विजय सिंह-
ऐसे तो अब सालों भर नेताओं द्वारा पार्टियां बदलने का क्रम चलता रहता है परन्तु चुनाव के समय इसमें विशेष तेजी आ जाती है। चुनाव के वक्त तो इन सबकी अंतरात्मा ऐसे जागती है जैसे,पहले कभी सोई ही न रही हो। सालों साल से किसी भी पार्टी में रहते हुए, उसकी वकालत करते हुए,उसके नीति सिद्धांतों को मानते हुए, अनुसरण करते, हुए नेतृत्व का "गुणगान" करते हुए, विपक्षी पार्टियों को गलियाते हुए क्या कभी निद्रा से नहीं उठी होगी,क्या कभी यह नहीं ख्याल आया होगा कि कल को यदि पार्टी या निष्ठा बदल दी तो पूर्व में कहे गए शब्दों को कैसे "जस्टिफाई" करेंगे?
अरे साहब, दूसरों की छोड़िए, खुद को कैसे समझायेंगें? शायद "अंतरात्मा के जागने का यही फन" राजनीतिज्ञों को आम साधारण जन से अलग करता है जो आज भी कार्यस्थल बदलने के पहले भी सोचते हैं।अभी हाल ही में कांग्रेस के दो चर्चित नेता संजय निरुपम और गौरव वल्लभ कांग्रेस छोड़ कर क्रमशः शिंदे शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। संजय निरुपम पहले भी शिव सेना छोड़ कर कांग्रेस में आये थे, शिव सेना से वे राज्य सभा के सांसद भी रहे, बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और अब फिर से शिव सेना (शिंदे ग्रुप ) में शामिल हो रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पार्टियों के गठबंधन बदलने के उस्ताद रहे हैं ,इसलिए संजय निरुपम और नीतिश कुमार की इस विषय में चर्चा अब बेमानी है। अभी हाल ही में झारखंड में भाजपा के जय प्रकाश पटेल ने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की सीता सोरेन ने भाजपा का हाथ थामा है।
सिंहभूम से एकमात्र कांग्रेस की सांसद रहीं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी,गीता कोड़ा, लोकसभा चुनाव के आगाज होने के साथ ही कांग्रेस का हाथ छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी के कमल को अपना चुकी हैं। इसी कड़ी की ताजा घटनाक्रम में राजनीतिज्ञों के उसी अंतरात्मा की आवाज पर जमशेदपुर स्थित प्रसिद्ध प्रबंधन शिक्षण संस्थान एक्सएलआरआई के अर्थशात्र व वित्तीय मामलों के व्याख्याता प्रोफेसर गौरभ वल्लभ ने कांग्रेस के हाथ को टाटा बाय बाय कर भाजपा के कमल को आत्मसात कर लिया और अब वे भाजपा व भाजपा नेतृत्व की उन्ही नीतियों का गुणगान करेंगे जिनका कुछ समय पहले तक वे विरोध करते थे या उपहास उड़ाया करते थे।
इन्हीं सवालों के जवाब पाने के लिए हमने प्रोफेसर गौरव वल्लभ से कुछ प्रश्नों के उत्तर जानना चाहा। हमने उनसे पूछा कि -कांग्रेस छोड़ने की मूल वजह क्या है, जबकि पार्टी ने आपको राजनीतिक सफर शुरू करने के साथ ही पहले जमशेदपुर पूर्वी और फिर उदयपुर से प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़वाया। आप दोनों ही जगह से चुनाव हार गए, यह आपकी व्यक्तिगत कमी थी या पार्टी की? जब कांग्रेस ने अल्पसमय में आपको इतना मान दिया तो "कठिन समय" (जैसा वर्त्तमान में कांग्रेस के लिए प्रचलित है) में कांग्रेस पार्टी और नेतृत्व के प्रति आपकी "निष्ठा" क्यों कमजोर पड़ गयी?
कांग्रेस में रहते हुए आपने हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा व उनके सहयोगियों का मजाक उड़ाया या विरोध किया है, अब अचानक उन्हीं भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रति आसक्ति कैसे जाग उठी? आपने अपने इस्तीफे में सनातन धर्म, राम मंदिर आदि की चर्चा की है परन्तु आपके ट्विटर पर अब तक लिखे गए (कांग्रेस में रहते हुए समेत) पोस्ट पर कभी किसी कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता की ना तो आपत्ति दिखी और न ही विरोध या रोकने का प्रयास?
आपने कांग्रेस की नीतियों और कार्यशैली की चर्चा की है, इसे देश के सम्मानित प्रबंधन शिक्षण संस्थान में हर दिन नए भावी प्रबंधक के व्यक्तित्व को निखारने का जिम्मा उठाने वाले प्रबंधन शिक्षक की नाकामी के रूप में क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? आप अपनी बेहतर नीतियों, कार्यशैली से कांग्रेस नेतृत्व को प्रभावित क्यों नहीं कर पाये? आपने ट्विटर पर अपने पोस्ट में देश के उद्योगपतियों, वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री की नीतियों और भाजपा प्रवक्ताओं का हमेशा उपहास किया है, तो ऐसे में क्या कांग्रेस नेतृत्व द्वारा उद्योगपतियों के विरोध करने जैसा आपके इस्तीफे में चर्चा विरोधाभास नहीं है?
क्या इस बात से आप इंकार करेंगे कि उद्योगपति तो सत्ता के साथ ही रहते हैं, पार्टी चाहे कोई हो, जैसा पहले (कांग्रेस शासन में) अंबानी समूह के विषय में कांग्रेस को सपोर्ट करने की चर्चा रहती थी? जिन प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री व भारतीय जनता पार्टी की आप बुराई करते रहते थे, विरोध करते थे, उपहास उड़ाते थे, अब भाजपा के एक सदस्य के रूप में आप कितना सहज रह पायेंगें? इसे आप कैसे "जस्टिफाई" करेंगे? आपके अनुसार "भारत तोड़ने" वालों के प्रति अचानक आपका प्यार कैसे उमड़ पड़ा? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हमें गौरव वल्लभ का प्रतिउत्तर नहीं मिल पाया। जवाब मिलते ही ससम्मान उनका पक्ष प्रकाशित किया जाएगा।
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