सलीम अख्तर सिद्दीकी
सरकार और मीडिया महिला सशक्तिकरण की बहुत बातें करते हैं। नामचीन महिलाओं का उदाहरण देकर कहा जाता है कि महिला अब पुरूषों से कमतर नहीं हैं। लेकिन जब किसी गरीब, लाचार और बेबस लड़की के बिकने की दास्तान सामने आती है तो महिला सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ जाती हैं। 24 जून को पष्चिम बंगाल की 25 साल की मौसमी को पष्चिम बंगाल से खरीदकर लाया गया। उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। मौसमी को अपने बेचे जाने की भनक लगी तो वह किसी तरह वहषियों के चंगुल से निकल भागी। कुछ लोगों ने उसे मेरठ के नौचंदी थाना पहुंचाया। लड़की केवल बंगला में ही बाते कर रही थी। 'संकल्प' संस्था की निदेषक श्रीमती अतुल षर्मा तथा उनकी सहयोगी कादम्बरी कौषिक ने थाने पहुंचकर कलकत्ता स्थित अपने एक कार्यकर्ता से मौसमी की बात करायी। कार्यकर्ता ने हिन्दी में मौसमी की व्यथा को बयान किया। इससे पहले भी मेरठ में लड़कियां के बिकने की खबरें आती रही हैं। संकल्प की अतुल षर्मा बताती हैं कि मेरठ लड़कियों की खरीद-फरोख्त की मंडी बन चुका है। श्रीमती अतुल बताती हैं कि वे अब तक 131 लड़कियों को बिकने से बचा चुकी हैं। लड़कियों को दिल्ली के जीबी रोड तथा मेरठ के कबाड़ी बाजार स्थित रेड लाइट एरिया मे ंखपाया जाता है।
दरअसल, मेरठ ही नहीं, पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश लड़कियों की खरीद-फरोख्त और देह व्यापार का अड्डा बन गया है। ये लड़कियां नेपाल, असम, बंगाल, बिहार, झारखंड मध्य प्रदेश तथा राजस्थान आदि प्रदेशों से खरीदकर लायी जाती हैं। पिछले साल के शुरू में ÷एंटी ट्रेफिकिंग सेल नेटवर्क' का एक दल झारखंड से तस्करी से लायी गयीं 602 महिलाओं को खोजने मेरठ आया था। सेल नेटवर्क की अध्यथ रेशमा सिंह ने बताया था कि पिछले पांच से छः वर्षों के दौरान पश्चिमी यूपी में लगभग 6 हजार महिलाएं तस्करी से लाकर बेची जा चुकी हैं। इनमें से कुछ 15 से 16 तथा कुछ 20 से 22 साल की आयु की थीं। उन्होंने बताया कि झारखंड के लोगों के लिए मेरठ मंडल ही यूपी है। झारखंड के बोकारो, हजारी बाग, छतरा और पश्चिम सिंह भूम जिलों में महिलाओं की हालत सबसे खराब है। इन्हीं जिलों से महिलाओं की तस्करी सबसे अधिक होती है।
मेरठ की बात करें तो पिछले दिसम्बर 2007 तक सरकारी आंकडों के अनुसार 419 बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट है। इनमें से विभिन्न आयु वर्ग की 270 लड़कियां हैं। लड़कियों के बारे मे पुलिस शुरूआती दिनों में प्रेम प्रसंग का मामला बनाकर गम्भीरता से जांच नहीं करती है। निठारी कांड के बाद गायब हुए बच्चों की तलाश के लिए बड़ी-बड़ी बातें की गयी थीं। लेकिन निठारी कांड पर धूल जमने के साथ ही गायब हुऐ बच्चों की तलाश के अभियान पर भी ग्रहण लग गया है।
मेरठ महानगर के रेड लाइट एरिया में ही दिसम्बर 08 तक लगभग 1800 सैक्स वर्कर थीं। इनमें लगभग 1160 केवल 12 से लेकर 16 वर्ष की नाबालिग बच्चियां हैं, जिन्हें अन्य प्रदेशों से लाकर जबरन इस धंधे में लगाया गया है। जब से यह कहा जाने लगा है कि कम उम्र की लड़कियों से सम्बन्ध बनाने से एड्स का खतरा नहीं होता, तब से बाल सैक्स वर्करों की संख्या में इजाफा हुआ है। देह व्यापार में उतरते ही इन लड़कियों के शोषण का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। दलालों और कोठा संचालकों का उनकी हर सांस और गतिविधि पर कड़ा शिकंजा रहता है। यदि कोई लड़की भागने की कोशिश करती है तो उस पर भयंकर अत्याचार किए जाते हैं। शारीरिक हिंसा, लगातार गर्भपात, एड्स, टीबी तथा हैपेटाइटिस बी जैसी बीमारियां इनका भाग्य बन जाती हैं।
