क्या अन्ना जनता में नैतिकता जगा पायेंगे ?
अन्ना टीम की आपसी खेंचतान से यह सवाल मुखुर हो उठता है की टीम अन्ना का ये हश्र क्यों हो रहा है?
क्या कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा सदस्यों में घुस आई है? क्या अन्ना की लोकप्रियता को लोग अपनी
निजी लोकप्रियता में तब्दील करना चाहते हैं ?क्या अन्ना रूपी बरगद अपनी डालियों के भार से दबा जा
रहा है?
आम भारतीय अन्ना के साथ क्यों जुड़े थे ?-- अन्ना के साथ निर्धन मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग दिल
से जुड़ा था और इनके जुड़ने का कारण इनकी प्रमुख समस्याए थी जिनमे भ्रष्टाचार ,महंगाई और दिन -
प्रतिदिन सरकारी नीतियों से हो रही उसकी माली हालत मुख्य थी .आज जब देश में आर्थिक असमानता
बढती जा रही है उच्च मध्यम वर्ग जैसे तैसे अपनी आबरू ढक रहा है मध्यम वर्ग तो नीचे के पायदान
पर फिसल चुका है और गरीब मध्यम वर्ग तो बेहाल है .इस परिस्थिति में सभी दलों के राजनेता अपनी
डफली अपना राग अलापने में व्यस्त हैं ,कुर्सी की खेचतान में डूबे हैं या फिर अपने काले कारनामो पर
रेशमी परदे ढकने में लगे हैं तो इस पीड़ित विशाल वर्ग की कौन सुने और ऐसे समय में जब अन्ना ने
हुंकार भरी तब ये सभी अन्ना के साथ सुर में सुर मिला कर मैदान में डट गए ,ये सब इतने बड़े पैमाने
पर हो जाएगा ये ना तो अन्ना ने सोचा ना किसी राजनैतिक पंडित ने .
मेरे ख्याल से आम भारतीयों को लगा अब उसके दिन फिरने वाले हैं ,आने वाले दिनों में व्यवस्था में बड़ा
बदलाव आयेगा जिससे उसका काम आसान हो जाएगा ,उसे रिश्वत से निजात मिल जायेगी ,सरकारी
दफ्तरों में काम तुरंत हो जाएगा और देश के भ्रष्ट नेताओं नेताओं का विदेशों में जमा काला धन पुन:देश
की तिजौरी में जमा हो जाएगा इन सबके परिणाम स्वरूप उसकी दयनीय स्थिति में सुधार हो जाएगा
मगर जब अन्ना ने आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की उसके बाद उनके आन्दोलन पर प्रमुख
राजनैतिक दल ने बेफाम हमले किये और अन्ना टीम को आपस में उलझा दिया .
अन्ना की टीम के लोग अहंकार के मद में डूबकर मनमर्जी का विधान करने लगे जैसे वे ही भारत हैं.
उनके अटपटे विधानों ने इस मध्यम वर्ग को पुन: हताश किया है .जनलोकपाल के लिए जब अन्ना ने
कांग्रेस के खिलाफ हुंकार भरी तो लोगों को लगा की "अन्ना यहाँ गलती कर रहे हैं "क्योंकि अन्ना यह
तो कह सकते थे की कांग्रेस को वोट मत दो मगर यह नहीं कह पाए की अमुक चयनित उम्मीदवार को
वोट दे क्योंकि यह खरा और सेवाभावी इंसान है .यदि अन्ना के पास "नैतिक या ईमानदार लोगो का
टोटा है तो अन्ना को पहले अच्छे लोगों पर ध्यान केन्द्रित करना था जो देश की तस्वीर बदलने में
सक्षम हो मगर अन्ना ने एलान कर दिया की हिसार के बाद आने वाले राज्यों में चुनाव से पहले यदि
जनलोकपाल नहीं लाया गया तो केंद्र सरकार का विरोध करेंगे .
अन्ना के अधिकार में कांग्रेस का विरोध करना तो है मगर अन्ना का पवित्र कर्तव्य भी यह बनता है
की वो आम भारतीयों को बताये की किस उम्मीदवार को वोट करे .अन्ना यह तो अच्छी तरह से जानते
हैं की इस समय भारत के जितने भी राजनैतिक दल हैं उनमे से कोई भी दल दूध का धुला हुआ नहीं है
फिर अन्ना किस दल को वोट देने की बात कहेंगे ?इस यक्ष प्रश्न का सही जबाब अन्ना टीम या आम
भारतीय के पास भी नहीं है और यही कारण है की मतदाता एक बार फिर ज्यादा काला और कम काला
के फेर में पड़ जाएगा .
आदरणीय अन्ना ,प्रश्न जनलोकपाल कानून के बनने का तो है ही ,लेकिन गर्त में जा चुकी नैतिकता और
हमारे जीवन से दफन हो रहे सदाचार का भी है क्योंकि इन दौ गुणों की पुष्टि के बिना हर कानून लंगडा
हो जाता है .सदाचार और चरित्र का निर्माण किसी कानून के बन जाने से विकसित नहीं होते इसके लिए
शिक्षा और मूल्यों में आमूल चुल परिवर्तन की आवश्यकता है .हमारे देश में मूल्य हीन विद्धवानो का
टोटा नहीं है ,सिर्फ जीवन मूल्यों का टोटा है .क्या अन्ना पुरे भारत में यह अलख जगा सकेंगे ?कर सकेंगे
इस संकल्प की पूर्ति का सफल प्रयास ?
सिर्फ पत्तियों को पानी देने से क्या होगा ?सवाल जड़ को सींचने का है ? सवाल उच्च नैतिक मूल्यों और
सदाचार की पुन: स्थापना का है ?बिना इनके कानून क्या कर सकेगा .
