बाल दिवस 2013 : भारत में बाल दिवस 14 नवम्बर
को मनाया जाता है । वैसे इस दिन की छ्ठी पर, यानि 20 नवम्बर
को अन्तराष्ट्रीय बाल दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ के सिफारिशों पर मनाया जाता है । इसके
अलावा हर देश में अपने सहूलियत से इस रस्म अदायगी के लिये एक दिन निर्धारित कर रखा
है । जिसे आप यहाँ से देख सकते हैं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Children%27s_Day
प्रश्न यह नहीं है कि कौन सा देश किस दिन इस रस्म को अदा करता है ? मेरे विचार में प्रश्न यह होना चाहिये कि बाल दिवस क्यों मनायें ? क्या बच्चे एक दिन बड़े नहीं हो जायेंगे ? तब उनके लिये बाल दिवस के
क्या मायने रहेंगे?
काल के साथ अवस्था का बढ़ना एक शाश्वत सत्य है । तो एक दिन हम सबके लिये निजि तौर
बाल दिवस के कोई मतलब नहीं रह जाता है । जब व्यवस्था के चश्में से देखता हूँ तो बाल
दिवस और श्रमिक दिवस (दोनों पर) मजदूरी करते हुये बच्चे की तस्वीर आखों के सामने आती
है । तो इस लिहाज से बाल दिवस मनाने या नहीं मनाने के कोई मायने समझ में नहीं आते ।
फिर चाहे नेहरू की जन्म तिथि हो या गांधी की
या अब्रहाम लिंकन की ! मतलब, बाल दिवस, बाल संवर्धन के प्रतीक के रूप में तो पूरे विश्व में फेल ही रहा है ।
अब इसके एक और पहलू पर कुछ बात कहना चाहूँगा । एक बार विश्वविद्यालय में श्री
- श्री रविशंकर जी द्वारा प्रतिपादित "आर्ट आफ लिविंग" के कार्यक्रम में
प्रतिभागिता करने का सौभाग्य मिला था । उसमें इस संस्था से आये हुये संतोष जी ने बताया
था कि श्री-श्री कहतें है कि संसार में ज्यादा समस्याएं इसलिये भी हैं कि हम ज्यादा
बड़े हो गये हैं । ज्यादा समझदार हो गये है । इस क्रम में रविशंकर जी (जिन्हे कि The Guru
of Joy के नाम
से भी संबोधित किया जाता है) का आह्वाहन है कि सुखी रहने के लिये बच्चा बने रहना चाहिये
।
सीधे शब्दों में : आयु बढ़ने के साथ समाज हम सब से ज्यादा समझदार और गूढ़-ज्ञानी
होने की अपेक्षा करता है । पर यही ज्यादा समझदारी और ज्ञान हमारे जीवन को तनाव ग्रस्त और अस्थिर बनाता जा रहा है । इसलिये रविशंकर
जी का कहना है कि बच्चे के तरह स्वछन्द और निश्छल व्यवहार करने से हमें प्रसन्न रहने
में मदद मिल सकती है । कमोवेश ऐसी ही कुछ बात ओशो एवं नानक ने भी कही हैं । हो सकता
है कि अन्य महान हस्तियों द्वारा भी इसका बखान किया गया हो ।
तो जरूरत इस बात कि है कि बेहतर होगा कि बाल दिवस को मनुष्य की आयु के आधार न मना
कर, बल्कि बाल सुलभ मन और निश्छलता के प्रतीक के रूप में देखा जाये
तो ज्यादा तर्क-संगत होगा । जीवन में ऐसे अवसर
कम ही मिलतें हैं । पर असंभव नहीं है। प्रयास किया जाये । और अगले बाल दिवस पर अनुभव
बाटेंगे ।
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