Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

16.7.11

वह नाम मेरा इतिहास था...!

लघु प्रेम कथा

वह नाम मेरा इतिहास था...!

  • रविकुमार बाबुल


प्रेम जब जीवन में आता है तो पतझड़ में भी सावन का-सा अहसास दिला जाता है, लगता है कि प्रेम के आसरे सारी दुनिया को अपनी मुठ्ठी में किया जा सकता है। लेकिन ऐसा बहुत कम बार ही हो पाता है कि मुठ्ठी में यह दुनिया समा पाये? उसका भी प्रेम कुछ ऐसा ही था। उसने भी किश्तों में प्रेम को जो जिया था? दुनिया को प्रेम के आसरे मुठ्ठी में किया था, लेकिन सदैव उसकी मुठ्ठी से प्रेम, रेत की मानिंद सरकता रहा और उसका  हाथ कुछ अर्से बाद खाली हो जाता? इसी जद्दोजहद में वह बहुत दूर तक निकल आयी थी।
आज भी वह जिस प्रेम के आसरे शहर को छोडऩा चाहती थी, वह प्रेम ही उसे अपनाने को तैयार नहीं था। उसकी जिन्दगी दीवार पर टंगी घड़ी के पैण्डलूम की तरह हो चली थी, वह अनिर्णय की स्थिति में थी? लेकिन उसका प्रेम, उसके जिस्म का मुकाम हासिल कर , उसे बीच राह में छोड़कर चला गया था। उसके घायल मन की सुध, कभी उसके प्रेम ने ली ही नहीं? उसके बाद तो बीते कई बसंत में तमाम पत्ते उसके जख्मों को कुरेद कर चले गये थे। एक बार उसने कहा भी तो था, जिससे भी मैं आत्मीयता से मिली, उन सबने मेरा उपयोग अपने-अपने तरीके से किया। मैनें जो भी रिश्ता बनाना चाहा, उसे नजरअंदाज कर दिया, और अपने चाहे अनुसार मुझसे रिश्ता बनाया? तमाम रिश्तों का बोझ ढ़ोते-ढ़ोते उसके टखने दु:खने लगे थे। पर वह थी, कि अब भी तमाम रिश्तों की तुरपन में मशगूल थी। वह तमाम रिश्तों को सी कर ओढऩा और बिछौना बनाना चाहती थी, लेकिन वक्त के कमजोर धागे से बार-बार रिश्तों की तुरपन उधड़ जाती, और वह अपने नम आंखों से उसे देखती ही रह जाती? शून्य में झांकती आज वह कॉलेज के दिनों में पारकर पेन से टेबिल पर उकेरे गये नाम को, तमाम नामों के बीच खोज रही थी। जो उसने कभी उसके साथ रहते हुये, हमेशा-हमेशा के लिये उसके साथ रहने की बसीयत के रुप में लिखे थे?
तमाम गालियों और गुलाब के फूलों के बीच, टूटे हुये दिल का चिन्ह तो नजर आ रहा था, लेकिन उसको वह नाम नहीं दिख रहा था, जो कभी उसने इतिहास की पढ़ाई करते हुये प्रेम का इतिहास रचने की कोशिश में, पारकर की नींब घिस डाली थी? टेबिल पर ही नहीं दीवारों और ब्लैकबोर्ड के किनारों पर भी उसने जो नाम लिखा था, उसे शायद किसी ने पढ़ा जरूर था, तभी वह कुछ हल्का-सा हो गया था? उस हल्केपन में एक नाम उभर रहा था, मेरे द्वारा लिखे गये उसके नाम के साथ?
मैं उसे पढऩा चाहती थी, लेकिन पढ़ नहीं पायी, उसने भी कभी उस नाम को मेरे सामने नहीं पढ़ा था या लिखा था। अब हर जगह उसका नाम मैं पढ़ रही थी। लेकिन मेरे नाम के साथ उसका नाम कहीं लिखा नहीं मिल रहा था। मैनें जब अपने नाम के साथ उसके नाम को खोजकर पढऩे की कोशिश की, तब हर बार एक नया नाम, मेरे नाम के साथ लिखा हुआ मिला, और उसके हर नाम के साथ, एक ही नाम लिखा हुआ था।
अब समझ नहीं आ रहा था कि इतिहास लिखने में मुझसे कोई गलती हुयी है या फिर उसने इतिहास सच लिखा है? आज बोझिल कदमों से घर लौटते वक्त सोच रही थी, कि वाकई वह एक नाम मेरा इतिहास था, और तमाम कई नामों ने मुझे अपनी जिन्दगी में शामिल कर मुझे इतिहास बना दिया था? अब शायद ही मेरे दिल में दबे प्रेम के अवशेष को खोजकर कोई पता लगा पाये, कि मेरे दिल में उसका वजूद क्या था?

1 comment:

रविकर said...

आपकी ही पंक्तियाँ थी शायद --

जिन्हें हम चाहते थे वे शादी रचा रहे हैं ||
जो चाहती थी मुझको उसे मैंने भुला दिया ||