नहीं दिखता,यानि दूसरों की प्यास बुझाने वाले आज स्वंय एक एक बूंद पानी को तरसते नजर आते हैं! कभी-कभी गांवो में मुख्य आयोजनों या फिर विशेष त्योहारों पर पम्पिंग्सेट द्वारा इन गढ़ों को लबा-लब भर कर पोखरा का रूप तो जरुर दे दिया जाता है जो कुछ ही दिनों में दुबारा अपने पुराने रूप को वापस पा लेते हैं,ऐसे में जब अभी ठंढे मौसमों में ये पोखरे सूखे पड़े हैं तो गर्मी के महीनो यानि मई और जून जुलाई में इनकी क्या दशा होगी का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है! हर गांव में पिकनिक स्थल स्वरुप एवं गिरते जल स्तर को रोकने हेतु बनाये गए ये पोखरे कागजों में देखने पर किसी बड़े शहर में बने पार्कों या दर्शनीय पर्यटन स्थलों के मुकाबले बिलकुल भी कम नहीं दिखते लेकिन हकीकत में ये स्वंय को ही कोसते नजर आते हैं! कभी अनेको जीवों को अपने शीतलता से आकर्षित करने वाला नाम (पोखरा) आज लोगों की बाट देखते दिखाई पड़ते हैं! एक तरफ जहाँ अधिकतर जगहों पर इनकी सुरझा में किनारों पर लगे कटीला तर अभी से ढीले ढाले व जर्जर हो चुके हैं वहीँ दूसरी तरफ वातावरण को शुद्ध करने हेतु हरियाली ये तो शायद इनके हक़ में ही नहीं है क्योंकि हरियाली इनसे दूर-दूर तक नजर नहीं आती! कहीं पर इनके बगल में खड़े बिजली के पोल स्वंय करेंट पाने को इंतजाररत हैं तो कहीं स्वंय ये पोखरे पोखरे ही अपने बगल में इन खम्बों के गड़ने की बेसब्री से प्रतीछा करने में लगे हैं! ऐसे में जिस प्रकार शासन द्वारा इनकी रूप रेखा तैयार करने व जमीन पर इसे दर्शाने में तेजी दिखाया गया है शायद इन्हें सुरछित व सुसज्जित करने हेतु भी महत्वपूर्ण कदम उठाने की आज सख्त आवश्यकता जान पड़ती है! ताकि गर्मी के महीनो में इन्शानो के साथ-साथ अनेको प्रकार के पशु-पछियों को तपती गर्मी से कुछ राहत मिले एवं जल सम्बन्धी रास्ट्रीय एजंडा मूर्त रूप ले सके!
11.3.11
प्यास बुझाने वाले स्वंय तरस रहे पानी को
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2 comments:
तिवारी जी, सही लिखा है आपने । बधाई ।
rastogi.jagranjunction.com
तिवाङी जी आपने एकदम सत्य लिखा है
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