बात काफी पहले की है छुट्टियों में अपने गाव जाना हुआ..मेरे बेहद प्रिय हैं नरेश जी...पढे तोः ज्यादा नही पर जागरूक बेहद..देश में राजनितिक सरगर्मी चल रही थी...प्रधानमंत्री कौन बनेगा....लोग अभी नरसिम्हा राव जी का नाम भी पुरी तरह से याद नही कर पाये थे....नाम का फुल फार्म.. की इतनी में एक और दखनी... आ गए...तोः साहब.नरेश भाई आए और बड़े कौतुहल से मुझसे पूछने लगे...भैय्या सुना है...दौड़ घोडा प्रधानमंत्री बन गए....पहले तोः मैं भी भौचक्का की साहब येः दौड़ घोडा कौन है....फिर जब नरेश भाई ने हिंट दिया तोः उनको छोड़कर हम सबके ऐसे ठहाके लगे की पूछिये मत...फिर उनको बताया गया की वे दौड़ घोडा नही बल्कि देवगौड़ा हैं...वाकई कई कई बार जीवन यूँही बेसाख्ता हंसने का मौका दे देता है...कुछ ऐसा ही अनुभव यशवंत भाई साहब ने बांटा...दरअसल एक बार वे अपने गाव गए...काफी अर्से बाद गए तोः भैंस पर बैठने का उनका मन कर गया...वैसे भी आदत से मजबूर हैं...इनको जो जो भी न करने को कहा जाता है वो करते जरुर हैं...तोः साहब भैंस पर बैठे यशवंत जी...अब भैंस काफ़ी उद्दंड किस्म की अपने भड़सियों की तरह... निकल गई सहर..अब सहर में अपने किस्म की दिक्कतें...ट्रैफिक, शोर, सिपाही और न जाने क्या क्या...इतने में अपना सिपाही आया और सवारी करते देख कर त्वरित टिप्पदी की वाहन चलाते हो और हेल्मेंट नही लगते...फिरउसे जो जवाब मिला वोः वाकई लाजवाब करने वाला था...यशवंत जी ने बचाव करते हुए तुरंत कहा साहब नीचे देख लीजिये...येः फ़ौर व्हीलर है...अब बेचारा सिपाही करता तोः क्या...
कहने का मतलब सिर्फ़ इतना ही...की बेहद गंभीर और लम्बे लम्बे लेखों विचारों के बीच कभी हलकी फुलकी मुस्कान के लिए भी जगह हो..दरअसल येः सूझी यूं की कई दिनों से लगा हुआ था की कुछ सरल और तरोताजा टाइप की चीज किसी ब्लॉग पर मिल सके..लेकिन भारत में नब्बे फीसद ब्लोग्स पर बडे बडे विचार..चे ग्वेरा से लेकर मार्क्स तक सात्र से लेकर देरिदा तक इन ब्लोग्स पर अपने पिटे और आप्रसंगिक हो चुके विचारों के साथ मिलेंगे...येः अपने यहाँ के माठाधीसों की कहानी है..जब मारे शर्म के दूसरो को विकसित कहलाने वाले देशों के ब्लॉग लेखकों की ब्लोग्स पढी तोः वाकई मन बेहद खुश हुआ...वहाँ....मजाक था..भविष्य की चिंता थी...कुछ साझे संकल्प थे...कुल मिलकर मुझ अज्ञानी को बड़ी राहत मिली....तभी मन में विचार आया की ..अपने यहाँ ऐसा क्यों नही है...ब्लॉग के लिए स्पस मिलने का मतलब है की ज्ञान की सारी गंगा यही बहा देना...चुरा-चुरा के इसकी कविता..उसकी किताब..उसका विचार..सब पेल दो ताकि कहीं से भी येः संदेश ना जाने पाये की आप दूसरो से कम हैं...अभी एक सज्जन हैं..दिव्यान्सू शायद देशबंधु में हैं...बेहद हल्का..मन को राहत देनेवाला लिखा...न कोई बिला वजह का ज्ञान न कोई दिखावा..सब कुछ असल लग रहा था...येः इतना मुश्किल भी तोः नही है....सरल बने रहना ...असल बने रहना...विनम्र बने रहना...और यकीन जानिए हर किसी को येः अच्छा लगता है....पर ऐसी कौन सी मजबूरियाँ हैं की हमने ब्लॉग को भी अपनी कुंठायें निकालने का मंच बना लिया है....अभी कुछ दिन पहले पत्रकारीय जीवन में घटी एक बेहद सच्ची घटना के बारे में संकेत भर कर दिया की भाई लोग..पिल पडे दाना पानी लेकर...इशा मसीह से लेकर और सत्र तक की दुहाई दी गई...मुझे तोः लग रहा था की कही मेरे पागल होने का प्रमाण पत्र भी भाई लोंग किसी अस्पताल से न बनवा ले..किसी ने एक बार भी सच सुनने जानने का प्रयास ही नही किया....बल्कि इन्ही ब्लोग्स पर समाज, महिला, समानता, विचारों की स्वतंत्रता जैसे न जाने कितनी बाते पेली जाती हैं....कुछ लोंग ब्लॉग के जरिये अपना हित साधने में लगे हैं, कुछ अपने चेले बनाने में...कुछ कुछ और करने में.....कहना सिर्फ़ यही था की यहाँ भी वही गंध फैला रखी है जो पहले अपने अपने समूहों में ही सिर्फ़ फैलाई जाती थी...