मेरठ के रेड लाइट एरिया में ऐसी अनेकों लड़कियां हैं, जो इस धन्धे से बाहर आना चाहती हैं। लेकिन माफिया उन्हें धन्धे से बाहर नहीं आने देना चाहते। वे अगर बाहर आ भी जाती हैं तो उनके सामने सबसे सवाल यह रहता है कि क्या समाज उन्हें स्वीकार करेगा। ऐसे भी उदाहरण हैं कि किसी सैक्स वर्कर ने इस दलदल से मुक्ति चाही, लेकिन दलाल उसे फिर देह व्यापार के दलदल में वापस खींच लाये। पिछले दिनों मेरठ के रेड लाइट एरिया की जूही नाम की सैक्स वर्कर ने सुरेश नाम के लड़के से कोर्ट मैरिज कर ली। लेकिन कोठा संचालिका और दलालों को जूही का शादी करना अच्छा नहीं लगा। उसे जबरदस्ती फिर से कोठे पर ले जाने का प्रयास किया गया, जो असफल हो गया। लेकिन जूही एक अपवाद मात्र है। धन्धे से बाहर आने की चाहत रखने वाली हर सैक्सवर्कर की किस्मत जूही जैसी नहीं होती।
हालिया आंकड़ों के अनुसार पश्चिमी यूपी में लड़कियों की जन्म दर में सात से आठ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। इसके अलावा इस क्षेत्र में कुछ जातियों में विशेष कारणों से हमेशा ही अविवाहित पुरुषों की संख्या अधिक रही है। इसलिए यहां पर महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा बढ़ता जा रहा है। अपने लिए दुल्हन खरीद कर लाये एक अधेड़ अविवाहित ने बताया कि ÷दिल्ली में एक दर्जन से भी अधिक स्थानों से नेपाल, बिहार, बंगाल, झारखंड तथा अन्य प्रदेशों से लायी गयी लड़कियों को मात्र 15 से 20 हजार में खरीदा जा सकता है।' दिल्ली में यह सब कुछ ÷प्लेसमेंट एजेंसियों' के माध्यम से हो रहा है। इन्हीं प्लेसमेंट एजेंसियों के एजेन्ट आदिवासियों वाले राज्यों में नौकरी-रोजगार देने का लालच देकर लाते हैं और उन्हें ÷जरूरतमंदों' को बेच देते हैं। ये एजेंसियां इन लड़कियों के नाम-पते भी गलत दर्ज करते हैं ताकि इनके परिवार वाले इन्हें ढूंढ न सकें। अधेड़ लोग सन्तान पैदा करने के लिए तो कुूछ मात्र अपनी हवस पूरी करने के लिए इन लड़कियों को खरीदते हैं। कुछ सालों के बाद इन लड़कियों को जिस्म फरोशी के धंधे में धकेलकर दूसरी लड़की खरीद ली जाती है। कुछ पुलिस अधिकारी यह मानते हैं कि लड़कियों को बंधक बनाकर उन्हें पत्नि बनाकर रखा जाता है, लेकिन लड़की के बयान न देने के कारण पुलिस कार्यवाई नहीं कर पाती है। लड़कियों की खरीद-फरोख्त तथा देह व्यापार एक वुनौती बन चुका है। इस व्यापार में माफियाओं के दखल से हालात और भी अधिक विस्फोटक हो गये हैं। सैक्स वर्करों को जागरूक करने का कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों को इन माफियाओं से अक्सर जान से मारने की धमकी मिलती रहती है। ÷संकल्प÷ की निदेशक अतुल शर्मा को कई दलाल जान से मारने की धमकी दे चुके हैं।
कुछ जातियों में देह व्यापार को मान्यता मिली हुई है। यदि ऐसी जातियों को छोड़ दिया जाये तो देह व्यापार में आने वाली अधिकतर लड़कियां मजबूर और परिस्थितियों की मारी होती हैं। प्यार के नाम ठगी गयीं, बेसहारा और विधवाएं। आजीविका का उचित साधन न होने। बड़े परिवार के गुजर-बसर के लिए अतिरिक्त आय बढ़ाने के लिए। अकाल अथवा सूखे के चलते राहत न मिलना, परिवार के मुखिया का असाध्य रोग से पीड़ित हो जाना। परिवार का कर्जदार होना, जातीय और साम्प्रदायिक दंगों में परिवार के अधिकतर सदस्यों के मारे