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12.4.08

व्योमेश शुक्ल की कविताएं

1. मैं जो लिखना चाहता था

आंख से अदृश्य का रिश्ता है

मुझे लगा है सारे दृश्य

अदृश्य पर परदा डालते हुए होते हैं

जो कुछ नहीं दिखा सब दृश्य में है

और नहीं दिख रहा है



विजय मोटरसाइकिल मिस्त्री की दुकान शनिवार को खुली हुई है

और उस खुले में दुकान की रविवार बन्दी

नहीं दिखाई दी लेकिन सोमवार को खुला दिख रहा है



इसका उलट लेकिन एक छुट्टी के दिन हुआ

दुकान बन्द थी

बन्द के दृश्य में दुकान अदृश्य रूप से खुली हुई थी

और लोग पता नहीं क्यों

उस दिन मजे लेकर मोटरसाइकिल बनवा रहे थे

मेरे पास सिर्फ एक खचाड़ा स्कूटर है कोई मोटरसाइकिल नहीं है

लेकिन मैं भी सिगरेट पीता हुआ एक बजाज पल्सर बनवा रहा था



अदृश्य से घबड़ा कर मैं दृश्य मैं चला आया

और दोस्त से पूछने लगा इस दुकान के बारे में

तो वह बोला कि आज यह दुकान

ज्यादा याद आ रही है क्या पता अपनी याद में खुली दुकान में

वह भी मेरी सिगरेट आधी पी रहा हो



मैंने घर आकर मन में कहा पांडिचेरी मैं वहां कभी नहीं गया हूं

वहां का सारा स्थापत्य मैंने खुद को बताया कि

पांडिचेरी शब्द की ध्वनि के पीछे है

लेकिन है जरूर



फिर मैंने एक वाक्य लिखना चाहा

लिखने पे चाह अदृश्य है शब्द दृश्य हैं

शब्द की वस्तुएं दिखाई दे रही हैं और

जो मैं कहना चाहता था उसका कहीं पता नहीं है

वह शायद वाक्य के परदे में है

वह नहीं वह है

मैं जो नहीं लिखना चाहता था वह कतई नहीं है


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2. 6 दिसम्बर, 2006

पहली और अन्तिम बार

आज 6 दिसम्बर 2006 है

दूसरी चीजें बार बार हैं

आज गर्व करने लायक धूप और गर्म हवा है

हमेशा की तरह

बच्चे प्रार्थनाएं और राष्ट्रगान हल्का बेसुरा गा रहे हैं

इसके बाद स्कूल बन्द हो गये

एक प्रत्याशी दिशाओं को घनघोर गुंजाता हुआ कुछ देर पहले नामांकन करने कचहरी

गया है

हमेशा की तरह

एक आदमी फोन पर हंसा बोला

गुटका 1 रुपये का है आज भी

खरीदो खाओ

ठोंक पीट हवा इंजन बोलने रोने चिोंने की आवाजें हैं

हमेशा की तरह

पंखे और वाटर पम्प बनाने वाली एक छोटी कम्पनी

आज पहली और अन्तिम बार जमींदोज हुई है

हमेशा की तरह


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3.चौदह भाई बहन

झेंप से पहले परिचय की याद उसी दिन की

कुछ लोग मुझसे पूछे तुम कितने भई बहन हो

मैंने कभी गिना नहीं था गिनने लगा

अन्नू दीदी मीनू दीदी भानू भैया नीतू दीदी

आशू भैया मानू भैया चीनू दीदी

बचानू गोल्टी सुग्गू मज्जन

पिण्टू छोटू टोनी

तब इतने ही थे

मैं छोटा बोला चौदह

वे हंसे जान गये ममेरों मौसेरों को सगा मानने की मेरी निर्दोष गलती

इस तरह मुझे बतायी गयी

मां के गर्भ और पिता के वीर्य की अनिवार्यता

और सगेपन की रूढ़ि


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4.आज

जब घर के लोग काम पर या कहीं चले जाते हैं

वे दिनचर्या के तट पर जाकर हंसने लगती हैं लेकिन

आज वे अपनी जिम्मेदारियों के छत पर खड़ी

पतंगें उड़ा रही हैं

आसमान में उन्होंने अपनी पतंगें

इतनी दूर तक बढ़ा दी हैं

कि ओझल हो गयी हैं

उन्हें वापस लाने में समय लग जाएगा

आज दूसरे कामों का हर्जा होगा

खाना देर में बनेगा कपड़ा देर से धुलेगा

नीचे फोन की घण्टी देर तक बजती रहेगी कोई नहीं उठायेगा

एक व्यक्ति दरवाजा खटाखटा कर लौट जाएगा

कोई किसी को कुछ देने या किसी से कुछ कहने आयेगा तो

यह नहीं हो पायेगा

वे छत पर हैं



आज (2)

आज कोई उससे बोल नहीं रहा है

वह भी खुद को छिपाते हुए

उसकी कोमलता निष्ठा और साहस के साक्ष्य

आज पापा की गिरफ्त में

पे्रमपत्र कहीं से घर के हत्थे लग गये

(vyomesh bnars ke hain, bnarsi nhi hain. vyomesh bhaee ka mobile hai-09335470204

4 comments:

Anonymous said...

hare dada ....aise hi...bas aise hi.....

kavita padhaa padhaa kar mast kar dijie.

Anonymous said...

ha ha ha ha ha
are mast nahi kar diyen hain.

ab to soch raha hooon ki hum bhi thook daloon do char,
hare bhai ke dekh dekh ke ;-) kavita bhai logon :-P lag raha hai ki hum bhi kavi ban javenge,

hare bhai kamal ka hai or roje mast kar dete hain aap.

Jai Jai Bhadaas

यशवंत सिंह yashwant singh said...

खासतौर पर चौदह भाइयों वाली कविता दिल को छू गई। कैसे धीरे धीरे दुनियादार बना देते हैं हम भोले भाले दिलों और मनों को। व्योमेश भाई को इतनी शानदार कविताओं के लिए बधाई और हरे भाई को शुक्रिया, जो उन्होंने पढ़ाया।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सभी कविताएं एक से बढ़ कर एक हैं,पंडित जी ऐसे ही सुगंधित फूल भड़ास के गुलदस्ते में रोजाना लगाते रहिये भगवान आपको सदा मुस्कराता बनाए रखे भले ही गैस खत्म हो जाए...