सच है आदमी मुसाफिर ही तो है....,सैकड़ो साल पहले जिन मुसाफिरों ने अपनी यादों को हमारे लिए छोड़ दिया वो अब इतिहास बन चूका है ! कहते है ये दुनिया एक मेला है,इस मेले में जो बिछड़ गया वो एकदम अकेला है !.......एक पुरानी फिल्म के इसी गाने पर गुनगुनाते मै अपनी टीम के साथ यात्रा की नई मंजिल की ओर निकल पड़ा हूँ...! दुर्गम रास्ते पर छोटी सी कार,तकलीफ तो दे रही थी मगर प्रकृति की खूबसूरती के आगे रफ़्तार और वक्त दोनों का पता नही चला ! आज हम यात्रा पर देवपहरी के लिए निकले है ! कोरबा से बालको होते हुए चुइया,गढ़ उपरोड़ा,देव कटरा,अजगरबहार, होते हुए हम ५२ किलोमीटर दूर देवपहरी करीब ढाई घंटे में पहुंचे ! रास्ते में ना ख़त्म होने वाली पहाड़ियों की ऊंचाई आकाश से आलिंगन करती नजर आती है,हर थोड़ी दूर पर धरती आकाश के मिलन में सेतु बने ये परबत आज खामोश है....! इनकी ख़ामोशी की वजह भी हम इंसान ही तो है,कभी इन पहाड़ियों का दायरा मिलो दूर तक ना ख़तम होने वाला था मगर आज इनके दायरे हम इंसानों ने महज कुछ जगहों के बीच समेट कर रख दिए है ! ये जंगल कई साल पहले तक इतने घने थे की एक पेड़ की आड़ में खड़े पेड़ को बिना करीब गए देखा पाना असंभव था...! आज जंगल के सिमटे दायरे को इस पार से उस पार तक देखने में दिक्कत नही होती ! ये सब सोचते हम देवपहरी के करीब पहुंचते जा रहे थे,जहां मुझे उस धाम के दर्शन होने थे जो देश में केवल तीन ही जगह है ! मेरी सहयोगी राजश्री ने मुझे बताया इन पांच पहाड़ो को पार करने के बाद ही यात्रा की मंजिल मिलेगी....!
वक्त अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था और हम मशीनी युग की उस बोट में सवार थे जिसे कार कहते है....! रास्ते में कई बाते,कई नजारे हमेशा के लिए ना भूल पाने वाला पल बनकर रह गए...! पूरा एक पहर ख़तम होने के बाद हम देव पहरी पहुँचने ही वाले थे की जंगल के बीच से निकलती इन मासूमो पर नजरे जाकर ठहर सी गई ! बदन पर सरकारी स्कूल का यूनिफार्म और सर पर जरुरत का सामान...! नगे पाँव जरुरत के बोझ को लिए आगे बढती बच्चियों ने जैसे ही हमें सड़क के किनारे खड़े देखा सर का बोझ फेंककर आगे बढ़ गई...! उम्र कम है मगर समझ के आगे मै उन समझदारो की समझ पर शक करने को मजबूर हो गया जो खुद को काबिल होने का जगह जगह सबूत देते है...! मेरे सहयोगियों ने बताया पास के स्कूल में पढने वाली ये बच्चियां पंडो जाति की है जिनके विकास पर देश की सरकारे हर साल करोडो रूपये फुक देती है...! मैंने तत्काल सोच लिया उस पवित्र जगह को देखकर,माता का आशीर्वाद लेकर मै पंडो की बस्ती में जरुर जाऊँगा.....
पवित्र गौ मुख धाम से करीब आधा किलोमीटर पहले ही हमको अपनी गाड़ी छोड़कर पैदल आगे बढ़ना पड़ा,पथरीले रास्ते पर किनारे से बहती जल की धार शांति का एहसास करा रही थी ! कुछ दूर पहले से ही ऊंचाई से गिरते झरने का शोर कानो में मिठास घोल रहा था ! माँ दुर्गा से शक्ति का वरदान मांगने वाली पंडो जाति को यक़ीनन उसी माँ का सहारा है,क्यूंकि इस धाम को कुछ लोगो ने कब्जा करने की कई बार कोशिशे की,मगर माता की शक्ति और इस सिद्ध जगह पर पापियों के मनसूबे टूटकर चकना-चूर हो गए ! इस जगह की अपनी मान्यताये है,कई ऍसी बाते है जिनकी सचाई का सबूत पंडो आदिवासियों के पास है ! हमने यहीं पर नजर आई एक महिला से बात की,इसने बताया वो पुजारी की पत्नी है ! हमने पूछा आखिर क्या मान्यता है इस गौ धाम की.....? इसने कहा ये वो शक्ति स्थल है जहां इंसान की मनोकामनाए तो पुरी होती ही है साथ ही ब्रम्ह हत्या का पाप धुल जाता है... जी हाँ ....यहाँ गौ हत्या करके पहुँचने वाले इंसान के कपडे,गहने सब कुछ उतर जाते है ! इस पानी का रंग लाल हो जाता है,झरने का शोर उस उफान पर पहुँच जाता है जिससे इलाके में रहने वालो को इस बात का पता चल जाता है की कोई है ....!! कोई एसा इंसान गौ धाम की ओर बढ़ रहा है जिसके सर पर ब्रम्ह हत्या,गौ हत्या का दोष है ! तेज हवाए,झरने की बढ़ी आवाज पुजारी को आगाह कर देती है.....
