श्री रामकृष्ण यादव (?) या बाबा रामदेवजी यद्यपि औपचारिक रूप से मात्र आठवीं कक्षा तक ही शिक्षित हैं , वास्तव में उन्होंने प्रचुर ज्ञान हासिल कर लिया होगा , अन्यथा विज्ञों में इतनी पकड़ आसान बात नहीं । वे अच्छी तरह से यह जानते हैं कि जो कुछ वे प्रचारित कर रहे हैं वह योग का एक अल्प महत्वपूर्ण पहलू है : योगासन । पर यह योग साधना का एक सार्थक सहयोगी अवश्य है । और , यह भी नहीं भूलना है कि जिन लोगों ने बाबा का आश्रय लिया है उनमें शायद ही कोई योगी हो । अगर उनके अनुयायी कुछ चाहते हैं तो वह है 'शारीरिक स्वास्थ्य '।
शरीर मात्र के लिए किया गया प्रयत्न विवेक सम्पन्न नहीं बना सकता । गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है ,
'सेवहीं राम सीय रघुवीरही । जिमी अविवेकी पुरुष शरीरही ॥'
रघुवंश में राजा दिलीप भी कहते हैं ,
'पिंडेषु अनास्था खलु भौतिके षु ॥ '२.५७ रघुवंश
अतः योग को लोगों ने सफल चिकित्सा के रूप में लिया और बाबा को एक करिश्माई चिकित्सक के रूप में ।
लोगों ने योगासन को अपनाया जिसे हठयोग भी कहते हैं ।
पर वैदिक मूल के आस्तिक दर्शन पतंजलि-प्रणीत योग के अंग हठयोग में भी अध्यात्मिक उन्नत्ति के मार्ग खुलते हैं । अतः योगासन करनेवाले में , उसके बिना चाहे भी , कुछ नैतिक उत्थान होता ही है ।
अब यह कैसे होता है ?
किसी विशेष मानसिक स्थिति में कोई विशेष शारीरिक मुद्रा बनती है । अगर वैसी मुद्रा बना ली जाय तो वह उससे जुडी मानसिक स्थिति को प्राप्त करने में सहायक हो जाती है ; जैसे , बालासन या शवासन में लेते रहने
पर नींद का आ जाना अथवा गहरी साँसों के साथ ध्यानस्थ होने पर मन का शांत हो जाना ।
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