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2.8.11

अनुभव यारी का


बहुत ही सोचता था मै ज़माने भर के बारे में
पर दिखा दी मुझको ही मेरी औकात यारो ने
रहा गुमशुम बहुत सोचा और ये समझ आया
लगा दू घुमा कर मै भी एक लात सारो को
लगाई लात उनको तो मुझे दिखी मेरी मंजिल
दिखा दी मैंने भी अपनी औकात सारो को
निकल पड़ा हु अपनी मंजिल कि डगर पर अब मै
नहीं कोई सफ़र के साथ यारो में
बुरा मत मानना भाई ये सच्ची बात है बिलकुल
सिखाया है मुझको यही पाठ यारो ने
मनीष ....

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