कविता महज शब्द नहीं
अनुगूंज है महासमर की
और कविता लोक की
अंतरात्मा की आवाज भी ।
कविता अभिव्यक्ति है
लोकवेदना की और
कविता आक्रामक प्रतिवाद
का आह्वान भी ।
कविता एक खूबसूरत तर्जुमा है
जीवन के झंझावातों का
और कविता एक आकर्षक
संगीत भी ।
कविता धूप सी
व्याप्त भी हर शू
और कविता परिवर्तन
की पैरोकार भी ।
कविता पराजयबोध
नहीं है कदापि
कविता अपराजेयता की
मिशाल है बल्कि ।
कविता पलायन नहीं है
जीवन संघर्षों से
कविता तो उम्मीद
का उजाला है।
कविता जीवन की
टीस भी और
कविता कवि की जीजीविषा
का संगीत भी ।
कविता संकेत है
भविष्य का और कविता
लेती प्रेरणा है
भूत से भी।
और कविता न कमल
न गुलाब न कैक्टस ही
कविता तो हर मौसम में
महकता गेंदे का फूल है।
वरुण राय
15.4.08
कविता के रंग
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3 comments:
वरुण भाई,तभी मैं सोचूं कि कभी-कभी मैं कुछ ऐसा क्यों लिख जाता हूं जिसे लोग कविता कहते हैं ,बहुत सुन्दर है साधुवाद आपको......
gende ka fool lajawab hai,
bhai badhai
varun ji kavita ko jis tarha se aapne shabdo me piroya hai laajawab hai . ati sundar.
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