कहते है पुजारी गौ हत्या के दोषी को पहले पांच लोटा पानी से स्नान करवाता है फिर नए वस्त्र पह्नावाकर इस पवित्र पानी में स्नान करवाता है.....इस झरने का पानी एक दम सफ़ेद और झाग की शक्ल ले लिया तो समझिये दोषी इंसान का पाप धुल गया,माता ने उसके सारे पापो पर रहम की नजर कर दी....! हमने भी इस पवित्र पानी को अपने माथे और ललाट पर लगाने के बाद उस शक्ति के दरबार में माथा टेका जहां हर गुनहगार को रहम की भीख मिलती है....पंडो आदिवासियों के इस शक्ति स्थल पर आकर लगा जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हो...! पहाड़ पर देवी का मन्दिर,और उन जनजातियो का पीढ़ियों से बसेरा असल हिन्दुस्तान की कहानी दोहराता है ! शाम होने को है,पुजारी की पत्नी भी पहाड़ पर खो जाने के लिए चटानो के बीच से निकल पड़ी है...हमने सोचा यहाँ से निकलना ही बेहतर होगा क्यूंकि पन्डो की बस्ती इस शक्ति स्थल से काफी दूर ऊंचाई पर है.....मैंने इस पवित्र पानी को एक बार फिर अपनी पेशानी से लगाया और उस बेर को खाने लगा जो पंडो आदिवासी महिला ने बड़े ही आदर से हमको दिये थे...! याद आ गई उस रामायण की जिसमे वनवास पर गए भगवान् राम को माता सबुरी ने जूठे बेर खिलाये थे....इस युग में मुझ जैसे मामूली इंसान के लिए वो पंडो जाति की महिला सबुरी माता से कम नही थी....!
वक्त की कमी और ज्यादा से ज्यादा जानने की ख्वाहिश मुझे उन पहाड़ी कोरवा,पंडो की बस्ती तक ले गई जहां की तस्वीर विकास पुरुषो के दोहरे चेहरे दिखा रही थी...! पहाड़ पर कार से पहुंचना हमारे लिए जितना रोमांचकारी था उससे कहीं ज्यादा आश्चर्य उन आदिवासियों के लिए जिन्होंने आज भी जंगल के अलावा कुछ नही देखा ! हम पहुंचे तो पहले बच्चे,बूढ़े झोपड़ियों की ओर भागे लेकिन कुछ देर उनको समझ आया हम उन इंसानों से अलग है ! फिर तो दर्द,जरुरत,एहसास सब कुछ मेरे करीब था ! इनकी सहमी नजरो और निश्छल चेहरों को देखकर लगा इनके हक़ और जरुरतो को वो लोग बिना डकार लिए पचा गए जिन्हें इन आदिवासियों ने अपना रहबर माना,रहनुमा समझा ! हमने इन आदिवासियों से भी उस गौ धाम की महत्ता को जाना,इन्होने कहा बेला गैया मारने वाले का पाप यहाँ धुल जाता है !
दूर-दूर से आने वालों के पाप यहाँ कट रहे है,मगर उनका दुःख कम नही होता जिनकी कईयों पीढ़ियों ने विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के इन्तेजार में दम तोड़ दिया ! वैसे भी आदिवासियों की इस बस्ती में कुछ भी छिपा नही है,जो है वो जंगल के वीरानेपन में खोकर रह गया है ! देखकर लगा विकास इनके लिए नही है,वैसे कहा तो ये भी जा सकता है की इन नंगे पाँव में दिखाई पड़ता एक मोजा विकास की इबारत ही तो है ! जानना तो बहुत कुछ चाहता हूँ, मगर क्या करूँ ..डूबता सुरज लौट जाने को कह रहा है......!!!!
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