मत कहना मुझको कि बादल आज शहर में फिर बरसा है
मत कहना मुझको प्रीतम का आज नहाकर दिल हरसा है
सुखी धरती तेज तपिश में, रोती-गाती रही महीनों
तुम्हीं बताओ धरती खातिर दिल बादल का कब तरसा है
कुंवर प्रीतम
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
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