अन्ना टीम की आपसी खेंचतान से यह सवाल मुखुर हो उठता है की टीम अन्ना का ये हश्र क्यों हो रहा है?
क्या कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा सदस्यों में घुस आई है? क्या अन्ना की लोकप्रियता को लोग अपनी
निजी लोकप्रियता में तब्दील करना चाहते हैं ?क्या अन्ना रूपी बरगद अपनी डालियों के भार से दबा जा
रहा है?
आम भारतीय अन्ना के साथ क्यों जुड़े थे ?-- अन्ना के साथ निर्धन मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग दिल
से जुड़ा था और इनके जुड़ने का कारण इनकी प्रमुख समस्याए थी जिनमे भ्रष्टाचार ,महंगाई और दिन -
प्रतिदिन सरकारी नीतियों से हो रही उसकी माली हालत मुख्य थी .आज जब देश में आर्थिक असमानता
बढती जा रही है उच्च मध्यम वर्ग जैसे तैसे अपनी आबरू ढक रहा है मध्यम वर्ग तो नीचे के पायदान
पर फिसल चुका है और गरीब मध्यम वर्ग तो बेहाल है .इस परिस्थिति में सभी दलों के राजनेता अपनी
डफली अपना राग अलापने में व्यस्त हैं ,कुर्सी की खेचतान में डूबे हैं या फिर अपने काले कारनामो पर
रेशमी परदे ढकने में लगे हैं तो इस पीड़ित विशाल वर्ग की कौन सुने और ऐसे समय में जब अन्ना ने
हुंकार भरी तब ये सभी अन्ना के साथ सुर में सुर मिला कर मैदान में डट गए ,ये सब इतने बड़े पैमाने
पर हो जाएगा ये ना तो अन्ना ने सोचा ना किसी राजनैतिक पंडित ने .
मेरे ख्याल से आम भारतीयों को लगा अब उसके दिन फिरने वाले हैं ,आने वाले दिनों में व्यवस्था में बड़ा
बदलाव आयेगा जिससे उसका काम आसान हो जाएगा ,उसे रिश्वत से निजात मिल जायेगी ,सरकारी
दफ्तरों में काम तुरंत हो जाएगा और देश के भ्रष्ट नेताओं नेताओं का विदेशों में जमा काला धन पुन:देश
की तिजौरी में जमा हो जाएगा इन सबके परिणाम स्वरूप उसकी दयनीय स्थिति में सुधार हो जाएगा
मगर जब अन्ना ने आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की उसके बाद उनके आन्दोलन पर प्रमुख
राजनैतिक दल ने बेफाम हमले किये और अन्ना टीम को आपस में उलझा दिया .
अन्ना की टीम के लोग अहंकार के मद में डूबकर मनमर्जी का विधान करने लगे जैसे वे ही भारत हैं.
उनके अटपटे विधानों ने इस मध्यम वर्ग को पुन: हताश किया है .जनलोकपाल के लिए जब अन्ना ने
कांग्रेस के खिलाफ हुंकार भरी तो लोगों को लगा की "अन्ना यहाँ गलती कर रहे हैं "क्योंकि अन्ना यह
तो कह सकते थे की कांग्रेस को वोट मत दो मगर यह नहीं कह पाए की अमुक चयनित उम्मीदवार को
वोट दे क्योंकि यह खरा और सेवाभावी इंसान है .यदि अन्ना के पास "नैतिक या ईमानदार लोगो का
टोटा है तो अन्ना को पहले अच्छे लोगों पर ध्यान केन्द्रित करना था जो देश की तस्वीर बदलने में
सक्षम हो मगर अन्ना ने एलान कर दिया की हिसार के बाद आने वाले राज्यों में चुनाव से पहले यदि
जनलोकपाल नहीं लाया गया तो केंद्र सरकार का विरोध करेंगे .
अन्ना के अधिकार में कांग्रेस का विरोध करना तो है मगर अन्ना का पवित्र कर्तव्य भी यह बनता है
की वो आम भारतीयों को बताये की किस उम्मीदवार को वोट करे .अन्ना यह तो अच्छी तरह से जानते
हैं की इस समय भारत के जितने भी राजनैतिक दल हैं उनमे से कोई भी दल दूध का धुला हुआ नहीं है
फिर अन्ना किस दल को वोट देने की बात कहेंगे ?इस यक्ष प्रश्न का सही जबाब अन्ना टीम या आम
भारतीय के पास भी नहीं है और यही कारण है की मतदाता एक बार फिर ज्यादा काला और कम काला
के फेर में पड़ जाएगा .
आदरणीय अन्ना ,प्रश्न जनलोकपाल कानून के बनने का तो है ही ,लेकिन गर्त में जा चुकी नैतिकता और
हमारे जीवन से दफन हो रहे सदाचार का भी है क्योंकि इन दौ गुणों की पुष्टि के बिना हर कानून लंगडा
हो जाता है .सदाचार और चरित्र का निर्माण किसी कानून के बन जाने से विकसित नहीं होते इसके लिए
शिक्षा और मूल्यों में आमूल चुल परिवर्तन की आवश्यकता है .हमारे देश में मूल्य हीन विद्धवानो का
टोटा नहीं है ,सिर्फ जीवन मूल्यों का टोटा है .क्या अन्ना पुरे भारत में यह अलख जगा सकेंगे ?कर सकेंगे
इस संकल्प की पूर्ति का सफल प्रयास ?
सिर्फ पत्तियों को पानी देने से क्या होगा ?सवाल जड़ को सींचने का है ? सवाल उच्च नैतिक मूल्यों और
सदाचार की पुन: स्थापना का है ?बिना इनके कानून क्या कर सकेगा .
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