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22.4.11

मन की कैद - डॉ नूतन गैरोला



डॉ  नूतन गैरोला 

15 comments:

mridula pradhan said...

"मन की कैद......bahut sundar lika hai aapne.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अनूठी रचना!

सहज साहित्य said...

बहुत अच्छी चिन्तनप्रधान और सधी हुई कविता । बहुत बधाई नूतन जी !

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सत्यम जी..आभार आपका..

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

शास्त्री जी और रामेश्वर जी..धन्यवाद

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कविता का भाव-वृत्त विस्तृत है...
बहुत सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

निवेदिता श्रीवास्तव said...

कविता अपनी पूरी परिधि के साथ बेहद प्रभावी ....

Anupama Tripathi said...

अद्भुत काव्य .....
गहन सोच से भरी ...
बहुमूल्य ...मर्मस्पर्शी रचना
बधाई आपको ..!!

रश्मि प्रभा... said...

prabhawshali rachna

अपर्णा said...

nutan , sundar rachna .

दिगम्बर नासवा said...

Lajawaab bhaav hain kavita mein ...

संध्या शर्मा said...

बहुत सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

धीरेन्द्र सिंह said...

और इस जिज्ञासु घुमक्कड को...बेहद अच्छी प्रस्तिती. मन के विषाद को आपने बखूबी चित्रित किया है. टेबलेट के फोटो पर लिखी कविता जिंदगी के इस कड़वेपन का बखूबी अनुभव दे रही है.

अनामिका की सदायें ...... said...

behad prabhaavshali aur anuthi prastuti.

Sunil Kumar said...

अच्छी चिन्तनप्रधान कविता , नए विषय को उकेरा है | बहुत सुन्दर