अरुंधति राय को जूता मारने की वकालत करने वाले और खुद को युवा का मीडिया प्रभारी बताने वाले कनिष्का की भड़ास से सदस्यता समाप्त करने की घोषणा की जाती है। भड़ास अरुंधति, तस्लीमा और मेधा जैसी नारियों का दिल से सम्मान करता है और उनकी लेखनी, वाणी व विचार से सहमति - असहमति के बावजूद उन्हें उम्दा कोटि का संत मानता है। ये नारियां लाखों नारियों को बेहतर जीवन स्थितियों की ओर ले जाने को प्रेरित करती हैं। ये नारियां निजी सुख-सुविधाओं को छोड़कर दर-दर की ठोकरें इसलिए खाती हैं क्योंकि इनके दिल-दिमाग में देश और देश के जन का हित है। मर्दों से ज्यादा काबिल इन महिलाओं पर सभ्यता-संस्कार बचाने के नाम पर जूता मारने जैसी तालिबानी हरकत करने वाले किसी भी संगठन के लिए भड़ास को प्रचार का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।
भड़ास प्रेम और ऊर्जा का हिमायती है, नफरत और विरोध का कतई नहीं। विचार का जवाब विचार हो सकता है, जूता या गाली नहीं। जूता वे फेंकते हैं जो दिमाग से काहिल होते हैं, गाली वे देते हैं जो दिल से जाहिल होते हैं। जूता और गाली के जरिए सस्ती लोकप्रियता तो पाई जा सकती है लेकिन बहुत बड़ी जन गोलबंदी नहीं की जा सकती। वरना जूता-गाली से ज्यादा प्रभावशाली गोली-बम के जरिए दुनिया को जाने कब का हथियारों के सौदागरों द्वारा हड़प-गड़प लिया गया होता। दुनिया के बड़े बदलावों और आंदोलनों के लिए जो जन गोलबंदी हुई, उसके पीछे विचार की ताकत रही है। वो चाहे भारत का स्वाधीनता आंदोलन रहा हो या अमेरिकी क्रांति।
प्रेम का जवाब प्रेम हो सकता है, नफरत नहीं। सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए विचार विहीन लोग बाहुबल के आधार पर जो ओछी हरकतें कर रहे हैं, वो इस देश की परंपरा और संस्कृति के ही खिलाफ है। हमारे देश की परंपरा मोनोलिथिक नहीं है। एकरेखीय नहीं है। विविधता ही हमारी परंपरा है। इस विविधता को जो स्वीकार नहीं करता, वही असली देशद्रोही है। एक से एक तुर्रम खां इस देश में आए, हमला किया, राज किया लेकिन आखिर उऩका हश्र क्या हुआ...। आज उनका कोई नामलेवा नहीं है। उनकी पीढ़ियां भारतीयता के रंग में रंगी हुई हैं। उनके धर्म और संप्रदाय हमारे देश की परंपराओं के समुद्र में आकर एकाकार हो गए। भई, प्यार के कोंपल खिलने दो, हर एक को बोलने दो, चिंतन-मनन करने दो....और वक्त निकालकर तुम भी ये सब काम करो। भड़ास का माडरेटर होने के नाते मुझे मजबूरन कनिष्का की भड़ास से सदस्यता समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ रही है।
कनिष्का की सदस्यता जिस पोस्ट के चलते खत्म की गई है, वो इस प्रकार है-
मारा था जूता अरुंधति राय को
उपरोक्त पोस्ट से पहले एक पोस्ट कनिष्का ने लिखा था, इस शीर्षक से
और इस बार जूते की शिकार बनीं अरुंधति राय
इस पोस्ट में मूलतः घटनाक्रम का वर्णन है, इसलिए इसे इग्नोर किया। हालांकि इसके नीचे मैंने तुरंत कमेंट कर अरुंधति पर जूता फेंकने की घटना की निंदा की। लेकिन बाद में मारा था जूता अरुंधति राय को पोस्ट के जरिए जूता मारने की घटना को कनिष्का द्वारा कुबूल करना और खुद को 'युवा' का मीडिया प्रभारी बताकर इस घटना से जुड़ाव दर्शाना साबित करता है कि वे भड़ास के फक्कड़, सूफी, औघड़, सहज और देसज मिजाज को समझ नहीं पाये हैं या फिर हम उन्हें समझा नहीं पाये हैं। शायद, गल्ती हम लोगों की है....
आपको आपकी बख्तरबंद तोपयुक्त अनुशासनी दुनिया मुबारक, हमें अपनी निहंगई रास आ गई है....।
उम्मीद है कनिष्का दिल पर नहीं लेंगे। सोचेंगे, समझने की कोशिश करेंगे। खुल दिल-दिमाग के साथ जब भी इधर की ओर मुंह करेंगे, उनका स्वागत रहेगा। उनके लिए आखिर में बस इतना ही...
यशवंत सिंह
भड़ास प्रेम और ऊर्जा का हिमायती है, नफरत और विरोध का कतई नहीं। विचार का जवाब विचार हो सकता है, जूता या गाली नहीं। जूता वे फेंकते हैं जो दिमाग से काहिल होते हैं, गाली वे देते हैं जो दिल से जाहिल होते हैं। जूता और गाली के जरिए सस्ती लोकप्रियता तो पाई जा सकती है लेकिन बहुत बड़ी जन गोलबंदी नहीं की जा सकती। वरना जूता-गाली से ज्यादा प्रभावशाली गोली-बम के जरिए दुनिया को जाने कब का हथियारों के सौदागरों द्वारा हड़प-गड़प लिया गया होता। दुनिया के बड़े बदलावों और आंदोलनों के लिए जो जन गोलबंदी हुई, उसके पीछे विचार की ताकत रही है। वो चाहे भारत का स्वाधीनता आंदोलन रहा हो या अमेरिकी क्रांति।
प्रेम का जवाब प्रेम हो सकता है, नफरत नहीं। सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए विचार विहीन लोग बाहुबल के आधार पर जो ओछी हरकतें कर रहे हैं, वो इस देश की परंपरा और संस्कृति के ही खिलाफ है। हमारे देश की परंपरा मोनोलिथिक नहीं है। एकरेखीय नहीं है। विविधता ही हमारी परंपरा है। इस विविधता को जो स्वीकार नहीं करता, वही असली देशद्रोही है। एक से एक तुर्रम खां इस देश में आए, हमला किया, राज किया लेकिन आखिर उऩका हश्र क्या हुआ...। आज उनका कोई नामलेवा नहीं है। उनकी पीढ़ियां भारतीयता के रंग में रंगी हुई हैं। उनके धर्म और संप्रदाय हमारे देश की परंपराओं के समुद्र में आकर एकाकार हो गए। भई, प्यार के कोंपल खिलने दो, हर एक को बोलने दो, चिंतन-मनन करने दो....और वक्त निकालकर तुम भी ये सब काम करो। भड़ास का माडरेटर होने के नाते मुझे मजबूरन कनिष्का की भड़ास से सदस्यता समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ रही है।
कनिष्का की सदस्यता जिस पोस्ट के चलते खत्म की गई है, वो इस प्रकार है-
मारा था जूता अरुंधति राय को
उपरोक्त पोस्ट से पहले एक पोस्ट कनिष्का ने लिखा था, इस शीर्षक से
और इस बार जूते की शिकार बनीं अरुंधति राय
इस पोस्ट में मूलतः घटनाक्रम का वर्णन है, इसलिए इसे इग्नोर किया। हालांकि इसके नीचे मैंने तुरंत कमेंट कर अरुंधति पर जूता फेंकने की घटना की निंदा की। लेकिन बाद में मारा था जूता अरुंधति राय को पोस्ट के जरिए जूता मारने की घटना को कनिष्का द्वारा कुबूल करना और खुद को 'युवा' का मीडिया प्रभारी बताकर इस घटना से जुड़ाव दर्शाना साबित करता है कि वे भड़ास के फक्कड़, सूफी, औघड़, सहज और देसज मिजाज को समझ नहीं पाये हैं या फिर हम उन्हें समझा नहीं पाये हैं। शायद, गल्ती हम लोगों की है....
जिंदगी भर के शिकवे-गिले थे बहुत
वक्त इतना कहां था कि दोहराते हम
एक हिचकी ने कह डाली सब दास्तां
हमने किस्से को यूं मुख्तसर कर दिया
आपको आपकी बख्तरबंद तोपयुक्त अनुशासनी दुनिया मुबारक, हमें अपनी निहंगई रास आ गई है....।
उम्मीद है कनिष्का दिल पर नहीं लेंगे। सोचेंगे, समझने की कोशिश करेंगे। खुल दिल-दिमाग के साथ जब भी इधर की ओर मुंह करेंगे, उनका स्वागत रहेगा। उनके लिए आखिर में बस इतना ही...
