Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

22.7.11

चंद सवालात

एक पुरुष ने जाने कितने महानरों को निगल लिया|
कभी सत्य पर चला नहीं जो सत्याग्रह का नाम लिया||
अब बसंत के गीत सुनाना पौरुष को मंजूर नहीं|
माँगे सुनी हुई हाय, अब इज्जत है सिन्दूर नहीं||
श्रृंगार आज अस्पृश्य हुआ, नंगापन पूजा जाता है|
सौ सौ मछली खाकर बगुला, बगुला भगत कहाता है||
कोई कहता ओसामा जी और कोई ओबामा जी|
लोकतंत्र के बाजारों में बिकती है सब्जी भाजी||
आतंकी का चारण बनकर राजनीती नतमस्तक है|
कालनेमि के हांथो में भगवद्गीता की पुस्तक है||
रामचरितमानस को जो पानी पी पी गरियाता है|
इंटेलेक्चुअल उम्दा सबसे भारत में कहलाता है||
यहाँ खून सस्ता बिकता, आँखों का कोई मोल नहीं|
उनको ही पूजा जाता है जिनका कोई रोल नहीं||
कुछ अध्यात्मिक शब्दों को जागीर बना कर बैठे हैं|
सत्य, अहिंसा सोने की जंजीर बना कर बैठे हैं||
उलटी सीधी परिभाषा गढ़ने वाला यह खादी है|
प्रश्नचिंह पर प्रश्न उठता हूँ बोलो आजादी है?
क्यों गाँधी का ग्रहण लगा है नेताजी के सपनों में?
सावरकर, आजाद, तिलक और मालवीय से अपनों में||
सूत कातने से शोषण से मुक्ति नहीं मिल सकती है|
भ्रामक प्रचार करने वालों यूँ नहीं दासता मिटती है||
यूँ ही अनुनय करने से, हाँ, कोई अधिकार नहीं देता|
फूल नहीं देता है जो सुन लो तलवार नहीं देता||
सावरकर, नेताजी जैसों ने जब खून बहाया है|
महाकाल के जबड़े से फलरूप आजादी पाया है||
और उसका सौदा करने वालों ने उसको काट दिया|
हाय हमारी भारत माता टुकड़े टुकड़े बाँट दिया||
हर टुकड़े पर अलग अलग टुकड़े की मांग उठाते हैं|
खंडित, खंड खंड करते हम खुद से बटते जाते हैं||
गैर कोई आता भारत का अधिनायक बन जाता है|
जन गण मन अधिनायक कह कर भारत शीश झुकता है||
पोप मरे तो मरे हमारा परचम क्यों झुक जाता है?
एक विदेशी के मरने पर भारत शोक मनाता है||
क्यों अब भी भारत माता भारत में क्रंदन करती हैं?
एक भिखारिन बनी हुई सबका अभिनन्दन करती हैं||
चीन सुरक्षा परिषद में हमको आँखे दिखलाता है|
ताल ठोंक कर पाक हमारी सीमा में घुस आता है||
कुछ आतंकी संप्रभुता को चिंदी चिंदी कर देते|
हम दानवी हितों की खातिर उनकी अगवानी करते||
क्यों प्रत्यर्पण पर एक छोटा देश हमें उलझाता है?
अन्तर्राष्ट्रीय विधि की धारा रोज हमें बतलाता है||
क्यों यासीन मालिक के पग पर नाक रगड़ता है भारत?
आखिर किससे भय है इसको, किससे डरता है भारत?
क्यों रोटी के टुकड़े पर हर चंद सियासत होता है?
भूखे नंगों का निर्वाचन में ही स्वागत होता है||
क्यों प्रतिभा पर आरक्षण है, महगाई बढती जाती|
इधर तिजोरी बढती जाती, उधर जान घटती जाती||
क्यों पौरुष प्रतिबंधित और नारीत्व कलंकित होता है?
भगवा पर लाठी बरसा कर संसद हर्षित होता है||
क्यों कलंक के कब्रगाह का ढहना निन्दित होता है?
रामलला पर शौचालय का मांग प्रासंगिक होता है?
क्यों भारत की ललनाएं शेखों की जीनत बनती हैं?
एक विदेशी वधु देश को रोज बेइज्जत करती है||
क्यों गांधी नेहरु की श्रापित छाया में हम रहते हैं?
विश्वमंच पर आदर के संग रोज निरादर सहते हैं||
वेश्याएं चड्ढी पर लक्ष्मी यंत्र बनाकर चलती हैं|
एक अजंता दिखा दिखा भारत को नंगा कहती हैं||
वीणावादिनी की काया पर भ्रष्ट तूलिका चलती है|
हम जिनको श्वेत वसन कहते यह उनको नंगा करती है||
क्यों भूखों को क्रास बांटने लोग यहाँ पर आते हैं?
पहले अल्लाह दे दे बाबा फिर हम पर गुर्राते हैं||
आखिर क्यों अनुदान हाजियों को मिलता हमको गोली?
इधर चिताएं जलती हैं और उधर निकलती है डोली||
वन्देमातरम विद्रोही को पद्मविभूषण मिलता है –
हमें बांटने का सपना जिनकी आँखों में पलता है?
डंकल की डुगडुगी बजाते नहीं अघाता है भारत|
उछल उछल कर हाइड एक्ट के लाभ गिनता है भारत||
भारत का निर्माण नरेगा और मनरेगा से होगा|
खेल, खिलाडी, अभिनेता या पापी नेता से होगा||
यह ऐसा निर्माण घूस संस्कृति की जय जैकारी है|
मक्कार नहीं भारत है पर लगता है कुछ मक्कारी है||
क्यों सिक्को पर अल्फांसो और क्रास दिखाई पडता है?
भ्रूणघातियों का पैशाचिक हास सुनाई पड़ता है||
क्यों घूस लेना और देना एक परम्परा सी लगती है?
मानवता दिक्भ्रमित सो रही और दानवता जगती है||
क्यों जीता भी खो देते, हारे की याद नहीं करते?
घात लगा कर जो बैठे उन पर प्रतिघात नहीं करते||
हिंसा का उत्तर प्रतिहिंसा, वाद का प्रतिवादी तेवर|
कौन शत्रु और कौन मित्र अब नहीं रहा कोई अंतर||
सात दशक होने को आये फिर भी सिसकी भरती है|
यह कैसी आजादी है जिसमे बस जान निकलती है?
और उफ़ भी कहने का मतलब एक कम्युनल होना है|
राजमुकुटधारी भारत का गिरवी रखते सोना है||
यहाँ नीति में भी अंतर हम दो का नारा लगता है|
और किसी को खुला छूट पैदा करने का मिलता है||
बस अब बहुत हुआ लोगों, जाने दो झांकी दिखलाई|
अपराध किया शायद मैंने यह देखों आँखे भर आई||

3 comments:

Bharat Swabhiman Dal said...

मन - मस्तिष्क को झंझोडती बहुत ही मार्मिक रचना ...... आभार ।

Bharat Swabhiman Dal said...

मन - मस्तिष्क को झंझोडती बहुत ही मार्मिक रचना ...... आभार ।मन - मस्तिष्क को झंझोडती बहुत ही मार्मिक रचना ...... आभार ।

Bharat Swabhiman Dal said...

मन - मस्तिष्क को झंझोडती बहुत ही मार्मिक रचना ...... आभार ।