Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

21.8.09

गार्गी जी के ब्लॉग से लौट कर {भूतनाथ}

गार्गी जी के ब्लॉग से लौट कर {भूतनाथ}


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हम्म्म्म्म्म्म्म.....ये गार्गी को क्या हो गया भई....??....ये तो ऐसी ना थी....!!....अब मैं देखता हूँ तो क्या देखता हूँ,कि मैं एक गीत हुआ गार्गी के बाल सहला रहा हूँ.....और उसे बस इक चवन्नी भर मुस्कुराने को कह रहा हूँ.....
".....पगली है क्या....हंस दे ज़रा....!! "
.....जीवन है ऐसा.....गम को भूला....!!

......लोगों का क्या....ना हों तो क्या...!!
.....गुमसुम है क्यूँ....सब कुछ भुला...!!
.....जीवन है सपना....बाहर आ जा....!!
....चीज़ों का क्या....सब कुछ मिटता....!!
.....खुद में गुम जा....खुद ही है खुदा....!!
....तुझे ए गार्गी....जीना समझा....!!
...रू-ब-रू है"गाफिल"....हाथ तो मिला॥!!
गार्गी.....तेरे पिछले आर्टिकल में भी ऐसे ही विचारों की पदचाप मुझे सुनाई दी थी....मैंने मटिया दिया....किन्तु इस बार तूने आवाज़ देकर मुझे बुला ही लिया तो बताये देता हूँ....लेकिन मैं तुझे बताऊँ....तो क्या बताऊँ भला.....तेरे खुद के शब्दों में तो खुद ही किसी गहराई की खनक है....तू खुद जीवन के समस्त आयामों को समझती है... सच कहूँ तो जीवन में आने वाले तमाम दुःख हमें इक अविश्वसनीय गहराई प्रदान कर जाते हैं....और आगे आने वाली अन्य परिस्थितियों का और भी गहनता से मुकाबला करने के लिए....या कि उनका और और भी मुहं तोड़ जवाब देने के लिए....याकि जीवन बिलकुल ऐसा ही है....बिलकुल इक सपाट परदे-सा....तस्वीरों-सी घटनाएं रही हैं...और जा रही हैं....कोई भी चीज़ दरअसल अपनी नहीं हैं...यहाँ तक कि प्रेम भी नहीं....जिसको आप गहराई का सबसे विराट पैमाना समझते हो....और औरों को भी समझाते हो...!!....दरअसल सच कहूँ....तो इस विराटतम काल में इक मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम घटनाएं कुछ हैं ही नहीं.....तो दरअसल कुछ है ही कहाँ...चीज़-चीज़ें-घटनाएं-आदमी या कुछ भी दृश्य का साकार होना....दरअसल है ही नहीं....!!और जब हम इसे देख पाते हैं....तब यह हमको चीज़ों-घटनाओं-मानवों को समझने का तमाम भ्रम मिट जाता है....और रह जाता है....सिर्फ-व्-सिर्फ अहम् ब्रहमास्मि का भाव मात्र.....!!....दरअसल अनंत काल में तमाम चीज़ों का होना और ना होना बराबर ही है...सोचो ना कभी....कि अरबों-खरबों (काल की इक छोटी-सी गणना) में हमारे ६०-७० वर्ष के जीवन का होना....!!....हा॥हा...हा...हा ...हा...कितना अहम् हैं इस आदमी-नुमा जीव का....(आदमी-नुमा इसलिए कह रहा हूँ....कि मैं आदमी को आदमी तक नहीं मानता.....क्योंकि ब्रहमांड में तमाम चीज़ें अपनी नैसर्गिकता के साथ हैं....सिर्फ और सिर्फ आदमी नामक यह जीव[ये नाम भी तो इसका खुद का दिया हुआ है]-नैसर्गिक है.....कृत्रिम....अहंकारी....अविवेकी[और खुद को विवेकशीलता का तमगा पहनाये हुए है....??लम्पट कहीं का....!!].....तो खुद के ज़रा-से जीवन को इतना गौरव-पूर्ण मानने वाला यह जीव....सचमुच मेरी नज़र में बड़ा ही अद्भुत है....!!....किसी भी बात से जिसका तर्क सहमत नहीं होता....किसी भी "चीज़"से जिसका ""....जी.....""नहीं भरता....!!.... क्या ऐसा कोई अन्य जीव इस पृथ्वी पर....??....गार्गी....जैसा कि हम जानते हैं....कोई भी चीज़ अपनी नहीं है....और यह भी कि सब कुछ क्षणभंगुर है...तो फिर सब बात तो यही समाप्त है....और इनसे जुड़े हुए विचार भी तब व्यर्थ ही हैं....विचार भी दरअसल हमारी अपनी कल्पना ही होते हैं,.....!!...इसका अर्थ यह भी तो नहीं कि जीवन ही व्यर्थ है....नहीं जीवन का केवल उतना ही अर्थ है....जितना कि हमारे शब्दों के अर्थ....!!.....अलबत्ता यह अवश्य हो कि जीवन की इस क्षण-भंगुरता को देखते हुए.....आदमी नाम के इस स्वनामधन्य जीव में कम-से-कम जीवन के प्रति इतनी तो तमीज हो.....कि वह ब्रहमांड की सारी चीज़ों,चाहे वो निर्जीव हों या सजीव,के प्रति तमीज दिखा सके....सबका सम्मान करना सीख सके....और इस बहाने अपनी नश्वरता का सम्मान भी कर सके....!!!!

2 comments:

pooja joshi said...

कम शब्दो में जीवन की रुप रेखा दर्शाता है बहुत खुब

pooja joshi said...

कम शब्दो में जीवन की रुप रेखा दर्शाता है बहुत खुब