आज प्रात: भ्रमण के दौरान एक बकरे से मुलाकात हो गयी। बकरा कुछ ज्यादा ही अनमना एवं उदास दिख रहा था तो मैंने भी पूछ ही लिया —
''क्या हुआ भाई उदास क्यों दिख रहे हो? खाने को घास नहीं मिल रही है क्या?''
बकरा बोला ''अरे भाई अभी तो बरसात का मौसम है चारों तरफ हरी — हरी घास ही घास, भला इस मौसम में घास की क्या कमी।''
मैं — ''फिर किस बात की चिन्ता है? अब तो ईद भी निकल चुकी है।''
बकरा — ''अरे वो बात नहीं है भाई, मेरी चिन्ता दूसरी है, सही पूछो तो चिन्ता मेरी नहीं बल्कि पूरे बकरा समाज की है''
मैं — ''ऐसी क्या चिन्ता है? और कौन है इस चिन्ता का कारण।''
बकरा — ''दरअसल हमारी चिन्ता है हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण?''
मैं — ''अधिकारों पर अतिक्रमण? किसने किया है तुम्हारे अधिकारों पर अतिक्रमण?''
बकरा — ''तुम लोगों ने और किसने''
मैं — ''हम लोगों ने? दिमाग तो ठीक है तुम्हारा? पता है क्या कह रहे हो?''
बकरा — ''मेरा दिमाग बिल्कुल ठीक है, बल्कि ये कहो कि सृष्टि में बकरों की उत्पति के बाद पहली बार हमारा दिमाग सही हुआ है। सालों से तुम लोग बकरों की जगह विधानसभा में इन्सानों को चुनकर भेज रहे हो। क्या ये हमारे अधिकारों का हनन नहीं है?''
मैं — ''क्या बक रहे हो? तुम्हे किसने कह दिया कि विधानसभा में बकरों को भेजा जाता है।''
बकरा — ''तुम मुझे पुराना अशिक्षित बकरा मत समझो जो तुम्हारी हर बात मान जाता था। अब मैं वो मासूम जनता नहीं जो हर बार नेताओं के बहकावे में आ जाती है। तुम इन्सानों की संगत में रहकर तुम्हारे सारे छल प्रपंच अच्छी तरह पहचानने लगा हूं। मैं आज कल का पढ़ा लिखा डिजिटल बकरा हूं, अखबार पढ़ लेता हूं, टी.वी. पर समाचार देखता हूं, सोशल मीडिया का भी प्रयोग करता हूं, अब अपने अधिकारों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं''
मैं — ''अच्छा कैसे समझाओ भला?''
बकरा — ''बताओ कौनसी योग्यता है जो हम नहीं रखते । जिस बाड़े बन्दी में तुम्हारे विधायकों को रखा जाता है उस बाड़े बन्दी में तो हम सृष्टि के आरम्भ से रहते आ रहे हैं। बाड़े में रहने के मामले में हम उनसे दो कदम आगे हैं बल्कि बाड़े में रहना तो हम बकरों का जन्मसिद्ध अधिकार है। तुम्हारे नेताओं जितने पढ़े लिखे तो हम भी हैं। हमारी भी बोली लगती है और विधायकों की भी तो भला कैसे मानें कि वो बकरे नहीं है। बल्कि हममें तो उनसे भी बढ़कर एक गुण है कि हम अपने मालिक के वफादार है। यदि तुम उनकी जगह हमें चुनकर भेजोगे तो हम तुम्हारी भी पुरजोर तरीके से उठाएंगे। चुनावों में बेतहाशा पैसे बहाने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि हम घास खाते हैं नोट नहीं।''
मुझे बकरे के तर्कों के जवाब नहीं सूझ रहे थे
बकरा — ''अगर तुम लोगों को बकरे ही चुनने हैं तो अगले चुनावों में हम भी अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे, और तुम लोगों से भी निवेदन है कि हर बार झूठे बकरों को चुनते हो, इस बार सच्चे बकरों को चुनकर देखना। शायद कुछ बदलाव आ जाये।''
इतना कहकर बकरा वहां से चला गया
मैं निरूत्तर सा बकरे को जाते हुए देखता रहा जब तक वो आंखों से ओझल न हो गया
लेखक : पवन प्रजापति
जिला — पाली
मो. : 8104755023
pawannimaj@gmail.com
9.8.20
पढ़ा लिखा डिजिटल बकरा
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