क्या सभ्यता से असभ्यता की ओर ?
दिनांकः-1/8/2011
बेशर्मी का मोर्चा यानी स्लटवॉक महिला उत्पीड़न के विरूद्ध कल दिल्ली की सडकों पर लडकियां बेशर्मी का मोर्चा यानी स्लटवॉक निकाला। इस प्रदर्शन मे लड़कियां कम और लड़के ज्यादा नजर आ रहे थे। आज से तीस-चालीस साल पहले से विदेशी लोग भारतीय पहनावा अपनाते व पसंद करते रहे हैं वतौर जव्लंत उदाहरण स्वरुप हमारे देश की कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनियां गाँधी स्वंय एक विदेशी महीला है या थी लेकिन उन्होने आज हमारे भारतीय स्त्रीयो की परिधान को ही अपने लिए चुना खैर इसका जो भी कारण रहा हो यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन हम भारतीय लोग आज विदेशी पहनावे और संस्कारो को अपनाते चले जा रहे हैं इसका अर्थ यह हुआ कि विश्व की जो सभ्यताएं बहुत बाद से विकसित हुई वहां के लोग बहुत समय पूर्व लगभग या कहें नंगे ही रहा करते थे वे लोग आज सभ्य समाज और पहना ओड़ना सीख गए हैं और ठिक इसके विपरीत भारत के लोग विशेष कर महिलाएं अपने कपड़े कम करती ही चली जा रही हैं। भारतीय नारी और उसकी सौम्यता का दूनिया भर मे चर्चाएं होती रहती है। लेकिन आज हमारा समाज आधुनिकता और दूसरो की नकल करके वैसा ही दिखने और बनने के नाम पर सभ्यता और शालीनता की ईती श्री करता चला जा रहा हैं और कल तक इस मामले मे सभ्य और उत्कृष्ठ कहलाने वाला यही समाज नकलची बंदर जैसे संबोधनो से पुकारा जाए तो क्या हमारा देश या हमलोग एक सभ्य देश के सभ्य नागरीक कहलाने के हकदार रह जाएंगे। आखिर कार बंन्दर तो एक जंगली या जानवर ही है फिर भी ये देखिए जो पहना ओड़ना नही जानते थे उन्होने हमारा पहनना ओढ़ना सिख लिया और हम अपने सांस्कृतिक भेष-भूषा का परित्याग कर दूसरे देश की सांस्कृतिक और भेष-भूषा अपना कर यह समझ रहे हैं कि हमने बहुत तरक्की कर ली है वास्तव मे इस तरह क्या हम तरक्की कर लेगें या हो जाएगा, जबकि ऐसा कदापि नही वास्तव मे कल और आज तक हम और हमारे देश की लड़कियां, महिलाएं और माँतए एक सभ्य और संसकारी ही समझी जाती रही हैं और समझी जाती रहेंगी यह तभी संभव होगा जब हम अपने आने वाले पिढ़ी को भारतीय संस्कार और संस्कृती से परीचित कराए और उनके अन्दर इसे कूट- कूट के भर दें नही तो -जिन लोगों का समाज और लोग सभ्य कहलाए जाते रहें वही समाज आज असभ्यता को अपना कर अपने आपको, समाज एवं भारतीय संस्कृती को पतन की ओर ले जाने मे कोई कसर नही छोड़ेगें। फिर भी क्या हमारे समाज और समाज के लोगों उन्नत ही कहलाएगें ? इस पर मुझे एक घटना याद है जो संक्षेप मे इस तरह से है आज से लगभग तिस-पैतिस साल पहले जब शायद आज के तुलना मे हमारा देश और देश वासी उन्नत नही हुआ करते थे मेरे छोटी बहन की एक सहेली जो हमारे याँहा अक्सर आया-जाया करती थी, हम उम्र होने के कारण मेरी बहन और उस मे बहुत ही घनिष्टता हुआ करता था। मै मेरी बहन की सहेली के ऊपरी दिखावे की बात मै कर रहा हुं कि बह दूबली पतली और संबली तो थी ही ऊपर से उसके आँख के ऊपर की भौंए बहुत मोटी होने की बजह से उसका चेहरा देखने मे बहुत भद्दी लगती थी उसे न जाने कहाँ से वियूटी पार्लर की बात पता चल गई उसने अन्न-फन्न अपनी भौं को कटा कर नुकिली एवं संवार लिया महीनो गुजर जाने के बाद एक दिन अचानक बह हमारे घर पर आई तो उसका चेहरा बिल्कुल बदला-बदला सा लग रहा था इस पर मेरी बहन ने उससे उसके बदले हुए चेहरे का कारण पुछा तो उसने बताया कि देखो फलाने तुम अपनी मम्मी से या किसी और से इसका जिक्र न करना कि तुम्हारी आँख की ऊपर की भौंए भी बहुत भद्दी लगती है तुम भी मेरी तरह अपनी भौं कटवा लो तो तुम भी बहुत अच्छी और मेरी तरह खुबसूरत लगने लगोगी। जबकि प्राकृतिक रुप से मेरी बहन की भौं नुकीली एवं सुन्दर थी। इस पर मेरी बहन ने कहा कि भौं कटवाने के लिए क्या करना पड़ेगा इस पर बहन की सहेली ने उससे कहा कि देखो हम अपने आप तो आपनी भौं काट नही सकते हैं इसके लिए तुम्हे किसी व्यूटि पार्लर मे जाना होगा और वहाँ इस काम के लिए सौ रुपये देना होगा। अरे बाप रे बाप इतने रुपए मै कहाँ से लाउंगी अगर पिता जी से कहा तो कल ही बह मुझे घर से बाहर निकाल देंगे ऊपर से पिटाई अलग होगी नही-नही रहने दो मुझे भौं नही कटवाने हैं। आज से तीस-पैंतिस साल पहले सौ रुपये बहुत मूल्य रखते थे और व्यूटी पार्लर शहर मे इक्का-दूक्का ही हुआ करता था। मेरी बहन की सहेली बहन को बहुत फूसलाती रही परन्तु जब मेरी बहन किसी तरह उसके बहकावे मे नही आई तो उसने एक युक्ति निकाली कि देखो मै पार्लर मे कैसे भौं काटते है इसे देखते-देखते बहुत कुछ मै करना सिख गई हुँ अगर तुम चाहो तो मै खुद ही तुम्हारी भौं को सेट कर सकती हुँ। यह सुन कर मेरी बहन बहुत खुश हुई लेकिन भौं काटने के लिए कैंची और कंघी की जरुरत तो होगी ही इस समस्या का हल ऐसे निकाला, मेरी बहन ने अपनी सहेली को बताया जब मेरे पिता जी अपने नौकरी पर चले जाएंगे तो मै उनकी मोंछ काटने वाली कैंची और छोटी कंघी उनके दाढ़ी बनाने वाले झोले मे से निकाल लूंगी। लेकिन दूसरी समस्या यह है कि बैठा कहां जाएगा इस पर बहन की सहेली ने कहा की परसों मेरे म्मी पापा बजार करने के लिए घर से निकलेगें उस वक्त मेरे घर पर कोई नही होगा तुम मेरे घर पर आ जाना इस तरह बहन की सहेली ने भौं बनाने का प्रोग्राम तय किया, और जल्दि से अपनी बात समाप्त कर थोड़ी देर बाद मै फिर आऊंगी कह कर बह अपने घर चली गई दूसरे दिन शाम को मुझे मेरी बहना का चेहरा कुछ अजीबोगरीब या कहें बदला-बदला सा लगा। घर का सबसे छोटा सदस्य होने के कारण मै सबका दूलारा था मुझसे बड़े अन्य भाई-बहने मुझे सहसा डांटने फटकारने की हिमाकत नही करते थे, मेरे मूहँ से अचानक निकल पड़ा कि दिदी आज तुम बंदरीयां जैसी क्यो लग रही हो, यह तुम्हारे चेहरे को क्या हो गया यह कहते हुए मै चिल्ला पड़ा कि देखो-देखो मम्मी आज ये बंदरीयां जैसी लग रही है, जरा जल्दि आ कर इसे देखो तो, बस मेरा इतना कहना था कि माँ अपने किचन मे ही खड़ी-खड़ी एक झलक बहन पर डाल कर चिल्लाई कि वास्तब मे यह सही कह रहा है तुम्हारा चेहरा आज बहुत विकृत लग रहा है ये तुमने अपने भौंए क्यों कहां से और कैसे कटवा लिए किसने कहा था माँ का इतना कहना था कि बह रोते हुए बोली कि बह जो मेरी सहेली आती है न उसने अपनी भौं कही पर कटवाया था, लेकिन मैने जब पैसे देकर अपनी भौं संवारने के लिए मना कर दिया तो उसने खुद ही मेरी भौं संवार कर सुंदर बना दिया। इस पर माँ बोली कि अपने आप को सुन्दर मान लेने से या अपने आप कहने से व्यक्ति सुंदर नही हो जाता है प्रकृतिक रुप से जो जैसा है वैसे ही सुंदर है बनावटी सुंदरता तो क्षणिक समय को लिए होता है तन की सुंदरता तो क्षणभंगूर है मन और सोच मे सुंदरता ही मनुष्य की वास्तविक सुंदरता है। मात्र शरिर पर के कपड़े कम कर लेने या कम करने के लिए रोकना मात्र से महिला उत्पीडन का मापदंड नही हो सकता है बात रह गई लड़कियों महीलों से छेड़छाड़ और छीटाकशी की बात है हम सब सामाजिक प्राणी हैं और इस समाज से बाहर रह कर नही जी सकते है हमारे समाज के लोग जैसा पहनावा पहनते जो बढिया से बढिया खाते पीते हैं उसका ही हम सब अनुसरण करते हैं। समाज से हट कर अगर कुछ अनहोनी तरह से बोलना खाना पिना ओढ़ना चाहें तो हम खुद ही अपने समाज से कट जाएंगें इस तरह तो समाज के मुख्य धारा से कटे हुए लोगों को समाज से बाहर जंगल मे निवास करना पड़ेगा। समाज की बत तो दूर हम अपनी ही उन्नती को संकीर्ण करते चले जाएंगे। जब मनुष्य कपड़े बुनना नही जानता था तब सभी लोग पेड़ के पत्तों से शरीर की नंगनता को ढकते थे यह बात अलग है कि वर्तमान समय मे पेड़ पौघे कम होते जा रहे है और उसकी जगह मशीनो कारखानो ने ले लिया। प्रकृति के नियमानुसार समय अपने आप को दोहराता है, तो क्या आज मनुष्य उसी दौर मे पुनः प्रवेश कर रहा है, कर चुका है या करने वाला है?
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1 comment:
समस्या हर जगह है।
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