आप तो बेवफा और सितमगर नहीं
आपने किसलिए मुंह उधर कर लिया
यशवंत सिंह
5 comments:
यशवंत जी ,
कनिष्क जी को तो आपने रवाना कर दिया । लेकिन सवाल तो वहीं का वहीं है । क्या आपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड नहीं किया ? आपके ब्लाग पर अमिताभ बुदौलिया जी की एक पोस्ट पर मैंने कमेंट दिया था ,जिसे आज तक प्रकाशित नहीं किया गया । क्या मैं जान सकती हूं कि किस मुंह से आपका ब्लाग अभिव्यक्ति की आज़ादी का दावा करता है ? एक अदने से आदमी को महान बताने में हज़ारों शब्द ज़ाया कर दिये गये । क्या मेरे पचास शब्द उस पूरी पोस्ट पर भारी थे ? जिन महिलाओं को आपने संत निरुपित किया है ,उन्का तो कहना ही क्या ? जय हो आपकी सोच और आपकी कलम की ।
वो कमेंट अगर आया होता तो जरूर पब्लिश होता। इसकी गारंटी ये वाला कमेंट पब्लिश करके दे रहा हूं।
आपसे अनुरोध है कि वो कमेंट आप फिर से करें या मेरे पास मेल कर दें। जिस पोस्ट पर चाहती हैं, बता दें, वहां पब्लिश हो जाएगा।
किस वजह से आपका वो कमेंट पब्लिश नहीं हो पाया, मुझे नहीं मालूम लेकिन भड़ास पर विचारवान कमेंटों को कभी पब्लिश होने से रोका नहीं जा सकता। केवल गाली-गलौज और निजी आरोप-आक्षेप वाले कमेंट ही माडरेट किये जाते हैं।
यशवंत सिंह
sareetha ji ki baat par vichaar kiya jaana chahiye....
उम्मीद है कनिष्का दिल पर नहीं लेंगे। सोचेंगे, समझने की कोशिश करेंगे। खुल दिल-दिमाग के साथ जब भी इधर की ओर मुंह करेंगे, उनका स्वागत रहेगा। उनके लिए आखिर में बस इतना ही...
यशवंत जी ,
ab bhadas sahi dang se nikal rahi hai. pahle to aap bhi bade himayati the kuchh bhi kahne-likhne ke, tab mera kahaa aapko galat lagta tha.........ab kyon sadhu ban rahe hain. aapki tippani aur post bhi dekhin hain jab Roopesh ji ka sath tha aapke sath.
asliyat kya hai is sadhupane ki jaraa vistaar se batana.
डा. सेंगर
आदमी कोई पत्थर नहीं कि जिस हाल में है उसी हाल में जिंदगी भर बना रहे। बदलाव प्रकृति का नियम है और व्यक्ति चेतन है तो वह भी बदलाव की ओर बढ़ता है। सवाल है कि बदलाव की दिशा क्या है। जो दिशा है, अगर वो सकारात्मक लगती है तो उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, उसे बढ़ावा देना चाहिए। अगर अतीत में हम गलत रहे हैं और गलत को समझ-स्वीकार कर उससे मुक्त होने की कोशिश किया जा रहा है तो इसमें कुछ गलत है?
रही साधुपने की बात तो भई, हम लोग हमेशा से कट्टरपंथ से दूर रहे हैं, वो चाहे हिंदूवादी कट्टरपन हो मुस्लिम कट्टरपन। उदार सूफी परंपरा, औघड़ धारा के हम लोग हिमायती रहे हैं, शुरू से ही। औघड़ और फक्कड़ धारा में गालियां वर्जित नहीं हैं लेकिन गालियों का मकसद क्या है, ये महत्वपूर्ण है। अगर गाली किसी दुष्ट को दी जाती है तो वो उचित है लेकिन अगर गाली किसी सही व्यक्ति को दी जाती है तो ये अनुचित है। कुछ उसी तरह जैसे गोली बंदूक का हमारे देश के क्रांतिकारियों ने देश हित में उपयोग किया तो उन्हें हमने सेनानी माना लेकिन जब इसी गोली बंदूक के जरिए आतंकी निरीह लोगों को मारते हैं तो उन्हें हम हमेशा निंदनीय और गलत मानते हैं।
मैं अपने बारे में बता दूं। मैं कतई अच्छा आदमी नहीं हूं। बनने की कोशिश करता रहा हूं और करूंगा भी। हां, जो हूं सबके सामने हूं।
आप सौ फीसदी सही इंसान हैं, ये दावा आप भी नहीं कर सकते क्योंकि अगर आप मनुष्य हैं तो रोजाना के जीवन में कुछ गलत और कुछ सही काम जाने अनजाने में होते रहते हैं। मुख्य चीज है हमारी अंतरआत्मा जो हमें गलत को फिर न दुहराने और अच्छे को ज्यादा से ज्यादा अपनाने को प्रेरित करती रहती है। अगर अंतरआत्मा का एंटीना चालू है तो ये विश्वास है कि बुरा से बुरा व्यक्ति भी सही बनने में सफल होगा। हमारी परंपरा में बाल्मीकि जैसे डाकू भी संत बने हैं और समाज ने उन्हें मुख्यधारा में स्वीकार किया है।
उम्मीद है आपकी शंकाओं को थोड़ा बहुत समाधान हो गया होगा। न हुआ हो तो जरूर बताइएगा, कोशिश करूंगा अपनी बात रखने का।
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