कैसे कह दूं कि तुम
एक अगर्भित पराग कण हो
तुम्हारी देह का कुंआरा ईथर
वासना के क्लोरोफार्म से
बहिरंतर दहक रहा है
और तुम्हारी आखों के कच्चे हरेपन में
मादकता का अल्कोहल महक रहा है
अरे तुम तो हो एक चुंबकीय गुड़िया
जिस के चरित्र का गुरुत्व केंद्र
दौलत के रडार के इशारे पर
झूमता है,कसमसाता है
तुम्हें देखकर मेरे मन का यूरेनियम पिघलता है
सच तुम पर बड़ा तरस आता है
सोचता हूं कि तथाकथित आधुनिकता का
पतन से कितना गहरा नाता है?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
14.4.08
आधुनिका
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5 comments:
क्या बात है, बहुत खूब.....। मन का यूरेनियम पिघलता है, बस, इसी पर तो खेल जाती हैं वो....।
नीरव जी,
बहुत खूब. सेक्स अपील का चित्रण, विज्ञान की भाषा में. क्या कहने हैं. और हाँ, आधुनिकता से पतन(ख़ास कर नैतिक) का तो इतना गहरा नाता है कि आधुनिकता पतन का पैमाना बन गयी है. और इसका उलट भी उतना ही सही है.
वरुण राय
pandit jee sach main aapne urenium ko pighla diya,
lajawaab hai
पंडित जी,लगने लगा कि किसी स्पांसर करी हुई लैब के बारे में बताया जा रहा है,हम तो वो बिल्ली बन गये हैं(बबर शेर थे कभी) जमाने की मार से कि साले सपने में भी छीछड़े ही नजर आते हैं...
बडे भाई प्रणाम स्वीकार करें। बहुत उम्दा रचना। आधुनिकता के लबादे से पतन की नींव को किन ईंटों से सजाया है मजा आ गया। भाई जी आपकी सोच को प्रणाम करता हूं। बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है आपसे।
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