कभी मौका मिले तोः रीडिफ़ के ब्लोग्स जरुर पढिये....मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंशक हूँ..जाइए और तरोताजा होकर आइये....भड़ास में भी काफी कुछ ऐसा ही है...इसीलिए आता हूँ....मनीष का इमानदार गुस्सा, रक्षंदा का किसी भी मुद्दे पर भावुक और गंभीर लेख, अबरार का बेहद साधा हुआ पीस...मनीषा जी का गुस्सा .....अपनी मनीषा जी भड़ास की...संजय जी का विस्फोट भी अच्छा प्रयास है....यार जब हम अपनी बक्चोदियों से बुश की नीतियाँ नही बदल सकते, जब मार्क्स को कोई नही पूजता ....तोः यार नया अपनाओ....नयापन लाओ...मजा आएगा...तुम्हे भी और सभी को....भड़ास हर जगह चर्चा का विषय बन चुका है....हर मीडिया समूह में....नौजवानों के बीच आगे भी लोकप्रिय होगा क्यूंकि यहाँ बेवजह के आवरण नही है...सायद यही इसकी लोकप्रियता का कारण है...दूसरे चिल्लर जरुर चटपटा रहे हैं लोकप्रियता के लिए लेकिन मुजे लगता है की उन्हे सहज होना ही होगा अगर सफल होना है तोः...तोः साहब कुछ जगह रखिये...जीवंतता के लिए....दूसरो के लिए....बहसों के लिए और हाँ मजे और धैर्य के साथ सुन्न्ने के लिए भी...बाजार, लोकप्रियता चीजों की सफलता, असफलता के बारे में बेहद बारीकी से सोचता हूँ अभी तक सारे अनुमान सही भी निकले तोः लगता है की ब्लोग्स के बारे में भी यही कुछ होगा.....वैसे भी येः ज्यादा दिनों की बात नही है...बंगलोर में गूगल में काम करने वाले साथी के मुताबिक विकल्प पर काम चल रहा है और कुछ दिन बाद येः पुरानी बात हो जायेगी....तोः अपने हित साधने की बजाय इसे हर बेहतर चीज का मंच बनाया जाए.....खूब लिखा जाए...पर सरल और दिलचस्प ...येः मुमकिन हैं....लोंग कोशिश भी कर रहे हैं....और उनको हिट्स भी जमकर मिल रही हैं.....जाहिर है.....पर ज्यादा दिन चोरी के विचारों की गंगा नही बहेगी.....भड़ास खुश हाल रहे...आप सब खुश रहें...यहाँ अभी तक कुंठित तोः कोई नही दिखा न लगा यही भड़ास की यूएस पी है...और यही हम सबको एकदिन गर्व करने का मौका देगी ...
हृदयेंद्र
3.5.08
क्या आप दौड़ घोडा को जानते हैं.....
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6 comments:
उम्दा लेख पर क्षमा करें कृपया आप वर्तनी की अशुद्धियों को सुधार दें तो सोने पर सुहागा । नियमित पाठक हूँ आपका पर वर्तनी अशुद्धि खटकती है।
गाव पढे तोः ज्यादा राजनितिक
पुरी तरह से प्रशंशक इमानदार
भइया सिंह साहब,ये विचार कि हम भड़ासी कुंठित हैं जब दूसरों ने हम पर थोप दिया तो हमने इसे सहर्ष स्वीकार लिया कि हम बुरे हैं कुंठित हैं पतित हैं गंदे हैं गलीज हैं और हे स्वयंभू अच्छे लोगों जो तुम्हें पसंद न हो वो सब हम हैं.... बस इस लिये हम भड़ासी हैं यही है हमारी मौलिकता....
priya prabhakar ji....kahtey hain ki takneek ke saath jugalbandi karna itna aasan nahi hai...mitra agar seedha hindi me likhna ho to shayad hi koi ashuddhi ho par chunki angreji se hindi me convert hota hai to is kism ki dikkaten aati hain...par koi baat aap ko khatkey..to uspar mujhey prathmikta se sochna hoga....aapko yakin dilata hun ki aagey se vartani ki galtiyaan kam se kam ho saken...baki aap kush rahiye mast rahiye..
hridayendra
हृदयेंद्र भाई,
आपका कथन सत्य है और अगर ये सत्य ना होता तो हम भडासी नहीं होते.
आपके मुंह में घी-शक्कर हृदयेंद्र जी, इतनी अच्छी अच्छी बातें कहने के लिए.
भड़ास के लिए कम वक्त लिकाल रहे हैं. लगता है बहुत मशरूफ हैं इन दिनों.
जल्दी-जल्दी आएंगे तो अच्छा लगेगा.
जय जय भड़ास
वरुण राय
वैसे या देशबंधु के दिव्शांशु जी कहीं नेट में उपलब्ध हैं? आपका लेख पढ़कर इन्हें भी पढ़ने को जी चाह रहा है। - आनंद
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