पाणिनी आनंद
जामिया नगर मुठभेड़ मामले में जहां दिल्ली पुलिस सूचना क़ानून के तहत जानकारी देने से बच रही है वहीं भारत के प्रतिष्ठित एम्स अस्पताल ने इस मामले से जुड़ी जानकारी देने से इनकार कर दिया है.
मांगी गई जानकारी में एफ़आईआर और पोस्टमार्टम की रिपोर्टें शामिल हैं. जानकार मानते हैं कि दोनों ही संस्थाओं ने इस तरह सूचना का अधिकार क़ानून की अवहेलना की है.
ग़ौरतलब है कि 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली के जामिया नगर इलाके में पुलिस मुठभेड़ हुई थी जिसमें दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर और दो संदिग्ध व्यक्तियों की मौत हो गई थी.
पुलिस का कहना है कि ये दोनों लोग चरमपंथी थे और इनका ताल्लुक दिल्ली और अन्य जगहों पर पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान हुए बम विस्फोटों से था.
पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में भी लिया था. बाद में मौके से भागने में सफल रहे दो अन्य संदिग्ध लोगों को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. पर इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर कई संदेह और सवाल भी उठते रहे.
ताकि पर्दा उठे
इन्हीं संदेहों को ख़त्म करने के मकसद से पिछले महीने सूचना का अधिकार क़ानून के तहत दिल्ली पुलिस से मारे गए लोगों के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफ़आईआर की कॉपी सहित कुछ और जानकारी भी मांगी गई थी.
ऐसी ही एक अर्जी़ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भी डाली गई थी जिसमें पूछा गया था कि मुठभेड़ के बाद कितने शव और किस वक्त अस्पताल लाए गए. कितने शवों का पोस्टमार्टम हुआ. यह काम किस स्तर के और किन डॉक्टरों ने किया.
आवेदन में यह भी कहा गया कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट की प्रतियां दी जाएं और बताया जाए कि क्या सभी शव पुलिस को दिए गए या परिजनों को.
क़ानून के मुताबिक दोनों ही महकमों को यह जानकारी आवेदन की 30 दिनों की समयावधि के भीतर ही आवेदक को दे देनी चाहिए थी.
पर ऐसा नहीं हुआ. आवेदक अफ़रोज़ आलम बताते हैं कि दिल्ली पुलिस की ओर से जानकारी तो दूर, अभी तक कोई पत्र या संपर्क तक स्थापित नहीं किया गया है जबकि आवेदन 25 सितंबर को ही कर दिया गया था और अबतक 39 दिन बीत चुके हैं.
क़ानून की अवहेलना..?
वहीं समयावधि पूरी होने से ठीक पहले एम्स प्रशासन की ओर से जो जवाब दिया गया है वो चौंकानेवाला है.
एम्स प्रशासन ने अपने जवाब में कहा है कि इसी क़ानून की उपधारा 8(1) बी और उपधारा 8(1) एच के तहत यह जानकारी आवेदक को नहीं दी जा सकती है.
इस बारे में जब वरिष्ठ अधिवक्ता और इस क़ानून की जानकार वृंदा ग्रोवर से बीबीसी ने पूछा कि क्या इन उपधाराओं के तहत यह जानकारी देने से मना किया जा सकता है तो उन्होंने एम्स प्रशासन के इस तर्क को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि इस तरह देश की एक प्रतिष्ठित संस्था ने क़ानून की अवहेलना ही की है.
वो बताती हैं, “उपधारा 8(1)बी कहती है कि वो जानकारी नहीं देनी है जिसे देने पर अदालत ने रोक लगाई हो. पर इस मामले में क़ानूनी तौर पर या अदालत की ओर से ऐसी कोई भी रोक नहीं लगाई गई है.”
वो आगे बताती हैं, “दूसरी दलील उपधारा 8(1)एच को आधार बनाकर दी गई है. यह उपधारा कहती है कि वो जानकारी नहीं देनी है जो जाँच के दायरे में हो और उससे जाँच प्रभावित होती हो पर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देने से चल रही जाँच न तो प्रभावित होती है और जाँच दिल्ली पुलिस के अधीन है, न कि एम्स जाँच कर रहा है. ऐसे में उनका यह तर्क भी बेबुनियाद है.”
वृंदा बताती हैं कि कुछ ही दिनों में चार्जशीट के साथ पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफ़आईआर की प्रतियां दोनों पक्षों को मिल ही जाएंगी. ऐसे में एम्स प्रशासन का जानकारी देने से इनकार करना यह संदेह पैदा करता है कि कहीं ऐसा किसी इशारे पर तो नहीं हो रहा है.
कब देंगे जानकारी..?
इस बारे में एम्स प्रशासन का जवाब जहाँ टालमटोल वाला बताया जा रहा है वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से अबतक आवेदक को कुछ नहीं बताया गया है.
जब बीबीसी ने दिल्ली पुलिस की ओर से जानकारी न दिए जाने का मुद्दा महकमे के प्रवक्ता राजन भगत के सामने रखा तो उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस क़ानून की अवहेलना नहीं कर रही है. जानकारी दे दी जाएगी.
पर समयावधि बीतने से क्या क़ानून की अवहेलना नहीं हुई, यह पूछने पर वो कहते हैं, “हमें जब आवेदन मिला होगा उसके बाद 30 दिन के अंदर हम जानकारी भेज देंगे. जानकारी या तो भेजी जा चुकी है या भेजी जा रही होगी. इस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता कि दिल्ली पुलिस क्या जानकारी देगी. यह जानकारी मिलने पर ख़ुद पता चल जाएगा.”
आवेदन अफ़रोज़ कहते हैं कि रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा गया आवेदन अगर अधिकतम समयावधि यानी तीन दिन बाद भी पुलिस को मिला तो भी आकलन के मुताबिक 37 दिन हो चुके हैं और दिल्ली पुलिस समयसीमा लांघ चुकी है.
वो कहते हैं, “इससे साफ़ होता है कि दिल्ली पुलिस और एम्स पारदर्शिता और जवाबदेही तय होने से बचना चाहते हैं जो कि क़ानून और लोकतंत्र, दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. मैंने दोनों विभागों के इस रवैये को देखते हुए पहली अपील दायर कर दी है.”
जानकार मानते हैं कि जिस तरह से दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर इस मुठभेड़ मामले में सवाल उठाए जाते रहे हैं उसके बाद पुलिस महकमे और एम्स प्रशासन को पारदर्शिता तय करने के लिए ख़ुद आगे आना चाहिए था ताकि सवालों का जवाब मिले और उनकी भूमिका स्पष्ट हो.
पर विश्लेषकों और इस मामले पर नज़र रख रहे लोगों की ओर से अब महकमे पर यह भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे जानकारी छिपा रहे हैं जिससे उनकी भूमिका पर संदेह और गहराएगा.
3.11.08
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2 comments:
bhadas par jamia encounter ko lekar report padhi.hame lagtahai k y ek achi koshish hai media jagat k dusre logon ko ko bhi is khabar ko follw karna chahiye.
Hame aapke blog par apna comment dena hai. Aapne jagah hi nahi chhori.
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