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9.12.20

'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के लेखक ने सुसाइड क्यों किया?

आशाओं का संचार करते धारावाहिक के लेखक की निराशा... भारतीय टेलीविजन जगत के सुप्रसिद्ध हास्य धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा दर्शको का प्रिय,मनोरंजक सीरियल बीते 12 बरसो से लगातार बना हुआ है। इसके लेखकों में से एक अभिषेक मकवाना की आत्महत्या की खबर ने बहुत निराश किया है। यही नही कोरोनाकाल मे अभिनय की दुनिया के चर्चित चेहरों के द्वारा जीवन समाप्त करने की निराशावादी सोच ने भी मन को बहुत दुखी किया है। यह भी लगा कि फिल्मी दुनियाँ के लेखकों,कलाकारों का वास्तविक दुनियाँ से कोई सरोकार नही होता है।जीवन को समाप्त करने की भावना का प्रबल होना निराशावादी प्रवृत्ति का उदाहरण है।इसे सादगी पूर्ण जीवन शैली से दूर किया जा सकता है।गांधी की सादगी इस दौर में जीने का बेहतर तरीका हो सकता है।


टीवी जगत में तारक मेहता का उल्टा चश्मा नामक धारावाहिक वर्ष 2008 से 2020 तक दर्शको का पंसदीदा हास्य ओर परिवार के साथ देखा जाने वाला  धारावाहिक बन चुका है।यह धारावाहिक निराश लोगो के मन मे आशा का संचार करता है। हास्य की फुहारों से जीवन के महत्वपूर्ण पलो को आनन्दित करता है। जीवन को हल्का-फुल्का करने का अपना काम बखूबी करता है।हर पात्र की अपनी जवाबदेही है। गौकुलदास सोसाइटी इसके दर्शको को एक समाज के तौर पर दिखाई देती है। जहां हल्की-फुल्की तकरार भी है,स्नेह भी है,हास्य भी है।परस्पर सहयोग की भावना भी आमआदमी को अपने आसपास  घटित घटनाकर्मो सी लगती है। इस धारावाहिक के लेखकों में से एक अभिषेक मकवाना ने 27 नवम्बर को मुंबई कांदिवली स्थित अपने फ्लैट में फांसी लगाकर जीवनलीला समाप्त कर ली,पुलिस ने बताया कि उन्होंने सोसाइड नोट में आर्थिक तंगी का उल्लेख किया था।जबकि परिवार का आरोप है कि वे साइबर धोखाधड़ी एवं ब्लैकमेल का शिकार हुए है।

वर्ष 2020 कोरोना वायरस के साथ भय, निराशा का वातावरण भी लेकर आया है। पर्दे पर जीवन का पाठ पढ़ाने वाले कलाकारों ने निराशा रूपी फंदे को गले मे डालकर जीवन को समाप्त करने का रास्ता चुना। जिनमे सुशांत सिंह राजपूत, समीर शर्मा, प्रेक्षा मेहता, मनमीत ग्रेवाल, दिशा सालियान ओर सेजल शर्मा के नाम प्रमुख हैं।

जीवन के बारे में ओशो कहते हैं जीवन मिलता नहीं निर्मित करना होता है, जन्म मिलता है। जीवन निर्मित करना होता है। इसलिए मनुष्य को शिक्षा की आवश्यकता होती है, जो जीवन जीने की कला सीखा सके। वे आगे लिखते हैं कि आजकल की  शिक्षा जीवन जीने की कला नहीं सिखा पा रही है। विश्वविधालय से पढ़कर निकलने वाला विद्यार्थी अहंकार से भरी हुई आकांक्षाए लेकर जाता है, यह होने की, वह बनने की, महत्वाकाँक्षा एक तरह की बीमारी है।

पर्दे की दुनिया के यह शिक्षित पढ़े-लिखे कलाकार भी इसी बीमारी से ग्रसित है। बढ़ती आत्महत्याएं इसी महत्वाकाँक्षा का नतीजा मानी जा सकती है।

पर्दे की दुनिया ही नहीं आम जनजीवन में भी उक्त महत्वाकांक्षा या निराशा घर कर जाती है। अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज की 2019 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे हर साल 2.3 लाख लोग आत्महत्या  कर रहे है।राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड के ब्यूरो ने हाल में ही पिछले साल के जो आंकड़े तय किये उनके मुताबिक देश मे हर दिन औसतन 381लोगो ने आत्महत्या की है।एनसीआरबी के आंकड़ो के मुताबिक साल 2019 में देश के 1,39,123 लोगो ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की है।

बहुमूल्य ओर उपयोगी मानवीय जीवन को समाप्त कर लेने की इस निराशाजनक प्रवृत्ति को गांधी की सादगी से ही निपटा जा सकता है।मोहनदास करमचंद गांधी का जीवन सादगी का संदेश देने वाला है। वे जब बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए दक्षिण अफ्रीका गए तो धोबी के खर्च से उनका बजट गड़बड़ा गया। उन्होंने कपड़े घर पर स्वयं धोना शुरू कर दिए। शरीर पर महज एक धोती धारण किये गांधी को विस्टन चर्चिल ने अधनंगा फकीर तक कहा था। गांधी ने अपनी आलोचनाओं का कभी बुरा भी नहीं माना। अपनी सादगी पूर्ण जीवन शैली को अपनाए रखा, उन्होंने सादगी के साथ शारारिक परिश्रम का संदेश भी दिया। यही कारण रहा कि दुनिया ने उन्हें महापुरुष का दर्जा दिया हुआ है।

जीवन में शिक्षा के साथ सादगी का होना भी आवश्यक है। सादा जीवन उच्च विचार की सादगी पूर्ण जीवन शैली अपनाकर रखने से थोड़े में गुजारा करने की आदत जीवन में निराशा के भाव को दूर करती है। जीवन की विभिन्न समस्याओं का निराकरण सादगी पूर्ण जीवन शैली में ही मौजूद है। दुनिया की भागदौड़ और प्रगतिशील सोच ने हमे गांधी के विचारों से दूर जरूर कर दिया है किंतु आत्महत्या के विचार तक पहुचा देने वाली महत्वाकाँक्षाओ को गांधी की सादगी से ही परास्त किया जा सकता है। सादगी से अहंकार का भाव भी दूर होता है, अहंकार रहित मन पवित्र होता है, जो अनुचित फैसले नही लेता निराशावादी भावनाओ से दूर रखता है ओर जीवन जीने की ललक भी पैदा करता है।

नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
7, शंकरगली मोतीबाग
सेंधवा, जिला बड़वानी
मप्र

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