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6.2.09

केवट ने राम से कहा- पारिश्रमिक नहीं लूंगा

विनय बिहारी सिंह

जब भगवान राम वनवास के लिए जा रहे थे तो रास्ते में एक नदी पड़ी। वहां मौजूद केवट तो धन्य हो गया। धन तो उसने बहुत कमाया था। आज वह चीज मिलने वाली थी, जिसके लिए बड़े- बड़े संत तरसते हैं। केवट राम जी को देख कर निहाल था। उन्हें स्पर्श कैसे करे? आमतौर पर होता है कि बड़ा आदमी नाव पर बैठता है और केवट चप्पू चला कर पार उतार देता है। लेकिन यहां तो केवट चरण स्पर्श का सुख चाहता था। उसने कहा- मैंने सुना है, आपका स्पर्श पाते ही पत्थर भी स्त्री बन जाता है। कहीं मेरी नाव भी स्त्री न बन जाए। इसलिए इसे मैं पवित्र जल से धो देना चाहता हूं। भगवान राम मुस्कराए। वे उसकी चालाकी समझ रहे थे। लेकिन केवट तो प्रेम में रोए जा रहा था। उसने जी भर कर चरण धोए। चरणामृत अपने परिजनों को दिया और नदी पार करा दी। लेकिन जब पार उतारने का पारिश्रमिक देने की बात आई तो उसने कहा कि एक ही पेशे के लोग एक दूसरे से पारिश्रमिक नहीं लेते। राम जी ने कहा- तुम्हारा औऱ मेरा पेशा एक कैसे है? केवट बोला- मैं बताता हूं। मैं नदी पार कराता हूं और आप भक्तों को भवसागर पार कराते हैं। मैं आपसे पारिश्रमिक नहीं लूंगा। राम जी ने सीता जी को इशारा किया। उनके पास एक स्वर्ण आभूषण था। सीता जी ने उसे केवट को देना चाहा। लेकिन जब अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी खुद सामने खड़े हों तो धन की क्या कीमत? केवट ने पारिश्रमिक लेने से ही इंकार कर दिया। बस इतना ही कहा- अगर देना ही है तो यह वचन दीजिए कि आप मेरे दिल से कभी नहीं निकलेंगे औऱ आपकी कृपा हमेशा मुझ पर और मेरे परिवार पर बनी रहेगी। राम जी ने मुस्करा कर यह वचन दे दिया। यहां जीसस क्राइस्ट की बात भी याद आती है। उन्होंने कहा था- सीक ये द किंगडम आफ गाड, द रेस्ट थिंग्स विल कम अन टू यू। पहले ईश्वर के साम्राज्य को प्राप्त करो, बाकी चीजें अपने आप तुम्हारे पास चली आएंगी। जो तुमने नहीं चाहा था, वो भी। केवट को और क्या चाहिए था। जब ईश्वर की ही कृपा मिल गई तो बाकी चीजों का वह क्या करेगा? धन की मांग करना तो ऐसे ही होता जैसे कोई बहुत बड़ा सम्राट पूछे कि तुम्हें क्या चाहिए। और जवाब में कोई कहे- एक किलो आलू। जहां अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी की कृपा है, वहां कुछ भी मांगना हास्यास्पद है।

1 comment:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

आजकल आपके लिखे को कुछ ज्यादा ही पढ़ रहा हूं...इसलिए क्योंकि वो कहा गया है न...सुख में याद न करे कोई, दुख में याद करे हर कोई.....:)

सुंदर...इस मायानगरी से परे जाने की सोच अभी से अंतस में आने लगी है। लगता नहीं है कि इस हाय हाय किच किच में एकाध साल से ज्यादा रह पाउंगा...

पर जब तक रहूंगा डट के रहूंगा..शेर, सिंह की माफिक.........

जय हो