जाने आदि देह व्यापार में आने की मुख्य वजह होती हैं। किसी देश की अर्थ व्यवस्था चरमरा जाना भी देह व्यापार का मुख्य कारण बनता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद आजाद हुऐ कुछ देशों की लड़कियों की भारत के देह बाजार में आपूर्ति हो रही है। एक दशक पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो दिल्ली, कोलकाता, चैन्नई, बंगलौर और हैदराबाद में सैक्स वर्करों की संख्या लगभग सत्तर हजार थी। एक दशक बाद यह संख्या क्या होगी इसकर केवल अंदाजा लगाया जा सकता है।
देह व्यापार में केवल गरीब, लाचार और बेबस औरतें और लड़कियां ही नहीं हैं। देह व्यापार का एक चेहरा ग्लैमर से भरपूर भी है। सम्पन्न घरों की वे औरतें और लड़कियां भी इस धन्धे में लिप्त हैं, जो अपने अनाप-शनाप खर्चे पूरे करने और सोसाइटी में अपने स्टेट्स को कायम रखने के लिए अपनी देह का सौदा करती हैं। मेरठ के ट्रिपल मर्डर की सूत्रधार शीबा सिरोही ऐसी ही औरतों के वर्ग से ताल्लुक रखती है, जो पॉश कालोनी के शानदार फ्लैट में रहती हैं और लग्जरी कारों का इस्तेमाल करती हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में नवधनाढ़यों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है, जो नारी देह को खरीदकर अपनी शारीरिक भूख को शांत करना चाहता है। इन धनाढ़यों की जरूरतों को पूरा करने का साधन ऐसी ही औरतें और लड़कियां बनती हैं।
समाज का एक बर्ग यह भी मानता है कि रेड लाइट एरिया समाज की जरूरत है। इस वर्ग के अनुसार भारत की आबादी का लगभग आधा हिस्सा युवा है और इस युवा वर्ग के एक बड़े हिस्से को अनेक कारणों से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए रेड लाइट एरिया की जरूरत है। सर्वे बताते हैं कि जहां रेड लाइट एरिया नहीं हैं, वहां बलात्कार की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
सैक्स वर्करों की बीच काम करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं के सामने देह व्यापार को छोड़कर समाज की मुख्य धारा में आने वाली लड़कियों का पुनर्वास एक बड़ी चुनौती होता है। हालांकि सरकार सैक्स वर्करों के पुनर्वास के लिए कई योजाएं चलाती है। लेकिन सैक्स वर्करों के अनपढ़ होने, स्थानीय नहीं होने तथा दलालों के भय से वे योजना का लाभ नहीं उठा पाती हैं। कुछ गैर सरकारी संगठन वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के लिए सार्थक प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें समाज, प्रशासन और पुलिस का उचित सहयोग और समर्थन नहीं मिल पाता। गैर सरकारी संगठनों को व्यापक शोध करके सरकार को सुझाव दें कि जो लड़कियां देह व्यापार से बाहर आना चाहती हैं, उनका सफल पुनर्वास कैसे हो।
1 comment:
आंखे खोलने वाला एक जबरदस्त लेेख । यह लेख बताता है कि हम सभ्यता की चड्डी बनियान पहने हुए पूरी तरह से असभ्य और जानवर किस्म के लोग हैं, जहां एक इंसान को इंसान ही नहीं माना जाता है । वो सिर्फ इस्तेमाल करने की वस्तु है और कुछ नहीं । कितना अच्छा होता कि शरीर की भूख मिटाने का कोई और जरिया होता तो कम से कम हर साल हजारों लाखों मासूम लड़कियों का जीवन नर्क होने से बच जाता । क्यों हजारों साल से स्त्रियों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है । वो भी भारत देश मंे जहां स्त्री को लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के रूप में देखा जाता है ।
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